Monday 15 February 2021

क्या लोकतंत्र का प्रयोग असफल रहा है?

chaitanya shreechaitanya shree chaitanya shreeक्या लोकतंत्र का प्रयोग असफल रहा है ?
गरिमामयी स्थान संसद में संसादो द्वारा उत्पात मचाना क्या लोकतंत्र का यही  प्रयोग है,  घटनाओ को देखते हुए मेरे मन में कई तरह के सवाल उत्पन्न हो रहे है जो मै  नीचे आपलगो के साथ चर्चा करना चाहता हूँ। 

पश्चिमी देशो कि राज्य व्यवस्था का अध्यन कर हमलोगो ने  संसद , प्रशासन ,एवं जुडिसियल सिस्टम को अपनया था , भारत कि संसदीय लोकतंत्र का राज्य प्रणाली के रूप में अपनाया गया था , लेकिन लोकतंत्र के अभिवावक राजधर्म भूल चुके है , प्रशासन भ्रष्ट हो चूका है , समाज स्वार्थी बन गया है , मीडिया लोकतंत्र का अभिन्न अंग भी अपनी निचली स्तर तक जा चुका है , भारतीय जनता ने जिस लोकतंत्र को अंगीभूत किया था वो कभी परिवारवाद , कभी तानाशाही , कभी गुंडागर्दी , कभी दमनकारी तथा भ्रस्ट तंत्र सिद्ध हो चूका है। 

संविधान को लोग बहुमत के आधार पर संशोधितं करते रहते है , जिससे राजनेता अपनी वोट कि राजनीती के तुष्टिकरण को भुनाने के लिए करते है ,इसकी मिसाल इंद्रा गांधी , राजीव गांधी , सोनिए गांधी दे चुके है। 
 कुछ सवालो का जवाब आप लोगो के साथ मिलकर ढूंढ़ना चाहता हूँ -:

अपराधियो को चुनाव लड़ने पर कोई रोक क्यों नहीं लगाया जा रहा है। 
प्रशासन में काम करने वाले लोगो को संविधान का समर्थन प्राप्त है , बिना राज्य पाल  के अनुमाति  के उनपर कोई अभियोजन कोर्ट में नहीं चलाया जा सकता है , हमारे देश का नागरिक इनका खुल कर प्रतिवाद नहीं कर सकता , अगर करता है तो यही सरकारी अधिकारी उस देश के नागरिक को किसी अभियोजन में फसा देते है क्या यही लोकतंत्र है ?

और देखिए संसद में चुने हुए नेता के खिलाफ न्यायलय कोई अभियोग नहीं चला सकता ,या कोई आम नागरिक साधारण आलोचना भी नहीं कर सकता अगर करता है  तो उस विशेष अधिकार हनन कि कार्यवाही कि जाती है , सवाल है कि क्या हमारी न्यायिक प्रणाली को ये चंद  नेता पंगु बनाने में लगे है।संसद में ये लोग गलत काम करे , लड़ाई झगड़ा करे उठा -पटक करे , इनका कोई मई -बाप नहीं है। क्या ये न्यायलय से भी सर्वोच्च है , जिस पर हमें विचार करना होगा। 

क्या शासन को चलाने के लिए ४० - ५० प्रतिशत लाने वाला व्यक्ति ८० प्रतिशत  लाने वाला व्यक्ति से अच्छा प्रशासन चला सकता है ?

क्या अज्ञानी व्यक्ति राजनेता बन सकता है ?

क्या पढ़े लिखे व्यक्ति जो गुंडागर्दी नहीं कर सकते वो राजनीती नहीं कर सकते ?

क्या न्यायलय शासन कि आलोचना ही कर सकता है उस पर दिशा - निर्देश या कार्यवाही नहीं कर सकता ?

