chaitanya shree मित्रों भगवा प्रणाम मित्रों में कोयला क्षेत्र में 100% एफडीआई के खिलाफ हूं ,हमारी सरकार को इस विषय पर पुनर्विचार करने की जरूरत है ,क्यों पुनर्विचार करने की जरूरत है उसका विवरण मैं सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से पेश करने की कोशिश कर रहा हूं .
निजी करण का सिलसिला 1991 में कांग्रेस के कार्यकाल में शुरू हुआ था जब पावर प्लांटों, निजी स्टील मिलो, एवं उर्वरक कारखानों को अपने स्वयं के इस्तेमाल के लिए खनन की इजाजत दी गई थी ,जिसे सरकार ने कोल इंडिया का 29 .65 हिस्से दिए जिसमें सरकार की दलील थी कि प्रतिस्पर्धा एवं क्षमता बढ़ेगी और टेक्नोलॉजी का विकास होगा ,मैं उस वक्त के Congress सरकार की बातों से सहमत नहीं था और आज की सरकार के एफडीआई सौ परसेंट के खिलाफ हूं.
मित्रों आपको मालूम होगा कांग्रेस के सरकार में जब निजीकरण किया गया था उसके बाद कोलगेट का सबसे बड़ा घोटाला उजागर हुआ था ,निजी क्षेत्रों ने भारत मां की धरती का चीर हरण कर अपने फायदे के लिए दोहन किया था . पूर्व सरकारों एवं अभी की सरकार की दलील थी की निजी करण से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और कोयला क्षेत्र में सर्वोत्तम संभव टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल होगा .मित्रों मैं बता दूं कि इस समय कोल इंडिया पहले के मुकाबले कहीं बेहतर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है ,जिस समय राष्ट्रीयकरण किया गया था उस समय 79 मिलियन टन था जो अब 606 मिलियन टन हो गया है यह बात कोयला खानों के निजीकरण के लिए दी जाने वाली सभी दलील को खारिज करती है.
मित्रों 1973 में कोयला खानों के राष्ट्रीयकरण से पहले कोयला एक हिंसक और भ्रष्ट कारोबार था निजी कोयला खान के समय कोयला निकालने वाले मजदूर का शोषण चरम शिखर पर था ,उस समय कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं थी मजदूरों के साथ अमानवीय बर्ताव किया जाता था और मजदूरी बहुत कम दी जाती थी. 1969 से 70 के समय मजदूर नेताओं ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाया , उनके आंदोलन के दौरान अनेक मजदूरों ने अपनी जान गवाई और यहां तक कि यूनियन के नेताओं को जेल में डाला गया, कोयला खान मजदूरों और नेताओं के इस बलिदान के फल स्वरुप कोयला खानों का दो चरणों में राष्ट्रीयकरण किया गया 1971 में राष्ट्रीयकरण किया गया ,राष्ट्रीयकरण से कोयला खानों में बेहतर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू किया गया मजदूरों की मजदूरी में वृद्धि हुई उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई भ्रष्टाचार कम हुआ और कोयले के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई और सरकार को मिलने वाली राजस्व भी बढ़ा भारत सरकार का यह फैसला गलत है जिसमें उन्होंने 100% एफडीआई की है जिसमें जुड़े प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के कार्यकलाप में ,कोल वाशरी, क्रशिंग, coal हैंडलिंग एवं सिपरेशन शामिल होंगे
सरकार के इस फैसले से अवश्य ही कोयला मजदूरों को नुकसान पहुंचेगा और हो सकता है वे उसी हालत में पहुंच जाएं जिसमें राष्ट्रीयकरण से पहले थे ,यह बात पक्की है कि निजी खान मालिक कोयला मजदूरों को बेहतर सुविधाओं सामाजिक सुरक्षा, उच्च वेतन से वंचित करेंगे ,एक बार फिर कोयला मजदूर निजी खान मालिकों के शोषण के शिकार बन जाएंगे ,कोयला खानों के निजीकरण और कोयला उद्योग में शत-प्रतिशत निवेश की इजाजत की फैसले से राष्ट्रीय हितों को भी नुकसान पहुंचेगा इससे मजदूरों को फिर से शोषण का शिकार होना पड़ेगा इस लिहाज से यह सरकार का एक अमानवीय फैसला भी है.
