Wednesday, 13 July 2022

(जनसंख्या नियंत्रण कानून) सत्य को प्रमाण की क्या आवश्यकता है

chaitanya shreechaitanya shree सत्य को प्रमाण की क्या आवश्कता है ? (जनसंख्या नियंत्रण कानून)

प्रधान मंत्री नरेंद्र ने १५ अगस्त, २०१९  को लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हुए जनसँख्या नियंत्रण की बात की थी ,उन्होंने कहा था की जो छोटा परिवार रख रहे है वह भी एक प्रकार से देश भक्ति कर रहे है ,प्रधानमंत्री जी  ने कहा था परिवारों को की आप दो बच्चों तक ही सीमित रहिये , परन्तु  लोगो ने  एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया परन्तु आप को ये समझाना होगा  इसकी जरूरत क्यों पड़  रही है ?  
                     मित्रो १९७६ में संविधान के ४२ वे संसोधन के तहत सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची में जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन को जोड़ा गया था जो (हम दो हमारे दो ) के रूप में पुरे भारत में प्रचार माद्यम से  भारत में फैलाया गया था। जिसके तहत केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकार को जनसँख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया है ,इस हिसाब से जो राज्य सरकारे जनसँख्या नियंत्रण पर कानून बनाने का मन बना रही है वे संवैधानिक दायरे में रह कर ही कार्य कर रही है।  

                     मित्रो आप को जान कर आश्चर्य होगा की स्वतंत्रता के बाद से अब तक जनसँख्या नियंत्रण पर विभिन्न दलों  के सांसद ३५ बिल पेश कर चुके है जीने १५ बिल कांग्रेस सांसदों  की ओर से पेश किए गए है और मुझे ख़ुशी है की कई राजनितिक दलो के नेताओ ने इस पर कानून बनाने की सहमति जाहिर की है और अपनी आवाज मुखर की है। 

                      मित्रो  मै  यह नहीं समझ पा रहा हूँ की कुछ विपक्षी नेता इसके विरोध में खड़े क्यों है ? क्या उनका  देश को आर्थिक रूप देश को पीछे धकेलने की मंशा तो नहीं है ? मै असम  के मुख्यमंत्री  श्री हिमंत बिश्वा शर्मा जी को धन्यवाद् देता हूँ की उन्होंने इस विषय पर अपने राज्य में पहल की  और मुसलमानो से परिवार नियोजन अपनाने का अनुरोध भी किया।  मित्रो यह सत्य है की स्वतंत्रता के बाद से मुस्लिमो की जनसँख्या वृद्धि २९. ३  हो गयी है और हिन्दुओ की १०. ९  प्रतिसत , से वृद्धि हो रही है। जो देश की आर्थिक चुनौतिओं को दीमक की तरह चाट रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री  योगी आदित्य नाथ जी ने जनसँख्या नियंत्रण पर अपने प्रदेश की जनता से सुझाव मांगे है जो अति सराहनीय है जिसे २०२२ में लागू किये जाने की आशा है जो की एक सराहनीय पहल है। 

                    माननीय  प्रधान मंत्री जी  से आग्रह होगा की जनसंख्या नियंत्रण पर उचित एवं कठोरतम कानून बना कर सरकार  की आर्थिक बोझ को कम करने की कोशिश करेंगे जो देश की जरूरत है। 
                                                                                                              आपका  
                                                                                                             चैतन्य श्री

Monday, 11 July 2022

जनसंख्या नियंत्रण कानून का इस्लामिक विरोध

chaitanya shreechaitanya shree मित्रो हमें पहले इसके लिए  इस्लाम के शासन पद्धत्ति को समझना होगा , इस्लाम भूछेत्रीय नातो को नहीं मानता है , इसके रिश्ते -नाते सामाजिक और मजहबी होते है ,अतः ये दैशिक सीमाओं को  नहीं मानते (pan-islamisim) का यही आधार है ,इसी से प्रेरित हिन्दुस्तान का हर मुसलमान कहता है की वह मुसलमान पहले है हिन्दुस्तानी बाद में।

टीवी चैनेलो में इस्लामिक स्कॉलर व् बुद्धिजीवीओ  का विरोध को समझने के लिए हमें मुस्लिम संप्रदाय की मूलभूत राजनितिक प्रेरणाओं को समझना जरूरी है, जैसे मुस्लिम कानून के अनुस्वार दुनिया दो भागो में बटी है ,एक दारुल इस्लाम (इस्लाम का आवास )और दारुल हर्ब (संघर्ष का देश ).इस्लामिक कानून के अनुस्वार भारत हिन्दुओ और मुसलमानो की साझी मातृभूमि नहीं हो सकती ,यह मुसलमानो की जमीन हो सकती है ,पर बराबरी में रहते हिन्दुओ और मुसलमानो की जमीन नहीं हो सकती ,यह मुसलमानो की जमीन भी तभी हो सकती है जब इस पर मुसलमानो का राज हो। जिस क्षण इस भूमि पर किसी गैर -मुस्लिम का अधिकार हो जाता है यह मुसलमानो की जमीन नहीं रहती ,दारुल इस्लाम के स्थान पर दारुल हर्ब हो जाता है। जब तक कांग्रेस की शासन रही एक मुस्लिम राज था ,क्योकि कांग्रेस का शीर्ष नेत्रित्व इस्लाम को ही मानने वाले थे लेकिन नरेंद्र मोदी के आने से ये देश दारुल हर्ब हो गया जो इस्लाम के मानने वालो नागवारा लग रहा है ,जम्मू कश्मीर की इस्लामिक लड़ाई भी इसी तर्ज़ पर है। हामिद अंसारी ने कोई नई बात नहीं कही उन्होंने इस्लाम धर्म के आधार पर ही अपनी बातो को कहा था। मित्रो जब अंग्रेज भारत पर कब्ज़ा किया था तब भी यही सवाल पैदा हुआ था की भारत दारुल हर्ब है या दारुल इस्लाम। इस विषय पर भारत में ५० वर्षो तक चर्चा हुई की भारत दारुल हर्ब है की दारुल इस्लाम। जिस कारन कई लोग हिजरत कर अफगानिस्तान की ओर कूच कर गए।मित्रो आज की तारिख में इस्लाम के अनुस्वार नरेंद्र मोदी का शासन काल एक दारुल हर्ब है जिसे मुस्लिम बौद्धिक जिहाद के रूप में लड़ रहे है और कश्मीर में हथियारों से।

इस्लामिक सिद्धांतो के अनुस्वार मुसलमान जेहाद केवल छेड़ ही नहीं सकते बल्कि जेहाद की सफलता के लिए किसी विदेशी मुस्लिम शक्ति को सहायता के लिए बुला भी सकते है और इसी प्रकार यदि भारत के विरुद्ध कोई विदेशी मुस्लिम शक्ति ही जेहाद छेड़ना चाहती है ,तो मुसलमान उसके प्रयास की सफलता के लिए सहायता भी कर सकते है।

मित्रो आप को जान कर आश्चर्य होगा की एक वक्त जिन्नाह ने गांधीजी को महात्मा और ईशु मशीह से तुलना किया था तब उसका पुर जोर विरोध हुआ था लेकिन बाद में जिन्नाह ने अपनी बात को पलट कर कहा था "गाँधी का चरित्र कितना भी निर्मल हो , मजहबी दृष्टी से वे मुझे किसी भी मुसलमान से ,चाहे वह चरित्रहीन ही क्यों न हो ,निकृष्ट ही दिखेंगे।

मित्रो विचारणीय प्रश्न यह की  मुस्लिम समुदाय कैसे इतना शक्ति शाली बन जाता है की वह अपने नेताओ पर इतना नियंत्रण रखने में सक्षम है ?