क्या आज के नेता लोकतंत्र के प्रतिनिधि है या ये जनप्रतिनिधियो का तंत्र है , जो जैसे चले ठीक , लोकतंत्र में जनता को केवल मातदान  करने का अधिकार है, मेरे ख़याल से चुनाव में निर्वाचित जनप्रतिनिधि जनमत के अनुसार नहीं होते , लोकतंत्र में जनमत का महत्त्व केवल चुनाव तक ही सीमित है , चुनाव के बाद राजनेताओ को जनता से कोई मतलब नहीं रहता है क्या यह होना चाहिए। 

राजनितिक नेताओ द्वारा किए जानेवाले भ्रस्टाचार तथा तथा अलोकतांत्रिक व्यवहार के सन्दर्भ में प्रतिदिन आनेवाले समाचारो के कारण लोकतंत्र से विश्वास उठ चूका है , सामान्य जनता संभ्रमित है एवं वह लाचार होकर सर्व अत्याचार सह रही है।  भारत कि सामान्य जनता  सत्ता में राजनितिक परिवर्तन करने के अपेक्षा प्रचलित लोकतान्त्रिक  व्यवस्था में ही परिवर्तन लाने कि इक्षा करने लगी है।

Saturday 7 March 2020

chaitanya shreechaitanya shree

क्या मुस्लिमो का आरक्षण एक राजनितिक घूस है ?

chaitanya shreeक्या मुस्लिमो का आरक्षण एक राजनितिक घूस है ?
मै  अगर इस सवाल का उत्तर अगर हां में दू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, लेकिन मै  इस सवाल  पर अपनी प्रतिक्रिया कुछ तथ्यों के साथ देना चाहता हूँ। 

२७ जून १९६१ को देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित नेहरू ने सभी मुख्यमंत्रियो को पत्र लिखकर अवगत कराया था कि मज़हब के आधार पर किसी भी प्रकार का आरक्षण ना दिया जाय,इसी प्रकार १९३६ में पूना पैक्ट के बाद  अंग्रेज सरकार  ने अनुसूचित जाती कि  पहली सूची  जारी जारी कि थी,जिसमे धर्मान्तरित ईसाई व् मुस्लिम कि जातिया उसमे शामिल करने कि मांग उठाई गयी थी , जिसे अंग्रेज हुकूमत ने अस्वीकार कर दिया था। परन्तु मनमोहन  सरकार अपने पूर्वज से न सीख लेकर सच्चर समिति के बाद रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन करके धर्मान्तरित ईसाई व् धर्मान्तरित मुस्लिमो को अनुसूचित जाती का आरक्षण करने हेतु पैरवी प्रारम्भ कर दी  प्रारम्भिक तौर पर राष्ट्रीय अनुसूचित जन जाती आयोग के अध्यक्ष श्री बूटा सिंह ने भी इसका विरोध किया था, परन्तु सोनिया गांधी कि सहमति देखकर बूटा सिंह  गए थे। अब इलेक्शन का वक्त होने के कारण कांग्रेस ने फिर इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया है। 

सरकार के नीतियो को लेकर अदालतो का दृष्टिकोण काफी कड़ा रहा है ,इसी मुस्लिम आरक्षण  को लेकर अदालतो का दृष्टिकोण काफी कड़ा रहा है, इसी मुस्लिम आरक्षण को लेकर , तथा सच्चर समिति कि सिफारिशों को न लागू करने के सम्बन्ध में केंद्र सरकार के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायलय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार के वकील को कड़ी फटकार लगाते हुए बोला था :-
- आप गरीबी से लड़ना चाहते है तो धर्म आड़े क्यों आ रहा है ?
- क्या यह समुदाय विशेष का तुष्टिकरण करने का प्रयास तो नहीं है ?
- क्या यह समिति इसी काम के लिए बनी है ?
- क्या सरकार को सबके भले के लिए पैसा खर्च करना चाहिए या किसी एक समुदाय विशेष के उत्थान के लिए ?
-आखिर ९० मुस्लिम बहुल जिले चिन्हित कर उनमे मुस्लिमो कि तरक्की के ही विशेष प्रयास क्यों किये गए है ?
-सरकार केवल अल्पसंख्यको के उत्थान के लिए कटिबध्ध है , बहुसंख्यको के लिए क्यों नहीं है ?
- आप अंग्रेजो कि तरह "बाटों और राज करो "के सिद्धांत पर क्यों चलना चाहते है ?
 अगर मै ठीक  से समझा हूँ तो आरक्षण और कोटा जैसे सुविधाओ का लाभ असली जरूरत मंदो तक नहीं पहुच पाया है , जबकी इसका फायदा क्रीमी लेयर जायदा उठाते है , आज हालात यह है कि पढाई नौकरी ,,व्यापार ,हर क्षेत्र में आरक्षण को जगह मिली हुई है ,आश्चर्य कि बात तो यहाँ है कि चिकित्सा जैसे क्षेत्रो में भी आरक्षण लागू है , यह बात समझ से परे है कि मानव जीवन से जुड़े पेशे में आरक्षण देना वोट बैंक कि राजनीति के अलावा क्या हो सकता है ?इसे तो सही तौर पर राजनितिक घूस कहा जा सकता है। 

