chaitanya shree मित्रों भगवा प्रणाम राष्ट्रीय कृत बैंक अधिक काबिल है की ,यह राष्ट्र के हित के लिए सही है या नहीं सही है इसका विवरण मैं प्रस्तुत करने का कोशिश कर रहा हूं इस विलय के बाद वर्षों से बने हुए यह बैंक बैंकिंग परिदृश्य से गायब हो जाएंगे.
राष्ट्रीय कृत बैंक हमारी अर्थव्यवस्था के स्तंभ ही नहीं एक रीड की हड्डी भी साबित हुई है, 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था पिछले 50 वर्षों में राष्ट्रीयकृत बैंकों ने एक स्पष्ट सामाजिक और उन्मुखथा के साथ एक मजबूत व्यवस्था के निर्माण में असाधारण योगदान दीया है, जिस समय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था उनकी शाखाओं की संख्या 8000 थी जो अब बढ़कर 90000 हो चुकी है इनमें से 40000 बैंक शाखा ग्रामीण एवं ग्रामीण इलाकों में है, राष्ट्रीयकरण से पहले बैंकिंग के मामलों में ग्रामीण एवं ग्रामीण इलाके बुरी तरह उपेक्षित थे, राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों द्वारा देश के प्राथमिकता वाले क्षेत्र ऋण दिए गए जिससे हमारी अर्थव्यवस्था को जबर्दस्त फायदा पहुंचा 2008 में जब समूची दुनिया और बैंकिंग क्षेत्र में सुनामी की शिकार थी उस समय भारतीय बैंकिंग व्यवस्था के बैंकों को जाता है जो बैंक सार्वजनिक क्षेत्र में ना होते तो देश उस आर्थिक संकट से नहीं बच सकता था सरकार ने जिन छह बैंकों इलाहाबाद बैंक आंध्र प्रदेश बैंक कॉरपोरेशन बैंक यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को हमले का निशाना बनाया है बहुत अच्छे बैंक रहे हैं और अपने-अपने भौगोलिक क्षेत्रों में उन्होंने आर्थिक विकास में जबरदस्त योगदान दिया है, अचानक इन बैंकों को बंद करने की घोषणा अनुचित एवं अवांछित है.
मित्रों आबादी की संख्या की तुलना में बैंक शाखाओं की संख्या दुनिया में अनेक देशों की तुलना में अभी भी काफी कम है हमारे हजारों गांवों में आज भी बैंकों की शाखाएं नहीं है हमारे बैंकों के विस्तार करने की जरूरत है उनके विलय की नहीं देश में बैंकों के विस्तार के लिए और जनता तक उनकी पहुंच के लिए बहुत बड़ी गुंजाइश है ऐसे में जबकि जरूरत इस बात की है कि और अधिक बैंक शाखाएं खोली जाए बैंकों के विलय का नतीजा अनेक शाखाओं के बंद किए जाने के रूप में निकलेगा भारतीय स्टेट बैंक में जब कुछ बैंकों का विलय हुआ था तो हमने देखा है कि उसके फल स्वरुप 7000 बैंक शाखाएं बंद हो गई बैंकों के प्रस्तावित विलय इससे कहीं अधिक बैंक शाखाएं बंद हो जाएंगे देश में बैंक शाखाओं की संख्या को कम करना बेहद नासमझी की बात है
बड़े कारपोरेट सेक्टरों को फायदा पहुंचेगा बड़े बैंकों से आम आदमी को कोई फायदा नहीं पहुंचेगा, बैंकों के विलय और अपेक्षाकृत कहीं अधिक बड़े बैंकों को बनाने के कुछ दूसरे भी दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं बड़े बैंकों का रुझान बड़े कारपोरेट ग्राहकों की खिदमत करने की तरफ होगा और मैं आम आदमी की उपेक्षा की प्रवृत्ति होगी इससे राष्ट्रीय कृत बैंकों को सामाजिकता और उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा बैंकों के विलय से निश्चित तौर पर अनेक बैंक शाखाएं बंद हो जाएगी बैंक शाखाओं के बंद होने का मतलब है कि कम शाखाओं मैं अधिक ग्राहक पहुंचेंगे जिससे बैंकिंग सेवा पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ेगा प्रति बैंक शाखा ग्राहक संख्या बढ़ जाएगी और कारगर ग्राहक सेवा पर उसका बुरा असर पड़ेगा
हमारे देश में रोजगार युवाओं के लिए सबसे गंभीर समस्या है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में हर साल हजारों शिक्षित युवाओं को रोजगार मिलता रहा है यदि बैंकों का विलय कर दिया गया और अनेक शाखाएं बंद हो गई तो बैंकों में भर्तियां कम हो जाएंगे इससे शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों में और भी अधिक कमी आएगी.
बैंकों एवं सरकार का मुख्य काम यह है कि बुरे दिनों की वसूली के लिए सख्त कदम उठाया जाए परंतु बैंकों के विलय के प्रस्तावित कदम से बैंकों का ध्यान विलय से जुड़े मुद्दों पर शिफ्ट हो जाएगा और बुरे दिनों की वसूली का मुद्दा पीछे रह जाएगा सरकार की इस नीति से हमारे बैंक बड़े बैंक बन जाएंगे भारत को बड़े बैंकों की जरूरत नहीं है भूमंडलीय स्तर पर बड़े बैंकों को बहुत जोखिम की चीज पाया गया है जैसा कि अमेरिका में हुआ हमें हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की जरूरत है जो कारगर तरीके से जनता की सेवा कर सके हमें ऐसे बड़े बैंकों की जरूरत नहीं जो केवल बड़े कारपोरेट को फायदा पहुंचाते है अतः बैंकों का विलय
और हमारे देश के हित में नहीं है
माननीय प्रधानमंत्री जी एवं वित्त मंत्री से आग्रह होगा बैंकों के विलय पर एक बार आप पुनर्विचार करें और कैबिनेट स्तर पर इसकी चर्चा जरूर करें.