आपका चैतन्य श्री
निजी करण का सिलसिला 1991 में कांग्रेस के कार्यकाल में शुरू हुआ था जब पावर प्लांटों, निजी स्टील मिलो, एवं उर्वरक कारखानों को अपने स्वयं के इस्तेमाल के लिए खनन की इजाजत दी गई थी ,जिसे सरकार ने कोल इंडिया का 29 .65 हिस्से दिए जिसमें सरकार की दलील थी कि प्रतिस्पर्धा एवं क्षमता बढ़ेगी और टेक्नोलॉजी का विकास होगा ,मैं उस वक्त के Congress सरकार की बातों से सहमत नहीं था और आज की सरकार के एफडीआई सौ परसेंट के खिलाफ हूं.
मित्रों आपको मालूम होगा कांग्रेस के सरकार में जब निजीकरण किया गया था उसके बाद कोलगेट का सबसे बड़ा घोटाला उजागर हुआ था ,निजी क्षेत्रों ने भारत मां की धरती का चीर हरण कर अपने फायदे के लिए दोहन किया था . पूर्व सरकारों एवं अभी की सरकार की दलील थी की निजी करण से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और कोयला क्षेत्र में सर्वोत्तम संभव टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल होगा .मित्रों मैं बता दूं कि इस समय कोल इंडिया पहले के मुकाबले कहीं बेहतर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है ,जिस समय राष्ट्रीयकरण किया गया था उस समय 79 मिलियन टन था जो अब 606 मिलियन टन हो गया है यह बात कोयला खानों के निजीकरण के लिए दी जाने वाली सभी दलील को खारिज करती है.
मित्रों 1973 में कोयला खानों के राष्ट्रीयकरण से पहले कोयला एक हिंसक और भ्रष्ट कारोबार था निजी कोयला खान के समय कोयला निकालने वाले मजदूर का शोषण चरम शिखर पर था ,उस समय कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं थी मजदूरों के साथ अमानवीय बर्ताव किया जाता था और मजदूरी बहुत कम दी जाती थी. 1969 से 70 के समय मजदूर नेताओं ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाया , उनके आंदोलन के दौरान अनेक मजदूरों ने अपनी जान गवाई और यहां तक कि यूनियन के नेताओं को जेल में डाला गया, कोयला खान मजदूरों और नेताओं के इस बलिदान के फल स्वरुप कोयला खानों का दो चरणों में राष्ट्रीयकरण किया गया 1971 में राष्ट्रीयकरण किया गया ,राष्ट्रीयकरण से कोयला खानों में बेहतर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू किया गया मजदूरों की मजदूरी में वृद्धि हुई उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई भ्रष्टाचार कम हुआ और कोयले के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई और सरकार को मिलने वाली राजस्व भी बढ़ा भारत सरकार का यह फैसला गलत है जिसमें उन्होंने 100% एफडीआई की है जिसमें जुड़े प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के कार्यकलाप में ,कोल वाशरी, क्रशिंग, coal हैंडलिंग एवं सिपरेशन शामिल होंगे
सरकार के इस फैसले से अवश्य ही कोयला मजदूरों को नुकसान पहुंचेगा और हो सकता है वे उसी हालत में पहुंच जाएं जिसमें राष्ट्रीयकरण से पहले थे ,यह बात पक्की है कि निजी खान मालिक कोयला मजदूरों को बेहतर सुविधाओं सामाजिक सुरक्षा, उच्च वेतन से वंचित करेंगे ,एक बार फिर कोयला मजदूर निजी खान मालिकों के शोषण के शिकार बन जाएंगे ,कोयला खानों के निजीकरण और कोयला उद्योग में शत-प्रतिशत निवेश की इजाजत की फैसले से राष्ट्रीय हितों को भी नुकसान पहुंचेगा इससे मजदूरों को फिर से शोषण का शिकार होना पड़ेगा इस लिहाज से यह सरकार का एक अमानवीय फैसला भी है.
आपका चैतन्य श्री

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