मेरे विचार से नौकरियों में मुस्लिमो को आरक्षण कि घोषणा मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने कि है ये सरासर एक राजनितिक घूस है ,जिसका बहिष्कार जवाहर लाल नेहरू शुरू में ही कर चुके थे , पर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को इससे क्या फर्क पड़ता है , मनमोहन सिंह ने यह ऐलान किया हुआ है कि सरकार सच्चर समिति कि सिफारिशों पर अमल करने के लिए तैयार है , चुनाव से पहले मुस्लिमो को ये सीधी  रिश्वत दी जा रही है। हिन्दू गरीबी में भले ही एड़िया रगड़-रगड़ कर मर जाए , कोई नहीं पूछेगा न सरकार न रिश्तेदार , न मित्र , कोई सहायता नहीं करता , लेकिन मुस्लिम भाइयो को इस बात से सतर्क रहना होगा कि चुनाव से पहले सहानुभूति जताकर राजनितिक दल उनसे धोखा तो नहीं कर रहे , जो बाद में न्यायिक प्रक्रिया के जाल में न फस जाए। इस विषय पर मुस्लिम समाज को थोडा सोचना पड़ेगा। 

Saturday 8 February 2020

क्या आज का कांग्रेस आतंकवादी संगठन बनते जा रहा है? क्यों ना इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित किया जाए?

chaitanya shreechaitanya shree क्या आज का कांग्रेस आतकवादी संगठन बनता जा रहा  है ?(क्यो न इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित किया जाए?)
अगर मै इस बात का उत्तर हाँ में दू तो कोई आतशयोक्ति नहीं होगा , हाँ ,कांग्रेस एक आतंकवादी संगठन है, जो कई आतंकी गतिविधियो में संलिप्त रहा है , जिसका मै  तार्किक उत्तर दूंगा। कांग्रेस के नेताओ को ना केवल आतंकवाद कि विभिन्न घटनाओ में सजा हुई बल्कि कई प्रकार के आतंकवाद के प्रणेता इनका शीर्ष नेतृत्व रहा है।

१९९३ के सूरत बम  विष्फोट  के अपराध में कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री मोहम्मद सुरति सहित सात अन्य मुस्लिम  कांग्रेसी नेता सजा भुगत रहे है , गोधरा का वीभत्स अग्नि काण्ड , जिसमे ५९ निरपराध राम भक्त हिन्दुओ को जिन्दा जलाया गया था , उसके षड्यंत्र में कांग्रेस के १५ से अधिक पदाधिकारी आरोपित है।

पंजाब का आतंकवाद , लिट्टे  का भारत में प्रशिक्षण व् सहयोग , पूर्वोत्तर का चर्च प्रेरित आतंकवाद तथा माओवाद का कांग्रेस के शीर्ष से सम्बन्ध किसी से छिपा नहीं है १९८४ में ३००० सिखों  का नरसंहार स्वतंत्र भारत कि सबसे बड़ी विभत्स आतंकवादी घटना तो थी ही ,इसको प्रेरित व् क्रियान्वित करने में उस समय के शीर्ष नेतृत्व कि भूमिका संदिग्ध है।

इंद्राजी  आपातकाल के अपराधो के कारण गिरफ्तार करने पर भोला और देवेन्द्र पण्डे द्वारा विमान अपहरण किया गया था , इस आतंकवादी कार्य को करने पर उन्हें कांग्रेस द्वारा विधयाक बनाकर पुरष्कृत करना आतंकवाद को प्रोत्साहन देने का सबसे बड़ा ज्वलंत उदहारण है।

कोयंबटूर बम ब्लास्ट के घोसित अपराधी मदनी को जेल से छुड़ाने के लिए सी पी ऍम के साथ मिलकर केरल विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कराया था।