इसलिए जनसंख्या नियंत्रण कानून का इस्लाम विरोध करता है उनका सबसे बड़ा उद्देश्य जनसंख्या बढ़ाना है यह एक इस्लामिक जनसंख्या जिहाद है। जिसकी शुरुआती प्रयास असम और बंगाल मे  मोहम्मद अली जिन्ना ने किया था अगर उनकी जनसंख्या बढ़ जाती है तो राजनीतिक रूप से सामाजिक रूप से धार्मिक रुप से यह मजबूत होते हैं तो इनका काम इनका मंतव्य उनका विचार ही सरकार पर थोपा जाएगा और उसको क्रियान्वित किया जाएगा जो कांग्रेस पिछली सरकारों में करती आई है। योगी जी ने बातें छेड़ी है  तो दूर तलक तो जाएगी  ही और यह राष्ट्रीय मुद्दा बनना जरूरी भी है जनसंख्या नियंत्रण कानून अगर ना बने तो हिंदुस्तान में भुखमरी आने में कोई देरी नहीं होगी। लोगों को देश मे अच्छा काम अच्छा खाना अच्छा शहर अच्छी सफाई  चाहिए तो  जनसंख्या नियंत्रण कानून बहुत ही जरूरी है, जिसका भारत के सभी नागरिकों को समर्थन करना चाहिए






Saturday, 9 July 2022

भारत सरकार धर्मांतरण के खिलाफ कठोर कानून बनाएं

chaitanya सरकार धर्मान्तरण के खिलाफ कठोर कानून बनाए
chaitanya shree
आदरणीय मोहन भागवतजी ने जो कहा था उसमे कोई गलती नहीं थी ,हिन्दुस्तान के नाम का मतलब ही यही है ,जहाँ हिन्दुओ का निवास होता हो या रहते है। यहाँ जितने धर्म को माननेवाले है उन सभी के पूर्वजो का इतिहास हिन्दू सभ्यता से रहा है , हमारे हिन्दू भाई जो इस्लाम धर्म को तलवार के नोक पर अपनाये उनकी पीढ़ी हिंदुत्व की ही थी इसलिए हिंदुस्तान की आत्मा को अगर हिंदुत्व कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आदरणीय मोहन भागवतजी की बात तर्कसंगतहै।
मित्रो आपको जान कर आश्चर्य होगा भारत तथा नेपाल के अतिरिक्त विश्व के सभी देश धर्म पर आधारित है। केवल इन दो देशो के संविधान में "सेक्युलर" शब्द जोड़ा गया है अन्य किसी भी देश के संविधान में "सेक्युलर " शब्द नहीं है। अमेरिका "सेकुलरिज्म ह्यूमन राइट "के लिए सभी देशो में आदर्श माना जाता है ,वहाँ राष्ट्रपती को सपथ लेनी होती है तो सर्वप्रथम चर्च जाना होता है तथा वहाँ के पादरी उन्हें शपत दिलाते है और जब संसद का अधिवेसन आरम्भ होता है तो बाइबिल का पाठ होता है , जहाँ तक मुझे पता है जितने भी यूरोपीय देश है वहां भी बाइबिल का ही पाठ होता है। जापान के महाराज तथा सम्राट को बौद्ध धर्म का रक्षक घोषित किया गया है। इंग्लैंड में प्रोटेस्टेंट ईसाई बने बिना वहाँ कोई भी प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। प्रत्येक देश में ऐसा कुछ न कुछ होता है
उत्तरपाड़ा के महर्षि अरविन्द के प्रसिद्ध भाषण में उन्होंने कहा था "हिंदुत्व तथा राष्ट्रयत्व अभिन्न है ,भारत का राष्ट्रयत्व केवल हिंदुत्व है , और कुछ नहीं। "
आपको जान कर आश्चर्य होगा इसी हिन्दुस्तान में धर्मनिर्पेक्ष विचारधारा में हिन्दू ,ईसाई ,तथा मुसलमान सभी सामान है तब भी इस्लाम तथा ईसाई बहुल राज्यों में हिन्दू मार खा रहे है हिन्दू मूल निवासी है ,तब उनकी ऐसी दुर्दशा है।
हिदुस्तान का मूल तत्त्व अथवा मूल निवासी हिन्दू है तो हम सभी हिन्दुस्तानी है ,हिन्दुस्तानियों में सभी मुस्लिम क्रिस्चन इत्यादि का मूल तत्त्व हिन्दू है कही -न कही किसी न किसी तरह उन सभी के पूर्वज हिन्दू ही रहे है अतः यह हिन्दुस्तान है। यह देश तथा तथा संस्कृति हिन्दुओ की है अतः यह हिन्दू राष्ट्र है ,हिन्दू राष्ट्र का मतलब यहाँ राम राज्य से है जहा किसी भी धर्म और संप्रदाय के मानने वालो को सामान दृष्टिकोण और और सौहार्द पूर्वक रहने के लिए है।
मेरा मानना है की अगर सरकार धर्मान्तरण के खिलाफ कठोर कानून बनाती है तो सारी समस्याओ का जड़ समाप्त हो जायेगा ,विपक्ष को भी अपना द्रिस्टीकोण स्पष्ट करना चाहिए,जनता भी विपक्ष का रुख जानना चाहती है। मै मानता हूँ ,की सरकार धर्मान्तरण के खिलाफ कठोर कानून बनाए और हिन्दुस्तान की आत्मा को जख्मी होने से बचाए।
आपका चैतन्य श्री