राष्ट्रीय कृत बैंक हमारी अर्थव्यवस्था के स्तंभ ही नहीं एक रीड की हड्डी भी साबित हुई है, 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था पिछले 50 वर्षों में राष्ट्रीयकृत बैंकों ने एक स्पष्ट सामाजिक और उन्मुखथा के साथ एक मजबूत व्यवस्था के निर्माण में असाधारण योगदान दीया है, जिस समय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था उनकी शाखाओं की संख्या 8000 थी जो अब बढ़कर 90000 हो चुकी है इनमें से 40000 बैंक शाखा ग्रामीण एवं ग्रामीण इलाकों में है, राष्ट्रीयकरण से पहले बैंकिंग के मामलों में ग्रामीण एवं ग्रामीण इलाके बुरी तरह उपेक्षित थे, राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों द्वारा देश के प्राथमिकता वाले क्षेत्र ऋण दिए गए जिससे हमारी अर्थव्यवस्था को जबर्दस्त फायदा पहुंचा 2008 में जब समूची दुनिया और बैंकिंग क्षेत्र में सुनामी की शिकार थी उस समय भारतीय बैंकिंग व्यवस्था के बैंकों को जाता है जो बैंक सार्वजनिक क्षेत्र में ना होते तो देश उस आर्थिक संकट से नहीं बच सकता था सरकार ने जिन छह बैंकों इलाहाबाद बैंक आंध्र प्रदेश बैंक कॉरपोरेशन बैंक यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को हमले का निशाना बनाया है बहुत अच्छे बैंक रहे हैं और अपने-अपने भौगोलिक क्षेत्रों में उन्होंने आर्थिक विकास में जबरदस्त योगदान दिया है, अचानक इन बैंकों को बंद करने की घोषणा अनुचित एवं अवांछित है.
मित्रों आबादी की संख्या की तुलना में बैंक शाखाओं की संख्या दुनिया में अनेक देशों की तुलना में अभी भी काफी कम है हमारे हजारों गांवों में आज भी बैंकों की शाखाएं नहीं है हमारे बैंकों के विस्तार करने की जरूरत है उनके विलय की नहीं देश में बैंकों के विस्तार के लिए और जनता तक उनकी पहुंच के लिए बहुत बड़ी गुंजाइश है ऐसे में जबकि जरूरत इस बात की है कि और अधिक बैंक शाखाएं खोली जाए बैंकों के विलय का नतीजा अनेक शाखाओं के बंद किए जाने के रूप में निकलेगा भारतीय स्टेट बैंक में जब कुछ बैंकों का विलय हुआ था तो हमने देखा है कि उसके फल स्वरुप 7000 बैंक शाखाएं बंद हो गई बैंकों के प्रस्तावित विलय इससे कहीं अधिक बैंक शाखाएं बंद हो जाएंगे देश में बैंक शाखाओं की संख्या को कम करना बेहद नासमझी की बात है
बड़े कारपोरेट सेक्टरों को फायदा पहुंचेगा बड़े बैंकों से आम आदमी को कोई फायदा नहीं पहुंचेगा, बैंकों के विलय और अपेक्षाकृत कहीं अधिक बड़े बैंकों को बनाने के कुछ दूसरे भी दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं बड़े बैंकों का रुझान बड़े कारपोरेट ग्राहकों की खिदमत करने की तरफ होगा और मैं आम आदमी की उपेक्षा की प्रवृत्ति होगी इससे राष्ट्रीय कृत बैंकों को सामाजिकता और उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा बैंकों के विलय से निश्चित तौर पर अनेक बैंक शाखाएं बंद हो जाएगी बैंक शाखाओं के बंद होने का मतलब है कि कम शाखाओं मैं अधिक ग्राहक पहुंचेंगे जिससे बैंकिंग सेवा पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ेगा प्रति बैंक शाखा ग्राहक संख्या बढ़ जाएगी और कारगर ग्राहक सेवा पर उसका बुरा असर पड़ेगा
हमारे देश में रोजगार युवाओं के लिए सबसे गंभीर समस्या है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में हर साल हजारों शिक्षित युवाओं को रोजगार मिलता रहा है यदि बैंकों का विलय कर दिया गया और अनेक शाखाएं बंद हो गई तो बैंकों में भर्तियां कम हो जाएंगे इससे शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों में और भी अधिक कमी आएगी.
बैंकों एवं सरकार का मुख्य काम यह है कि बुरे दिनों की वसूली के लिए सख्त कदम उठाया जाए परंतु बैंकों के विलय के प्रस्तावित कदम से बैंकों का ध्यान विलय से जुड़े मुद्दों पर शिफ्ट हो जाएगा और बुरे दिनों की वसूली का मुद्दा पीछे रह जाएगा सरकार की इस नीति से हमारे बैंक बड़े बैंक बन जाएंगे भारत को बड़े बैंकों की जरूरत नहीं है भूमंडलीय स्तर पर बड़े बैंकों को बहुत जोखिम की चीज पाया गया है जैसा कि अमेरिका में हुआ हमें हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की जरूरत है जो कारगर तरीके से जनता की सेवा कर सके हमें ऐसे बड़े बैंकों की जरूरत नहीं जो केवल बड़े कारपोरेट को फायदा पहुंचाते है अतः बैंकों का विलय
और हमारे देश के हित में नहीं है
माननीय प्रधानमंत्री जी एवं वित्त मंत्री से आग्रह होगा बैंकों के विलय पर एक बार आप पुनर्विचार करें और कैबिनेट स्तर पर इसकी चर्चा जरूर करें.

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