ऐसे और भी पचासो घटनाएँ है जो कांग्रेस के चरित्र को स्पष्ट करती है।

ज्ञात हो आतंकवादी एवं देशद्रोही संगठन सिमी के साथ इनके निकट सम्बन्ध सर्वविदित है , जब राजग सरकार ने सिमी पर प्रतिबन्ध  लगाया था ,तब संघ और सिमी कि तुलना करने वाले राहुल गांधी तो क्या श्रीमती सोनिया  गांधी तक सिमी के समर्थन में संसद में लड़ रही थी , कांग्रेस कार्यकर्ता सड़को पर सिमी के समर्थन में हिंसक प्रदर्शन कर रहे थे , और न्यायलय में इनके प्रमुख नेता व् हमारे विदेश मंत्रीजी श्री सलमान खुर्शीदजी - फिर से गज़नी कि बांट जोह रहे सिमी के पक्ष में कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।

मध्यप्रदेश  के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह जीअपनी खोई हुई जमीन को तलाश रहे कांग्रेसी नेता भगवा आतंकवाद के विषय में उत्साहित होकर मर्यादाविहीन होते  रहे है , यह तथ्य सर्वविदित है कि इन्ही के मुख्यमंत्रित्व काल में सिमी निर्बाध रूप से फली - फूली थी , तथा माओवाद नक्सलियो के गतिविधियो का मधयप्रदेश में तेजी से विस्तार हुआ था , शायद इन्ही पुराने सम्बन्धो के कारण बटला हाउस व् आजमगढ़ इनके प्रिय विषय हो जाते है। वाराणसी बम विष्फोट के तार आजमगढ़ से जुड़े होने के बावजूद इन दुरंत आतंकियो को पकड़ने के लिए वहाँ जाने का साहस पुलिस जुटा  नहीं पाती थी , और उधर मुलायम तथा गृह मंत्री शिंदे आतंकियो को छुड़ाने कि कोशिश कर तुष्टिकरण कि राजनीती को और फलीभूत कर रही थे ।

अंत में मै यही कहना चाहूंगा वास्ताव में ये तथाकथित सेक्युलर नेता इस देश के मुस्लिम समाज के मित्र नहीं अपितु उनके कट्टर दुश्मन है , यह राष्ट्रवादी मुस्लिम समाज को समझना चाहिए , पकिस्तान कि झोली में बैठ कर पलने और मजा लेने वाली कांग्रेस  के प्रति मुसलिमों  में भी रोश है।शाहीन बाग़ मे कांग्रेस के नेतृत्व ने खुले आम अपने को प्रदर्शित किया है जहा भारत विरोधी नारे लगाये जा रहे है, हिन्दूस्तान का नागरिक विभिन्न चैनलो  द्वारा देखते रहे है, इसलिये कांग्रेस को आतंकी संगठन अगर कहा जए तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी।pfi जैसे आतंकी संगठन् को बढावा देने मे कांग्रेस कोई कसर नही छोड रही ।

Wednesday 5 February 2020

दारुल हर्ब से दारुल इस्लाम में परिवर्तन करने की एक प्रक्रिया शाहीन बाग का आंदोलन

chaitanya shree



chaitanya shree मित्रो हमें पहले इसके लिए  इस्लाम के शासन पद्धत्ति को समझना होगा , इस्लाम भूछेत्रीय नातो को नहीं मानता है , इसके रिश्ते -नाते सामाजिक और मजहबी होते है ,अतः ये दैशिक सीमाओं को  नहीं मानते (pan-islamisim) का यही आधार है ,इसी से प्रेरित हिन्दुस्तान का हर मुसलमान कहता है की वह मुसलमान पहले है हिन्दुस्तानी बाद में। 