Uniform Civil code in India

chaitanya shreechaitanya shree कब तक सामान नागरिकता संहिता का विरोध कर असहिष्णुता का कलंक भारत का नागरिक सहता रहेगा ?
मित्रो सबसे पहले आपको ये समझना होगा की अनुच्छेद ४४ है क्या ? अनुच्छेद ४४ में कहा गया है "भारत समस्त राज्य क्षेत्र में नागरीको के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा। " डॉ भीम राव अम्बेडकर भी इसके कड़े समर्थक थे।
मित्रो कांग्रेस ने वोट की राजनीती तथा अपने घटते जनाधार को देखते हुए उन्होंने एक वर्ग के लिए तुष्टिकरण की निति अपनाई तथा सामान नागरिक संहिता के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया ,जिसका परिणाम यह हुआ की देश के एक वर्ग में भारतीय संविधान के प्रति श्रद्धा व् आस्था काम हो गयी ,और उनमे विशेष सुविधाए प्राप्त करने की और लालसा बढ़ गयी। यह देश की विडम्बना है की जिस व्यक्ति ने संविधान की रखवाली की और निर्माण किया ११ अक्टूबर १९५१ को नेहरू मंत्री मंडल से त्याग पत्र दे दिया था। डॉ ाबमेडकर ने त्याग पत्र देते वक़्त अपने वक्तव्य में कहा था " उनके कठिन प्रयासों के बावजूद भी वंचित वर्ग पीड़ित हो रहा है और इसके विपरीत मुसलमानो की देखभाल पर जरूरत से ज्यादा ही ध्यान दिया जा रहा है , और प्रधान मंत्री (पंडित नेहरू )अपना सारा समय और ध्यान मुसलमानो की सुरक्षा में ही व्यतीत करते है। उपरोक्त परिस्थिति में उनके मंत्रिमंडल में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। "
मित्रो मजे की बात तो यह है की नेहरू ,इंदिरा , के बाद भारत में जितने सेक्युलर दल हुए सभी ने अपना विधवा विलाप शुरू कर दिया सिर्फ- सिर्फ तुष्टि करन के लिए। कांग्रेस ने तो मुस्लिम वोट के खातिर भारतीय संविधान की मूल स्वतंत्रता तथा समानता की भावना से विश्वासघात तो किया ही वही आंबेडकर के नाम से वोट बटोरने वाले तथा लोहिया का गीत गाने वाले पार्टिया भी स्वार्थवश अपने पथ से विचलित हो गई। वे भी आंबेडकर व् लोहिया मार्ग से भटक गए।
इस विषय पर मुस्लिम समाज दो भागो में बटा  हुआ है , एक रूढ़िवादी समाज तथा आधुनिक पढ़ा लिखा समाज।
पहले मुस्लिम रूढ़ी वादी समाज की चर्चा करते है जिसका नेतृत्व मौलवी अब्दुल हमीद नोमानी का नाम आता है जिन्होंने कहा है यह सामान नागरिक संहिता अव्यवहारिक है तथा समस्त मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध है. मौलाना अब्दुल रहीम मुजादि ने कहा है की "मुसलमानो को अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करनी है तो उन्हें अपने मामलो को देश की अदालतों में नहीं ले जाना चाहिए। जयपुर के मौलाना मजदी अदालतों के बहिष्कार की रट लगते फिर रहे है। दारुल उलूम ,देवबंद के मुफ्तियों के अनुस्वार महिलाओं की कमाई शरीयत की नज़र में हराम है ,और महिलाओं को पुरषो के साथ काम करना हराम है , दोस्तों मेरा मानना है की अगर यह समुदाय इस तरह की सोच रखेगा तो उन्हें शरीयत के उन कानूनों को भी मानना  चाहिए जिसमे चोरी ,डकैती ,क़त्ल , रेप इत्यादि का दण्ड मौत है या शरीर के आंगो को काट देना है। मित्रो हिन्दुस्तान का कानून सहिष्णु है जिसे मुस्लिम महिलाओं को ताकत मिलेगी और वो बढ़ चढ़ कर देश की तरक्की में भाग लेंगी इस पर देश को विचार करना होगा।
दूसरी तरफ अनेक मुस्लिम चिंतक व् विचारक न्याधीश ,अध्यापक तथा दूसरे विद्वान है, इनमे उल्लेखनीय है न्यायमूर्ति मुहम्मद करीम छागला ,न्यायमूर्ति म उ बेग ,ये लोग संविधान के अनुच्छेद ४४ को अतिशीघ्र लागू करना चाहते है। आरिफ मोह्हमद खान जैसे राष्ट्रवादी नेता जो राजीव गांधी के काल से ही शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायलय के फैसले को सही ठहराया है तो इसे प्रोफ ताहिर महमूद ने सही मन है अल्पसंख्यक मामलो की मंत्री नज़्म हेपतुल्लाह ने "सबका साथ सबका हाथ "कहते हुए मुस्लमान महिलाओं की इज़्ज़त तथा सम्मान की बात कही है पत्रकार शेखर गुप्ता ने इसके विरोध को निर्रथक कहा है।
मित्रो अगर मैं निष्पक्ष रूप से इसे देख्ता हूँ तो ऐसा लगता है की संविधान का प्रमुख अनुच्छेद ४४ आखिर कब तक मरणासन्न इस्थिति में पड़ा रहेगा, जिसका जवाब हम सब को मिलकर ढूंढना होगा।
आपका चैतन्य श्री

Sunday, 23 January 2022

उत्तर प्रदेश की फिक्र कर नादान,सपा से कयामत आने वाली है।

उत्तर प्रदेश की फिक्र कर नादां , सपा से क़यामत आने वाली है

chaitanya 
                               "  उत्तर प्रदेश   की फिक्र कर नादां , सपा से क़यामत आने वाली है
                                    तेरी बर्बादियो  के चर्चे है आसमानों में


                                 न संभाले  तो फ़ना हो जाओगे उत्तर प्रदेश  वालो
                                जातियों में बटकर तुम्हारी दासता तक न मिलेगी दास्तानों में


योगीजी सुशासन , उन्नती एवं    शांतिपूर्ण अस्तित्व के  पक्षधर है . लेकिन हमें (सभी क्षेत्रो   में  ) एक निर्णायक युद्ध लड़ना पड़ेगा ,  , भविष्य हमें इसलिये स्मरण नहीं रखेगा की हमने कितने , मंदिर, चर्च , ,गुरुद्वारे , या मस्जिद , बनवाई , हमें इसलिये जाना जायेगा की हमने आने वाली नस्ल  को कितनी सुरक्षित उत्तरप्रदेश  सौप सके ,सुरक्षित उत्तरप्रदेश   एक बहुत बड़ी बात है , यथार्त के धरातल पर उतर कर उन सारी परीस्थितियो  का आकलन और निर्धारण करना होगा।इसलिए सोच समझ कर वोट दे जाती, संप्रदाय से उठ कर उत्तरप्रदेश   के नागरिको को घर से बहार निकलना होगा और आने वाली नस्ल को सुरक्षित उत्तरप्रदेश  सौपने के लिए श्री नरेद्र मोदीजी  एवं   योगीजी  के हाथो को मजबूत करना होगा। 

Saturday, 13 November 2021

गाँधी के आंदोलन से देश आज़ाद नहीं हुआ वीर सॉवरकर एवं नेताजी की कूटनीति एवं क्रांतिकारियों का बलिदान ने देश को आज़ादी दिलाई

