गरिमामयी स्थान संसद में संसादो द्वारा उत्पात मचाना क्या लोकतंत्र का यही प्रयोग है, घटनाओ को देखते हुए मेरे मन में कई तरह के सवाल उत्पन्न हो रहे है जो मै नीचे आपलगो के साथ चर्चा करना चाहता हूँ।
पश्चिमी देशो कि राज्य व्यवस्था का अध्यन कर हमलोगो ने संसद , प्रशासन ,एवं जुडिसियल सिस्टम को अपनया था , भारत कि संसदीय लोकतंत्र का राज्य प्रणाली के रूप में अपनाया गया था , लेकिन लोकतंत्र के अभिवावक राजधर्म भूल चुके है , प्रशासन भ्रष्ट हो चूका है , समाज स्वार्थी बन गया है , मीडिया लोकतंत्र का अभिन्न अंग भी अपनी निचली स्तर तक जा चुका है , भारतीय जनता ने जिस लोकतंत्र को अंगीभूत किया था वो कभी परिवारवाद , कभी तानाशाही , कभी गुंडागर्दी , कभी दमनकारी तथा भ्रस्ट तंत्र सिद्ध हो चूका है।
संविधान को लोग बहुमत के आधार पर संशोधितं करते रहते है , जिससे राजनेता अपनी वोट कि राजनीती के तुष्टिकरण को भुनाने के लिए करते है ,इसकी मिसाल इंद्रा गांधी , राजीव गांधी , सोनिए गांधी दे चुके है।
कुछ सवालो का जवाब आप लोगो के साथ मिलकर ढूंढ़ना चाहता हूँ -:
अपराधियो को चुनाव लड़ने पर कोई रोक क्यों नहीं लगाया जा रहा है।
प्रशासन में काम करने वाले लोगो को संविधान का समर्थन प्राप्त है , बिना राज्य पाल के अनुमाति के उनपर कोई अभियोजन कोर्ट में नहीं चलाया जा सकता है , हमारे देश का नागरिक इनका खुल कर प्रतिवाद नहीं कर सकता , अगर करता है तो यही सरकारी अधिकारी उस देश के नागरिक को किसी अभियोजन में फसा देते है क्या यही लोकतंत्र है ?
और देखिए संसद में चुने हुए नेता के खिलाफ न्यायलय कोई अभियोग नहीं चला सकता ,या कोई आम नागरिक साधारण आलोचना भी नहीं कर सकता अगर करता है तो उस विशेष अधिकार हनन कि कार्यवाही कि जाती है , सवाल है कि क्या हमारी न्यायिक प्रणाली को ये चंद नेता पंगु बनाने में लगे है।संसद में ये लोग गलत काम करे , लड़ाई झगड़ा करे उठा -पटक करे , इनका कोई मई -बाप नहीं है। क्या ये न्यायलय से भी सर्वोच्च है , जिस पर हमें विचार करना होगा।
क्या शासन को चलाने के लिए ४० - ५० प्रतिशत लाने वाला व्यक्ति ८० प्रतिशत लाने वाला व्यक्ति से अच्छा प्रशासन चला सकता है ?
क्या अज्ञानी व्यक्ति राजनेता बन सकता है ?
क्या पढ़े लिखे व्यक्ति जो गुंडागर्दी नहीं कर सकते वो राजनीती नहीं कर सकते ?
क्या न्यायलय शासन कि आलोचना ही कर सकता है उस पर दिशा - निर्देश या कार्यवाही नहीं कर सकता ?
क्या आज के नेता लोकतंत्र के प्रतिनिधि है या ये जनप्रतिनिधियो का तंत्र है , जो जैसे चले ठीक , लोकतंत्र में जनता को केवल मातदान करने का अधिकार है, मेरे ख़याल से चुनाव में निर्वाचित जनप्रतिनिधि जनमत के अनुसार नहीं होते , लोकतंत्र में जनमत का महत्त्व केवल चुनाव तक ही सीमित है , चुनाव के बाद राजनेताओ को जनता से कोई मतलब नहीं रहता है क्या यह होना चाहिए।
राजनितिक नेताओ द्वारा किए जानेवाले भ्रस्टाचार तथा तथा अलोकतांत्रिक व्यवहार के सन्दर्भ में प्रतिदिन आनेवाले समाचारो के कारण लोकतंत्र से विश्वास उठ चूका है , सामान्य जनता संभ्रमित है एवं वह लाचार होकर सर्व अत्याचार सह रही है। भारत कि सामान्य जनता सत्ता में राजनितिक परिवर्तन करने के अपेक्षा प्रचलित लोकतान्त्रिक व्यवस्था में ही परिवर्तन लाने कि इक्षा करने लगी है।

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