टीवी चैनेलो में इस्लामिक स्कॉलर व् बुद्धिजीवीओ  का विरोध को समझने के लिए हमें मुस्लिम संप्रदाय की मूलभूत राजनितिक प्रेरणाओं को समझना जरूरी है, जैसे मुस्लिम कानून के अनुस्वार दुनिया दो भागो में बटी है ,एक दारुल इस्लाम (इस्लाम का आवास )और दारुल हर्ब (संघर्ष का देश ).इस्लामिक कानून के अनुस्वार भारत हिन्दुओ और मुसलमानो की साझी मातृभूमि नहीं हो सकती ,यह मुसलमानो की जमीन हो सकती है ,पर बराबरी में रहते हिन्दुओ और मुसलमानो की जमीन नहीं हो सकती ,यह मुसलमानो की जमीन भी तभी हो सकती है जब इस पर मुसलमानो का राज हो। जिस क्षण इस भूमि पर किसी गैर -मुस्लिम का अधिकार हो जाता है यह मुसलमानो की जमीन नहीं रहती ,दारुल इस्लाम के स्थान पर दारुल हर्ब हो जाता है। जब तक कांग्रेस की शासन रही एक मुस्लिम राज था ,क्योकि कांग्रेस का शीर्ष नेत्रित्व इस्लाम को ही मानने वाले थे लेकिन नरेंद्र मोदी के आने से ये देश दारुल हर्ब हो गया जो इस्लाम के मानने वालो नागवारा लग रहा है ,जम्मू कश्मीर की इस्लामिक लड़ाई भी इसी तर्ज़ पर है। हामिद अंसारी ने कोई नई बात नहीं कही उन्होंने इस्लाम धर्म के आधार पर ही अपनी बातो को कहा था। मित्रो जब अंग्रेज भारत पर कब्ज़ा किया था तब भी यही सवाल पैदा हुआ था की भारत दारुल हर्ब है या दारुल इस्लाम। इस विषय पर भारत में ५० वर्षो तक चर्चा हुई की भारत दारुल हर्ब है की दारुल इस्लाम। जिस कारन कई लोग हिजरत कर अफगानिस्तान की ओर कूच कर गए।मित्रो आज की तारिख में इस्लाम के अनुस्वार नरेंद्र मोदी का शासन काल एक दारुल हर्ब है जिसे मुस्लिम बौद्धिक जिहाद के रूप में लड़ रहे है और कश्मीर में हथियारों से। 

इस्लामिक सिद्धांतो के अनुस्वार मुसलमान जेहाद केवल छेड़ ही नहीं सकते बल्कि जेहाद की सफलता के लिए किसी विदेशी मुस्लिम शक्ति को सहायता के लिए बुला भी सकते है और इसी प्रकार यदि भारत के विरुद्ध कोई विदेशी मुस्लिम शक्ति ही जेहाद छेड़ना चाहती है ,तो मुसलमान उसके प्रयास की सफलता के लिए सहायता भी कर सकते है। 

मित्रो आप को जान कर आश्चर्य होगा की एक वक्त जिन्नाह ने गांधीजी को महात्मा और ईशु मशीह से तुलना किया था तब उसका पुर जोर विरोध हुआ था लेकिन बाद में जिन्नाह ने अपनी बात को पलट कर कहा था "गाँधी का चरित्र कितना भी निर्मल हो , मजहबी दृष्टी से वे मुझे किसी भी मुसलमान से ,चाहे वह चरित्रहीन ही क्यों न हो ,निकृष्ट ही दिखेंगे।

मित्रो विचारणीय प्रश्न यह की  मुस्लिम समुदाय कैसे इतना शक्ति शाली बन जाता है की वह अपने नेताओ पर इतना नियंत्रण रखने में सक्षम है  ।  भारत को दारुल हरब से दारुल इस्लाम बनाने की  शाहीन बाग का आंदोलन एक प्रक्रिया   है जो पूरे देश में  इसे फैलाने की कोशिश की जा रही है 