chaitanya shree गाँधी के आंदोलन से  देश आज़ाद नहीं हुआ वीर सॉवरकर  एवं नेताजी की कूटनीति एवं क्रांतिकारियों  का बलिदान  ने  देश को आज़ादी दिलाई।  
 कंगना रौनात ने जो बाते  कही मै  उसका समर्थन करता हूँ , हिन्दुओ ने देश में मोदी सरकार के आने पर ही आज़ादी महसूस किया है , कुछ बाते है जो हिन्दुस्तान की जनता नहीं जानती है आपके सामने मै  देश की आज़ादी की कुछ घटनाओ का वर्णन मै  नीचे कर रहा हूँ। 
सन १९२६   की एक घटना है , चन्द्र शेखर आजाद अंग्रेजो से बचकर वैक्तिगत रूप से बापू से मिले  थे  और सिर्फ उन्हें इतना कहा था - बापू हमारे  दिलो में आपके लिये बड़ा सम्मान है , सारा राष्ट्र आपका सम्मान करता है ,कृपया आप हम पर  एक उपकार कर दे अपने वैक्तिगत संबोधनों में हमें आतंकवादी न कहा करे ,इससे हमें दुःख होता है .
बापू ने जवाब दिया -
" तुम्हारा  मार्ग हिंसा का है और हिंसा का अवलंबन लेने वाला हर व्यक्ति   मेरी नज़र में आतंकवादी है. ."
चन्द्रशेखर वापस आ गये.
जो बापू के अनुयाई  थे  वह नेहरु और बापू के प्रभाव में क्रांतिकारियों को तो हे दृष्टी से देखते थे , परन्तु जब ये अहिंसक किसी घटना के कारन ब्रिटिश  जुल्म के  कोपभाजन बनते थे,और पुलिस उन्हें मार -मारकर बेहाल कर देती थी, तो इस अत्याचार का क्रांतिकारियों पर बड़ा विपरीत असर पड़ता था .
 भगत सिंह   तब असेंबली के बहार चरखा लेकर नहीं गए थे, उन्होंने असेंबली के बहार कोई "वैष्णव जन तेने कहिये " की गुहार नहीं लगाई थी . वह किसी की हत्या भी नहीं करना चाहते थे , उनके हाथ में  बम  था , जिसकी गूँज उस दिन लाहोर से लन्दन  तक गूंजी थी . सारा जीवन लड़े 

 , पर शेरो की तरह रहे.
           मर कर भी न जायेगी , दिल से वफ़ा की उल्फत ,
           मेरी मिटटी से भी खुसबू -ए -वतन आयेगी .
  मेरा सवाल
 मेरा सवाल कांग्रेसी और गांधीवादियों से है , बापू समेत क्या किसी में भी यह हिम्मत नहीं  हुई की "लार्ड इरविन " को यह कह सकते की हम तब तक कोई  समझौता नहीं कर सकते जब तक इन क्रांतिकारियों को अंग्रेज  छोड़ नहीं देते ? क्या हो जाता अगर जेल के  बहार भूख हड़ताल का ढोंग करने वाले  ने जेल के अन्दर इस मुद्दे पर "भूख हड़ताल" की होती की पहले भगत सिंह और उनके साथियो को छोड़ो ,उन्होंने किसी की हत्या नहीं की है, केवल धमाका किया है और उन पर चलाये जा रहे मुकदमे अंग्रेज वापस ले ?
 अगर ऐसा होता तो भारत का इतिहास स्वर्णिम हो जाता ,भगत सिंह को फासी  के तख्ते पर झुलाने की आज्ञा  हो गयी और गाँधी इरविन पैक्ट भी उसी वर्ष हो गया .
   तीसरी घटना  देश की आज़ादी का? १९४७ की आज़ादी की एक बहुत ही दिलचस्प घटना है जिसका  लोगो को बहुत  कम जानकारी है ,द्वितीय विश्व युद्ध के वक़्त  अंग्रेज  भारतीयों को अपनी सेना में भर्ती कर रहे थे और युद्ध के लिए अपने देश भेज रहे थे जिसका समर्थन कूटनीतिक रूप से सावरकर ने समर्थन किया था ,उनका विश्वास था की हमारे देश वासी आधुनिक हथियारों से लैस अपनी ट्रेनिंग पूरी कर लेंगे जो बाद में अपने देश के लिए काम आएंगे , जब द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म  हुआ तो लाखो की तादाद में भारतीय सेना के लोग बेरोजगार हो गए वे वापस भारत आ गए जिससे उनके भड़कने व् निजी सेनाओ , जय हिन्द की सेना में भर्ती का डर  था जो अंग्रेजो के लिए खतरनाक साबित होने वाला था ,यही डर  देश को आज़ाद करने में  एक वरदान साबित हुआ। 

                                                                                                               आपका चैतन्य श्री 

Tuesday, 13 July 2021

सत्य को प्रमाण की क्या आवश्कता ? (जनसंख्या नियंत्रण कानून)

chaitanya shree सत्य को प्रमाण की क्या आवश्कता ? (जनसंख्या नियंत्रण कानून)

प्रधान मंत्री नरेंद्र ने १५ अगस्त, २०१९  को लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हुए जनसँख्या नियंत्रण की बात की थी ,उन्होंने कहा था की जो छोटा परिवार रख रहे है वह भी एक प्रकार से देश भक्ति कर रहे है ,प्रधानमंत्री जी  ने कहा था परिवारों को की आप दो बच्चों तक ही सीमित रहिये , परन्तु  लोगो ने  एक कान से सुना और दूसरे कान से निकाल दिया परन्तु आप को ये समझाना होगा  इसकी जरूरत क्यों पड़  रही है ?  
                     मित्रो १९७६ में संविधान के ४२ वे संसोधन के तहत सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची में जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन को जोड़ा गया था जो (हम दो हमारे दो ) के रूप में पुरे भारत में प्रचार माद्यम से  भारत में फैलाया गया था। जिसके तहत केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकार को जनसँख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया है ,इस हिसाब से जो राज्य सरकारे जनसँख्या नियंत्रण पर कानून बनाने का मन बना रही है वे संवैधानिक दायरे में रह कर ही कार्य कर रही है।  

                     मित्रो आप को जान कर आश्चर्य होगा की स्वतंत्रता के बाद से अब तक जनसँख्या नियंत्रण पर विभिन्न दलों  के सांसद ३५ बिल पेश कर चुके है जीने १५ बिल कांग्रेस सांसदों  की ओर से पेश किए गए है और मुझे ख़ुशी है की कई राजनितिक दलों  के नेताओ ने इस पर कानून बनाने की सहमति जाहिर की है और अपनी आवाज मुखर की है। 

                      मित्रो  मै  यह नहीं समझ पा रहा हूँ की कुछ विपक्षी नेता इसके विरोध में खड़े क्यों है ? क्या उनका  देश को आर्थिक रूप देश को पीछे धकेलने की मंशा तो नहीं है ? मै असम  के मुख्यमंत्री  श्री हिमंत बिश्वा शर्मा जी को धन्यवाद् देता हूँ की उन्होंने इस विषय पर अपने राज्य में पहल की  और मुसलमानो से परिवार नियोजन अपनाने का अनुरोध भी किया।  मित्रो यह सत्य है की स्वतंत्रता के बाद से मुस्लिमो की जनसँख्या वृद्धि २९. ३  हो गयी है और हिन्दुओ की १०. ९  प्रतिसत , से वृद्धि हो रही है। जो देश की आर्थिक चुनौतिओं को दीमक की तरह चाट रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री   योगी आदित्य नाथ जी ने जनसँख्या नियंत्रण पर अपने प्रदेश की जनता से सुझाव मांगे है जो अति सराहनीय है जिसे २०२२ में लागू किये जाने की आशा है जो की एक सराहनीय पहल है। 

                    माननीय  प्रधान मंत्री जी  से आग्रह होगा की जनसंख्या नियंत्रण पर उचित एवं कठोरतम कानून बना कर सरकार  की आर्थिक बोझ को कम करने की कोशिश करेंगे जो देश की जरूरत है। 
                                                                                                              आपका  
                                                                                                             

चैतन्य श्री   

सरकार धर्मान्तरण के खिलाफ कठोर कानून बनाए, माननीय सरसंघचालक जी की बाते सही हिन्दुस्तानियो का DNA एक ही है।

chaitanya shree सरकार धर्मान्तरण के खिलाफ कठोर कानून बनाए, माननीय सरसंघचालक जी की बाते सही हिन्दुस्तानियो का DNA एक ही है।
chaitanya shree
आदरणीय मोहन भागवतजी ने जो कहा था उसमे कोई गलती नहीं थी ,हिन्दुस्तान के नाम का मतलब ही यही है ,जहाँ हिन्दुओ का निवास होता हो या रहते है। यहाँ जितने धर्म को माननेवाले है उन सभी के पूर्वजो का इतिहास हिन्दू सभ्यता से रहा है , हमारे हिन्दू भाई जो इस्लाम धर्म को तलवार के नोक पर अपनाये उनकी पीढ़ी हिंदुत्व की ही थी इसलिए हिंदुस्तान की आत्मा को अगर हिंदुत्व कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आदरणीय मोहन भागवतजी की बात तर्कसंगतहै।
मित्रो आपको जान कर आश्चर्य होगा भारत तथा नेपाल के अतिरिक्त विश्व के सभी देश धर्म पर आधारित है। केवल इन दो देशो के संविधान में "सेक्युलर" शब्द जोड़ा गया है अन्य किसी भी देश के संविधान में "सेक्युलर " शब्द नहीं है। अमेरिका "सेकुलरिज्म ह्यूमन राइट "के लिए सभी देशो में आदर्श माना जाता है ,वहाँ राष्ट्रपती को सपथ लेनी होती है तो सर्वप्रथम चर्च जाना होता है तथा वहाँ के पादरी उन्हें शपत दिलाते है और जब संसद का अधिवेसन आरम्भ होता है तो बाइबिल का पाठ होता है , जहाँ तक मुझे पता है जितने भी यूरोपीय देश है वहां भी बाइबिल का ही पाठ होता है। जापान के महाराज तथा सम्राट को बौद्ध धर्म का रक्षक घोषित किया गया है। इंग्लैंड में प्रोटेस्टेंट ईसाई बने बिना वहाँ कोई भी प्रधानमंत्री नहीं बन सकता। प्रत्येक देश में ऐसा कुछ न कुछ होता है
उत्तरपाड़ा के महर्षि अरविन्द के प्रसिद्ध भाषण में उन्होंने कहा था "हिंदुत्व तथा राष्ट्रयत्व अभिन्न है ,भारत का राष्ट्रयत्व केवल हिंदुत्व है , और कुछ नहीं। "
आपको जान कर आश्चर्य होगा इसी हिन्दुस्तान में धर्मनिर्पेक्ष विचारधारा में हिन्दू ,ईसाई ,तथा मुसलमान सभी सामान है तब भी इस्लाम तथा ईसाई बहुल राज्यों में हिन्दू मार खा रहे है हिन्दू मूल निवासी है ,तब उनकी ऐसी दुर्दशा है।
हिदुस्तान का मूल तत्त्व अथवा मूल निवासी हिन्दू है तो हम सभी हिन्दुस्तानी है ,हिन्दुस्तानियों में सभी मुस्लिम क्रिस्चन इत्यादि का मूल तत्त्व हिन्दू है कही -न कही किसी न किसी तरह उन सभी के पूर्वज हिन्दू ही रहे है अतः यह हिन्दुस्तान है। यह देश तथा तथा संस्कृति हिन्दुओ की है अतः यह हिन्दू राष्ट्र है ,हिन्दू राष्ट्र का मतलब यहाँ राम राज्य से है जहा किसी भी धर्म और संप्रदाय के मानने वालो को सामान दृष्टिकोण और और सौहार्द पूर्वक रहने के लिए है।
मेरा मानना है की अगर सरकार धर्मान्तरण के खिलाफ कठोर कानून बनाती है तो सारी समस्याओ का जड़ समाप्त हो जायेगा ,विपक्ष को भी अपना द्रिस्टीकोण स्पष्ट करना चाहिए,जनता भी विपक्ष का रुख जानना चाहती है। मै मानता हूँ ,की सरकार धर्मान्तरण के खिलाफ कठोर कानून बनाए और हिन्दुस्तान की आत्मा को जख्मी होने से बचाए।
आपका चैतन्य श्री

Tuesday, 29 June 2021

मित्रो कुछ बाते जो सरकार को करना बाकी रह गया है जिसे सरकार को जल्द से जल्द क्रियान्वित करना जरूरी है जैसे

chaitanya shree  मित्रो कुछ बाते  जो सरकार  को करना बाकी  रह गया है  जिसे सरकार  को जल्द से जल्द  क्रियान्वित करना जरूरी है जैसे
  १ अंग्रेजी कानून समाप्त किया जाना चाहिए २ एक देश एक सिलेबस लागू किया जाना चाहिए। ३ एक देश एक शिक्षा बोर्ड होना चाहिए। ४ एक देश एक दंड संहिता लागू किया जाना चाहिए। ५ घुसपैठ एवं धर्मांतरण अपराध घोषित किया जाना चाहिए लोग इससे बच निकलते है। ६ एक देश एक नागरिक संहिता कानून लागू किया जाना चाहिए। ७ जनसंख्या विस्फोट के लिए अपराधी घोषित किया जाना चाहिए। ८ सिटीजन और ज्यूडिशियल चार्टर लागू किया जाना चाहिए।

Friday, 26 February 2021

महान क्रान्तिकारी,कवि,ओजस्वी वक्ता, प्रखर राष्ट्रवादी स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकरजी की पुण्यतिथि पर नमन.!

chaitanya shreeमहान क्रान्तिकारी,कवि,ओजस्वी वक्ता, प्रखर राष्ट्रवादी स्वातंत्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकरजी की पुण्यतिथि पर नमन.!

Wednesday, 24 February 2021

क्या झारखण्ड में हेमंत के आदिवासियों के हिंदू ना होने वाले बयान में कृष्टयन मिशनरी का हाथ तो नहीं ?क्या सरना समाज को खत्म करने की साज़िश तो नहीं ?

chaitanya shree क्या झारखण्ड में  हेमंत  के आदिवासियों के हिंदू ना होने वाले बयान में कृष्टयन  मिशनरी का हाथ तो नहीं ?क्या सरना समाज को खत्म  करने की साज़िश तो नहीं ?   
मित्रो भारत वर्ष से न जाने कितनी विचार तरंगे निकली जो शांति और आशीर्वाद के रूप में अविरल गंगा की धारा  की तरह बहती रही है , संसार में  केवल हिन्दू जाती ही है जिसने सैनिक -विजय प्राप्ति का पथ नहीं अपनया और अपने विचारो को किसी पर नहीं थोपा जो नदियों की अविरल धारा  की तरह सदैव चलता रहा है सरना समाज भी इसी तरह चलता रहेगा ,हिन्दू सनातन की नीव भी इसी समाज ने रखीं  जहाँ आज भी प्रकृति पूजा को प्रमुख माना जाता है जो आज प्रकृति को बचाने में अपना प्रमुख योगदान दे रहे है। सरना समाज का  मातृ भूमि पर इतना  महान  ऋण है जिसे हम कभी नहीं चूका सकते।  झारखंड के सीएम को याद करना चाहिए कि माता शबरी हो या राजस्थान में राणा पूंजा भील जिन्होंने मुगलों से लड़ने के लिए महाराणा प्रताप का समर्थन किया। झारखंड में भगवान बिरसा मुंडा ने तो ना सिर्फ रामायण-महाभारत का अभ्यास किया बल्कि अंग्रेजों व ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण के षडयंत्रों का भी डटकर विरोध किया। धर्म-संस्कृति की रक्षा के लिए देश में वनवासी समाज के ऐसे अनगिनत गौरवपूर्ण संघर्ष इतिहास में दर्ज है। मै माननीय प्रधान मंत्री जी से आग्रह करता हूँ की संयुक्त संसद का अधिवेसन बुला कर एक छतरी के नीचे हिन्दू सनातन के सभी पंथो को (सिख ,बौद्ध ,जैन धर्मो को ) हिंदू का दर्जा दिया जाय जिससे पुरे विश्व में सभी पंथो का समग्र विकास हो.
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी अपने छुद्र राजनीतिक लाभ के लिए अदिवासी समाज को बांटने या उनकी श्रद्धा पर आघात करने से बाज आएं।