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Tuesday 22 October 2019

बैंकों का विलय अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकता है

chaitanya shree मित्रों भगवा प्रणाम राष्ट्रीय कृत  बैंक अधिक काबिल है की ,यह राष्ट्र के हित के लिए सही है या नहीं सही है इसका विवरण मैं प्रस्तुत करने का कोशिश कर रहा हूं इस विलय के बाद वर्षों से बने हुए यह बैंक बैंकिंग  परिदृश्य से गायब हो जाएंगे.
 राष्ट्रीय कृत बैंक हमारी अर्थव्यवस्था के स्तंभ ही नहीं एक रीड की हड्डी भी साबित हुई है, 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था पिछले 50 वर्षों में राष्ट्रीयकृत बैंकों ने एक स्पष्ट सामाजिक और   उन्मुखथा के साथ एक मजबूत व्यवस्था के निर्माण में असाधारण योगदान  दीया है, जिस समय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था उनकी शाखाओं की संख्या 8000 थी जो अब बढ़कर 90000 हो चुकी है इनमें से 40000 बैंक शाखा ग्रामीण एवं ग्रामीण इलाकों में है, राष्ट्रीयकरण से पहले बैंकिंग के  मामलों में ग्रामीण एवं ग्रामीण इलाके बुरी तरह उपेक्षित थे, राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों द्वारा देश के प्राथमिकता वाले क्षेत्र ऋण दिए गए जिससे हमारी अर्थव्यवस्था को जबर्दस्त फायदा पहुंचा 2008 में जब समूची दुनिया और बैंकिंग क्षेत्र में सुनामी की शिकार थी  उस समय भारतीय बैंकिंग व्यवस्था  के बैंकों को जाता है जो बैंक सार्वजनिक क्षेत्र में ना होते तो देश उस आर्थिक संकट से नहीं बच सकता था सरकार ने जिन छह बैंकों इलाहाबाद बैंक आंध्र प्रदेश बैंक कॉरपोरेशन बैंक यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को हमले का निशाना बनाया है बहुत अच्छे बैंक रहे हैं और अपने-अपने भौगोलिक क्षेत्रों में उन्होंने आर्थिक विकास में जबरदस्त योगदान दिया है, अचानक  इन बैंकों को बंद करने की घोषणा  अनुचित एवं अवांछित है.
 मित्रों आबादी की संख्या की तुलना में बैंक शाखाओं की संख्या दुनिया में अनेक देशों की तुलना में अभी भी काफी कम है हमारे हजारों गांवों में आज भी बैंकों की शाखाएं नहीं है हमारे बैंकों के विस्तार करने की जरूरत है उनके विलय की नहीं देश में बैंकों के विस्तार के लिए और जनता तक उनकी पहुंच के लिए बहुत बड़ी गुंजाइश है ऐसे में जबकि जरूरत इस बात की है कि और अधिक बैंक शाखाएं खोली जाए बैंकों के विलय का नतीजा अनेक शाखाओं के बंद किए जाने के रूप में निकलेगा भारतीय स्टेट बैंक में जब कुछ बैंकों का विलय हुआ था तो हमने देखा है कि उसके फल स्वरुप 7000 बैंक शाखाएं बंद हो गई बैंकों के प्रस्तावित विलय इससे कहीं अधिक बैंक शाखाएं बंद हो जाएंगे देश में बैंक शाखाओं की संख्या को कम करना बेहद नासमझी की बात है
बड़े कारपोरेट सेक्टरों को फायदा पहुंचेगा बड़े बैंकों से आम आदमी को  कोई फायदा नहीं पहुंचेगा, बैंकों के विलय और अपेक्षाकृत कहीं अधिक बड़े बैंकों को बनाने के कुछ दूसरे भी दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं बड़े बैंकों का रुझान बड़े कारपोरेट ग्राहकों की खिदमत करने की तरफ  होगा और मैं आम आदमी की उपेक्षा की प्रवृत्ति होगी इससे राष्ट्रीय कृत बैंकों को सामाजिकता और उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा बैंकों के विलय से निश्चित तौर पर अनेक बैंक शाखाएं बंद हो जाएगी बैंक शाखाओं के बंद होने का मतलब है कि कम शाखाओं मैं अधिक ग्राहक पहुंचेंगे जिससे बैंकिंग सेवा पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ेगा प्रति बैंक शाखा ग्राहक संख्या बढ़ जाएगी और कारगर ग्राहक सेवा पर उसका बुरा असर पड़ेगा

हमारे देश में रोजगार युवाओं के लिए सबसे गंभीर समस्या है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में हर साल हजारों शिक्षित युवाओं को रोजगार मिलता रहा है यदि बैंकों का विलय कर दिया गया और अनेक शाखाएं बंद हो गई तो बैंकों में भर्तियां कम हो जाएंगे इससे शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों में और भी अधिक कमी  आएगी.
बैंकों एवं सरकार का मुख्य काम यह है कि बुरे दिनों की वसूली के लिए सख्त कदम उठाया जाए परंतु बैंकों के विलय के प्रस्तावित कदम से बैंकों का ध्यान विलय से जुड़े मुद्दों पर शिफ्ट हो जाएगा और बुरे दिनों की वसूली का मुद्दा पीछे रह जाएगा सरकार की इस नीति से हमारे बैंक बड़े बैंक बन जाएंगे भारत को बड़े बैंकों की जरूरत नहीं है भूमंडलीय स्तर पर बड़े बैंकों को बहुत जोखिम की चीज पाया गया है जैसा कि अमेरिका में हुआ हमें हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की जरूरत है जो कारगर तरीके से जनता की सेवा कर सके हमें ऐसे बड़े बैंकों की जरूरत नहीं जो केवल बड़े कारपोरेट को फायदा पहुंचाते है अतः बैंकों का विलय
और हमारे देश के हित में नहीं है

माननीय प्रधानमंत्री जी एवं वित्त मंत्री से आग्रह होगा बैंकों के विलय पर एक बार आप पुनर्विचार करें और कैबिनेट स्तर पर इसकी चर्चा जरूर करें.