Monday, 15 February 2021

क्या लोकतंत्र का प्रयोग असफल रहा है?

chaitanya shreechaitanya shree chaitanya shreeक्या लोकतंत्र का प्रयोग असफल रहा है ?
गरिमामयी स्थान संसद में संसादो द्वारा उत्पात मचाना क्या लोकतंत्र का यही  प्रयोग है,  घटनाओ को देखते हुए मेरे मन में कई तरह के सवाल उत्पन्न हो रहे है जो मै  नीचे आपलगो के साथ चर्चा करना चाहता हूँ। 

पश्चिमी देशो कि राज्य व्यवस्था का अध्यन कर हमलोगो ने  संसद , प्रशासन ,एवं जुडिसियल सिस्टम को अपनया था , भारत कि संसदीय लोकतंत्र का राज्य प्रणाली के रूप में अपनाया गया था , लेकिन लोकतंत्र के अभिवावक राजधर्म भूल चुके है , प्रशासन भ्रष्ट हो चूका है , समाज स्वार्थी बन गया है , मीडिया लोकतंत्र का अभिन्न अंग भी अपनी निचली स्तर तक जा चुका है , भारतीय जनता ने जिस लोकतंत्र को अंगीभूत किया था वो कभी परिवारवाद , कभी तानाशाही , कभी गुंडागर्दी , कभी दमनकारी तथा भ्रस्ट तंत्र सिद्ध हो चूका है। 

संविधान को लोग बहुमत के आधार पर संशोधितं करते रहते है , जिससे राजनेता अपनी वोट कि राजनीती के तुष्टिकरण को भुनाने के लिए करते है ,इसकी मिसाल इंद्रा गांधी , राजीव गांधी , सोनिए गांधी दे चुके है। 
 कुछ सवालो का जवाब आप लोगो के साथ मिलकर ढूंढ़ना चाहता हूँ -:

अपराधियो को चुनाव लड़ने पर कोई रोक क्यों नहीं लगाया जा रहा है। 
प्रशासन में काम करने वाले लोगो को संविधान का समर्थन प्राप्त है , बिना राज्य पाल  के अनुमाति  के उनपर कोई अभियोजन कोर्ट में नहीं चलाया जा सकता है , हमारे देश का नागरिक इनका खुल कर प्रतिवाद नहीं कर सकता , अगर करता है तो यही सरकारी अधिकारी उस देश के नागरिक को किसी अभियोजन में फसा देते है क्या यही लोकतंत्र है ?

और देखिए संसद में चुने हुए नेता के खिलाफ न्यायलय कोई अभियोग नहीं चला सकता ,या कोई आम नागरिक साधारण आलोचना भी नहीं कर सकता अगर करता है  तो उस विशेष अधिकार हनन कि कार्यवाही कि जाती है , सवाल है कि क्या हमारी न्यायिक प्रणाली को ये चंद  नेता पंगु बनाने में लगे है।संसद में ये लोग गलत काम करे , लड़ाई झगड़ा करे उठा -पटक करे , इनका कोई मई -बाप नहीं है। क्या ये न्यायलय से भी सर्वोच्च है , जिस पर हमें विचार करना होगा। 

क्या शासन को चलाने के लिए ४० - ५० प्रतिशत लाने वाला व्यक्ति ८० प्रतिशत  लाने वाला व्यक्ति से अच्छा प्रशासन चला सकता है ?

क्या अज्ञानी व्यक्ति राजनेता बन सकता है ?

क्या पढ़े लिखे व्यक्ति जो गुंडागर्दी नहीं कर सकते वो राजनीती नहीं कर सकते ?

क्या न्यायलय शासन कि आलोचना ही कर सकता है उस पर दिशा - निर्देश या कार्यवाही नहीं कर सकता ?

क्या आज के नेता लोकतंत्र के प्रतिनिधि है या ये जनप्रतिनिधियो का तंत्र है , जो जैसे चले ठीक , लोकतंत्र में जनता को केवल मातदान  करने का अधिकार है, मेरे ख़याल से चुनाव में निर्वाचित जनप्रतिनिधि जनमत के अनुसार नहीं होते , लोकतंत्र में जनमत का महत्त्व केवल चुनाव तक ही सीमित है , चुनाव के बाद राजनेताओ को जनता से कोई मतलब नहीं रहता है क्या यह होना चाहिए। 

राजनितिक नेताओ द्वारा किए जानेवाले भ्रस्टाचार तथा तथा अलोकतांत्रिक व्यवहार के सन्दर्भ में प्रतिदिन आनेवाले समाचारो के कारण लोकतंत्र से विश्वास उठ चूका है , सामान्य जनता संभ्रमित है एवं वह लाचार होकर सर्व अत्याचार सह रही है।  भारत कि सामान्य जनता  सत्ता में राजनितिक परिवर्तन करने के अपेक्षा प्रचलित लोकतान्त्रिक  व्यवस्था में ही परिवर्तन लाने कि इक्षा करने लगी है।

Saturday, 7 March 2020

chaitanya shreechaitanya shree

क्या मुस्लिमो का आरक्षण एक राजनितिक घूस है ?

chaitanya shreeक्या मुस्लिमो का आरक्षण एक राजनितिक घूस है ?
मै  अगर इस सवाल का उत्तर अगर हां में दू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, लेकिन मै  इस सवाल  पर अपनी प्रतिक्रिया कुछ तथ्यों के साथ देना चाहता हूँ। 

२७ जून १९६१ को देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित नेहरू ने सभी मुख्यमंत्रियो को पत्र लिखकर अवगत कराया था कि मज़हब के आधार पर किसी भी प्रकार का आरक्षण ना दिया जाय,इसी प्रकार १९३६ में पूना पैक्ट के बाद  अंग्रेज सरकार  ने अनुसूचित जाती कि  पहली सूची  जारी जारी कि थी,जिसमे धर्मान्तरित ईसाई व् मुस्लिम कि जातिया उसमे शामिल करने कि मांग उठाई गयी थी , जिसे अंग्रेज हुकूमत ने अस्वीकार कर दिया था। परन्तु मनमोहन  सरकार अपने पूर्वज से न सीख लेकर सच्चर समिति के बाद रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन करके धर्मान्तरित ईसाई व् धर्मान्तरित मुस्लिमो को अनुसूचित जाती का आरक्षण करने हेतु पैरवी प्रारम्भ कर दी  प्रारम्भिक तौर पर राष्ट्रीय अनुसूचित जन जाती आयोग के अध्यक्ष श्री बूटा सिंह ने भी इसका विरोध किया था, परन्तु सोनिया गांधी कि सहमति देखकर बूटा सिंह  गए थे। अब इलेक्शन का वक्त होने के कारण कांग्रेस ने फिर इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया है। 