Thursday 17 October 2019

कोयला कम पूंजी अधिक मुनाफा 100% कोयले में एफडीआई का फैसला, क्या सरकार का एक आत्मघाती फैसला है?

chaitanya shree मित्रों भगवा प्रणाम मित्रों में कोयला क्षेत्र में 100% एफडीआई के खिलाफ हूं ,हमारी सरकार को इस विषय पर पुनर्विचार करने की जरूरत है ,क्यों पुनर्विचार करने की जरूरत है उसका विवरण मैं सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से पेश करने की कोशिश कर रहा हूं .

 निजी करण का सिलसिला 1991 में कांग्रेस के कार्यकाल में शुरू हुआ था जब पावर प्लांटों, निजी स्टील मिलो, एवं उर्वरक कारखानों को अपने स्वयं के इस्तेमाल के लिए खनन की इजाजत दी गई थी ,जिसे सरकार ने कोल इंडिया का 29 .65 हिस्से  दिए जिसमें सरकार की दलील थी कि प्रतिस्पर्धा एवं क्षमता बढ़ेगी और टेक्नोलॉजी का विकास होगा ,मैं उस वक्त के Congress सरकार की बातों से सहमत नहीं था और आज की सरकार के एफडीआई सौ परसेंट के खिलाफ हूं.

 मित्रों आपको मालूम होगा कांग्रेस के सरकार में जब निजीकरण किया गया था उसके बाद कोलगेट का सबसे बड़ा घोटाला उजागर हुआ था  ,निजी क्षेत्रों ने भारत मां की धरती का चीर हरण कर अपने फायदे के लिए दोहन किया था . पूर्व सरकारों एवं अभी की सरकार की दलील थी की निजी करण से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और कोयला क्षेत्र में सर्वोत्तम संभव टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल होगा .मित्रों मैं बता दूं कि इस समय कोल इंडिया पहले के मुकाबले कहीं बेहतर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है ,जिस समय राष्ट्रीयकरण किया गया था उस समय 79 मिलियन टन था जो अब 606 मिलियन टन हो गया है यह बात कोयला खानों के निजीकरण के लिए दी जाने वाली सभी दलील को खारिज करती है.

 मित्रों 1973 में कोयला खानों के राष्ट्रीयकरण से पहले कोयला एक हिंसक और भ्रष्ट कारोबार था निजी कोयला खान के समय कोयला निकालने वाले मजदूर का शोषण चरम शिखर पर था ,उस समय कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं थी मजदूरों के साथ अमानवीय बर्ताव किया जाता था और मजदूरी बहुत कम दी जाती थी.  1969 से 70  के समय मजदूर नेताओं ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाया , उनके आंदोलन के दौरान अनेक मजदूरों ने अपनी जान गवाई और यहां तक कि यूनियन के नेताओं को जेल में डाला गया, कोयला खान मजदूरों और नेताओं के इस बलिदान के फल स्वरुप कोयला खानों का दो चरणों में राष्ट्रीयकरण किया गया 1971 में राष्ट्रीयकरण किया गया ,राष्ट्रीयकरण से कोयला खानों में बेहतर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू किया गया मजदूरों की मजदूरी में वृद्धि हुई उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई भ्रष्टाचार कम हुआ और कोयले के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई और सरकार को मिलने वाली राजस्व भी  बढ़ा भारत सरकार का यह फैसला गलत है जिसमें उन्होंने 100% एफडीआई की है जिसमें जुड़े प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के कार्यकलाप में ,कोल वाशरी, क्रशिंग, coal हैंडलिंग एवं  सिपरेशन शामिल होंगे
सरकार के इस फैसले से अवश्य ही कोयला मजदूरों को नुकसान पहुंचेगा और हो सकता है वे उसी हालत में पहुंच जाएं जिसमें राष्ट्रीयकरण से पहले थे ,यह बात पक्की है कि निजी खान मालिक कोयला मजदूरों को बेहतर सुविधाओं सामाजिक सुरक्षा, उच्च वेतन से वंचित करेंगे ,एक बार फिर कोयला मजदूर निजी खान मालिकों के शोषण के शिकार बन जाएंगे ,कोयला खानों के निजीकरण और कोयला उद्योग में शत-प्रतिशत निवेश की इजाजत की फैसले से राष्ट्रीय हितों को भी नुकसान पहुंचेगा इससे मजदूरों को फिर से शोषण का शिकार होना पड़ेगा इस लिहाज से यह सरकार का एक अमानवीय फैसला भी है.
 आपका चैतन्य श्री

Wednesday 18 September 2019

आर्थिक नीति में नीतिगत बदलावों की जरूरत है

chaitanya shree"यह विचार मेरा निजी है।"
 आर्थिक नीति में नीतिगत बदलावों की जरूरत है।
 मित्रों में कोई अर्थशास्त्री नहीं हूं लेकिन मुझे जो समझ में आता है, उन विचारों को मैं आपके सामने रखना चाहता हूं, अर्थव्यवस्था तभी मजबूत होती है ,जब जनता वित्तीय रूप से मजबूत होती है ,इतिहास में पहली बार हो रहा है कि गरीब व मध्यम वर्ग के लोग अमीरों से ज्यादा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर दे रहे हैं ,अप्रत्यक्ष कर सरकार के खजाने मे corporate कर  से ज्यादा जमा हो  रहे हैं, मित्रों कर प्रणाली की जटिलता और उसमे   होने वाले लगातार बदलाव ने छोटे व्यवसायियों का अस्तित्व बचाए रखना और कारोबार करना  असंभव बना दिया है ,यह जरूरी है कि छोटे व्यवसायियों में विश्वास पैदा किया जाए कि भारतीय प्रणाली उन्हें बढ़ावा देती है ,और उन्हें सुनिश्चित करें कि उनका उन नियमों द्वारा उत्पीड़न नहीं होगा ।
दूसरी बात मित्रों यह अत्यंत आवश्यक है ,कि सरकार क्षेत्रवार नीति से आगे आए जिससे कि अंतरराष्ट्रीय निवेश का उन क्षेत्रों में स्वागत हो सके ,जिसमें भारत कमजोर है और उन क्षेत्रों को संरक्षित किया जाए जिससे भारत मजबूत हो सके ।मित्रों आपको जानकर आश्चर्य होगा दुनिया के वह देश जो शीर्ष अर्थव्यवस्था में शामिल थे ,लगातार अपने उद्योगों को बचाने के लिए उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर रोक लगा रही है ,जो मुक्त बाजार प्रणाली की वकालत करते थे ,और अब वापस अपने उद्योगों को बचाने के लिए बड़े स्तर पर वापस लौट रहे हैं, मित्रो हमारी सरकार को आर्थिक व सामाजिक दायित्व को निभाने के लिए सरकारी संस्थाओं के कल कारखाना में विदेशी पूंजी निवेश करा उसके बाजार को और विकसित करने की जरूरत है हमारी पब्लिक सेक्टर कंपनी राष्ट्र की है, इन्हें बचाने के लिए सरकार को सकारात्मक पहल करने की आवश्यकता है ,शुरू से ही सरकारों की अवधारणा बनी रही है कि सारा पब्लिक सेक्टर घाटे में है, और यह अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है, क्या सरकार इसके कारण ढूंढने की कोशिश करती है, या उसका दोहन करना ही एकमात्र लक्ष्य रह गया है, इन विषयों पर हमें विचार करने की आवश्यकता है। उन्हें जानबूझकर व्यवस्थित तरीके से बर्बादी के मोड़ पर लाया जा रहा है, यह भी एक प्रश्न है इनको बचाने से हमें सभी प्रकार के आर्थिक मौसमों में अर्थव्यवस्था को बचाने और रोजगार  के अवसर प्रदान करने में एक खुशहाल और श्रेष्ठ भारत को बढ़ाने में अभिन्न योगदान रहेगा ऐसा मेरा मानना है। नोट-पब्लिक सैक्टर का मुनाफा2017-18/159635लाख करोड़ थावही घटा उसकी तुलना मे 311,261करोड़ था।

Thursday 13 June 2019

लाखों की जीवनदायिनी गरगा पर हो रहा अतिक्रमण, अपार्टमेंट नदी को कर रहे प्रदूषितः चैतन्य श्री https://bokaromedia.com/?p=9306

chaitanya shreeलाखों की जीवनदायिनी गरगा पर हो रहा अतिक्रमण, अपार्टमेंट नदी को कर रहे प्रदूषितः चैतन्य श्री https://bokaromedia.com/?p=9306

Wednesday 10 October 2018