सरकार के नीतियो को लेकर अदालतो का दृष्टिकोण काफी कड़ा रहा है ,इसी मुस्लिम आरक्षण  को लेकर अदालतो का दृष्टिकोण काफी कड़ा रहा है, इसी मुस्लिम आरक्षण को लेकर , तथा सच्चर समिति कि सिफारिशों को न लागू करने के सम्बन्ध में केंद्र सरकार के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायलय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार के वकील को कड़ी फटकार लगाते हुए बोला था :-
- आप गरीबी से लड़ना चाहते है तो धर्म आड़े क्यों आ रहा है ?
- क्या यह समुदाय विशेष का तुष्टिकरण करने का प्रयास तो नहीं है ?
- क्या यह समिति इसी काम के लिए बनी है ?
- क्या सरकार को सबके भले के लिए पैसा खर्च करना चाहिए या किसी एक समुदाय विशेष के उत्थान के लिए ?
-आखिर ९० मुस्लिम बहुल जिले चिन्हित कर उनमे मुस्लिमो कि तरक्की के ही विशेष प्रयास क्यों किये गए है ?
-सरकार केवल अल्पसंख्यको के उत्थान के लिए कटिबध्ध है , बहुसंख्यको के लिए क्यों नहीं है ?
- आप अंग्रेजो कि तरह "बाटों और राज करो "के सिद्धांत पर क्यों चलना चाहते है ?
 अगर मै ठीक  से समझा हूँ तो आरक्षण और कोटा जैसे सुविधाओ का लाभ असली जरूरत मंदो तक नहीं पहुच पाया है , जबकी इसका फायदा क्रीमी लेयर जायदा उठाते है , आज हालात यह है कि पढाई नौकरी ,,व्यापार ,हर क्षेत्र में आरक्षण को जगह मिली हुई है ,आश्चर्य कि बात तो यहाँ है कि चिकित्सा जैसे क्षेत्रो में भी आरक्षण लागू है , यह बात समझ से परे है कि मानव जीवन से जुड़े पेशे में आरक्षण देना वोट बैंक कि राजनीति के अलावा क्या हो सकता है ?इसे तो सही तौर पर राजनितिक घूस कहा जा सकता है। 

मेरे विचार से नौकरियों में मुस्लिमो को आरक्षण कि घोषणा मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने कि है ये सरासर एक राजनितिक घूस है ,जिसका बहिष्कार जवाहर लाल नेहरू शुरू में ही कर चुके थे , पर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को इससे क्या फर्क पड़ता है , मनमोहन सिंह ने यह ऐलान किया हुआ है कि सरकार सच्चर समिति कि सिफारिशों पर अमल करने के लिए तैयार है , चुनाव से पहले मुस्लिमो को ये सीधी  रिश्वत दी जा रही है। हिन्दू गरीबी में भले ही एड़िया रगड़-रगड़ कर मर जाए , कोई नहीं पूछेगा न सरकार न रिश्तेदार , न मित्र , कोई सहायता नहीं करता , लेकिन मुस्लिम भाइयो को इस बात से सतर्क रहना होगा कि चुनाव से पहले सहानुभूति जताकर राजनितिक दल उनसे धोखा तो नहीं कर रहे , जो बाद में न्यायिक प्रक्रिया के जाल में न फस जाए। इस विषय पर मुस्लिम समाज को थोडा सोचना पड़ेगा। 

Saturday, 8 February 2020

क्या आज का कांग्रेस आतंकवादी संगठन बनते जा रहा है? क्यों ना इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित किया जाए?

chaitanya shreechaitanya shree क्या आज का कांग्रेस आतकवादी संगठन बनता जा रहा  है ?(क्यो न इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित किया जाए?)
अगर मै इस बात का उत्तर हाँ में दू तो कोई आतशयोक्ति नहीं होगा , हाँ ,कांग्रेस एक आतंकवादी संगठन है, जो कई आतंकी गतिविधियो में संलिप्त रहा है , जिसका मै  तार्किक उत्तर दूंगा। कांग्रेस के नेताओ को ना केवल आतंकवाद कि विभिन्न घटनाओ में सजा हुई बल्कि कई प्रकार के आतंकवाद के प्रणेता इनका शीर्ष नेतृत्व रहा है।

१९९३ के सूरत बम  विष्फोट  के अपराध में कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री मोहम्मद सुरति सहित सात अन्य मुस्लिम  कांग्रेसी नेता सजा भुगत रहे है , गोधरा का वीभत्स अग्नि काण्ड , जिसमे ५९ निरपराध राम भक्त हिन्दुओ को जिन्दा जलाया गया था , उसके षड्यंत्र में कांग्रेस के १५ से अधिक पदाधिकारी आरोपित है।

पंजाब का आतंकवाद , लिट्टे  का भारत में प्रशिक्षण व् सहयोग , पूर्वोत्तर का चर्च प्रेरित आतंकवाद तथा माओवाद का कांग्रेस के शीर्ष से सम्बन्ध किसी से छिपा नहीं है १९८४ में ३००० सिखों  का नरसंहार स्वतंत्र भारत कि सबसे बड़ी विभत्स आतंकवादी घटना तो थी ही ,इसको प्रेरित व् क्रियान्वित करने में उस समय के शीर्ष नेतृत्व कि भूमिका संदिग्ध है।

इंद्राजी  आपातकाल के अपराधो के कारण गिरफ्तार करने पर भोला और देवेन्द्र पण्डे द्वारा विमान अपहरण किया गया था , इस आतंकवादी कार्य को करने पर उन्हें कांग्रेस द्वारा विधयाक बनाकर पुरष्कृत करना आतंकवाद को प्रोत्साहन देने का सबसे बड़ा ज्वलंत उदहारण है।

कोयंबटूर बम ब्लास्ट के घोसित अपराधी मदनी को जेल से छुड़ाने के लिए सी पी ऍम के साथ मिलकर केरल विधानसभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास कराया था।

ऐसे और भी पचासो घटनाएँ है जो कांग्रेस के चरित्र को स्पष्ट करती है।

ज्ञात हो आतंकवादी एवं देशद्रोही संगठन सिमी के साथ इनके निकट सम्बन्ध सर्वविदित है , जब राजग सरकार ने सिमी पर प्रतिबन्ध  लगाया था ,तब संघ और सिमी कि तुलना करने वाले राहुल गांधी तो क्या श्रीमती सोनिया  गांधी तक सिमी के समर्थन में संसद में लड़ रही थी , कांग्रेस कार्यकर्ता सड़को पर सिमी के समर्थन में हिंसक प्रदर्शन कर रहे थे , और न्यायलय में इनके प्रमुख नेता व् हमारे विदेश मंत्रीजी श्री सलमान खुर्शीदजी - फिर से गज़नी कि बांट जोह रहे सिमी के पक्ष में कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे।

मध्यप्रदेश  के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह जीअपनी खोई हुई जमीन को तलाश रहे कांग्रेसी नेता भगवा आतंकवाद के विषय में उत्साहित होकर मर्यादाविहीन होते  रहे है , यह तथ्य सर्वविदित है कि इन्ही के मुख्यमंत्रित्व काल में सिमी निर्बाध रूप से फली - फूली थी , तथा माओवाद नक्सलियो के गतिविधियो का मधयप्रदेश में तेजी से विस्तार हुआ था , शायद इन्ही पुराने सम्बन्धो के कारण बटला हाउस व् आजमगढ़ इनके प्रिय विषय हो जाते है। वाराणसी बम विष्फोट के तार आजमगढ़ से जुड़े होने के बावजूद इन दुरंत आतंकियो को पकड़ने के लिए वहाँ जाने का साहस पुलिस जुटा  नहीं पाती थी , और उधर मुलायम तथा गृह मंत्री शिंदे आतंकियो को छुड़ाने कि कोशिश कर तुष्टिकरण कि राजनीती को और फलीभूत कर रही थे ।

अंत में मै यही कहना चाहूंगा वास्ताव में ये तथाकथित सेक्युलर नेता इस देश के मुस्लिम समाज के मित्र नहीं अपितु उनके कट्टर दुश्मन है , यह राष्ट्रवादी मुस्लिम समाज को समझना चाहिए , पकिस्तान कि झोली में बैठ कर पलने और मजा लेने वाली कांग्रेस  के प्रति मुसलिमों  में भी रोश है।शाहीन बाग़ मे कांग्रेस के नेतृत्व ने खुले आम अपने को प्रदर्शित किया है जहा भारत विरोधी नारे लगाये जा रहे है, हिन्दूस्तान का नागरिक विभिन्न चैनलो  द्वारा देखते रहे है, इसलिये कांग्रेस को आतंकी संगठन अगर कहा जए तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी।pfi जैसे आतंकी संगठन् को बढावा देने मे कांग्रेस कोई कसर नही छोड रही ।

Wednesday, 5 February 2020

दारुल हर्ब से दारुल इस्लाम में परिवर्तन करने की एक प्रक्रिया शाहीन बाग का आंदोलन

chaitanya shree



chaitanya shree मित्रो हमें पहले इसके लिए  इस्लाम के शासन पद्धत्ति को समझना होगा , इस्लाम भूछेत्रीय नातो को नहीं मानता है , इसके रिश्ते -नाते सामाजिक और मजहबी होते है ,अतः ये दैशिक सीमाओं को  नहीं मानते (pan-islamisim) का यही आधार है ,इसी से प्रेरित हिन्दुस्तान का हर मुसलमान कहता है की वह मुसलमान पहले है हिन्दुस्तानी बाद में। 

टीवी चैनेलो में इस्लामिक स्कॉलर व् बुद्धिजीवीओ  का विरोध को समझने के लिए हमें मुस्लिम संप्रदाय की मूलभूत राजनितिक प्रेरणाओं को समझना जरूरी है, जैसे मुस्लिम कानून के अनुस्वार दुनिया दो भागो में बटी है ,एक दारुल इस्लाम (इस्लाम का आवास )और दारुल हर्ब (संघर्ष का देश ).इस्लामिक कानून के अनुस्वार भारत हिन्दुओ और मुसलमानो की साझी मातृभूमि नहीं हो सकती ,यह मुसलमानो की जमीन हो सकती है ,पर बराबरी में रहते हिन्दुओ और मुसलमानो की जमीन नहीं हो सकती ,यह मुसलमानो की जमीन भी तभी हो सकती है जब इस पर मुसलमानो का राज हो। जिस क्षण इस भूमि पर किसी गैर -मुस्लिम का अधिकार हो जाता है यह मुसलमानो की जमीन नहीं रहती ,दारुल इस्लाम के स्थान पर दारुल हर्ब हो जाता है। जब तक कांग्रेस की शासन रही एक मुस्लिम राज था ,क्योकि कांग्रेस का शीर्ष नेत्रित्व इस्लाम को ही मानने वाले थे लेकिन नरेंद्र मोदी के आने से ये देश दारुल हर्ब हो गया जो इस्लाम के मानने वालो नागवारा लग रहा है ,जम्मू कश्मीर की इस्लामिक लड़ाई भी इसी तर्ज़ पर है। हामिद अंसारी ने कोई नई बात नहीं कही उन्होंने इस्लाम धर्म के आधार पर ही अपनी बातो को कहा था। मित्रो जब अंग्रेज भारत पर कब्ज़ा किया था तब भी यही सवाल पैदा हुआ था की भारत दारुल हर्ब है या दारुल इस्लाम। इस विषय पर भारत में ५० वर्षो तक चर्चा हुई की भारत दारुल हर्ब है की दारुल इस्लाम। जिस कारन कई लोग हिजरत कर अफगानिस्तान की ओर कूच कर गए।मित्रो आज की तारिख में इस्लाम के अनुस्वार नरेंद्र मोदी का शासन काल एक दारुल हर्ब है जिसे मुस्लिम बौद्धिक जिहाद के रूप में लड़ रहे है और कश्मीर में हथियारों से। 

इस्लामिक सिद्धांतो के अनुस्वार मुसलमान जेहाद केवल छेड़ ही नहीं सकते बल्कि जेहाद की सफलता के लिए किसी विदेशी मुस्लिम शक्ति को सहायता के लिए बुला भी सकते है और इसी प्रकार यदि भारत के विरुद्ध कोई विदेशी मुस्लिम शक्ति ही जेहाद छेड़ना चाहती है ,तो मुसलमान उसके प्रयास की सफलता के लिए सहायता भी कर सकते है। 

मित्रो आप को जान कर आश्चर्य होगा की एक वक्त जिन्नाह ने गांधीजी को महात्मा और ईशु मशीह से तुलना किया था तब उसका पुर जोर विरोध हुआ था लेकिन बाद में जिन्नाह ने अपनी बात को पलट कर कहा था "गाँधी का चरित्र कितना भी निर्मल हो , मजहबी दृष्टी से वे मुझे किसी भी मुसलमान से ,चाहे वह चरित्रहीन ही क्यों न हो ,निकृष्ट ही दिखेंगे।

मित्रो विचारणीय प्रश्न यह की  मुस्लिम समुदाय कैसे इतना शक्ति शाली बन जाता है की वह अपने नेताओ पर इतना नियंत्रण रखने में सक्षम है  ।  भारत को दारुल हरब से दारुल इस्लाम बनाने की  शाहीन बाग का आंदोलन एक प्रक्रिया   है जो पूरे देश में  इसे फैलाने की कोशिश की जा रही है 

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Tuesday, 22 October 2019

बैंकों का विलय अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकता है

chaitanya shree मित्रों भगवा प्रणाम राष्ट्रीय कृत  बैंक अधिक काबिल है की ,यह राष्ट्र के हित के लिए सही है या नहीं सही है इसका विवरण मैं प्रस्तुत करने का कोशिश कर रहा हूं इस विलय के बाद वर्षों से बने हुए यह बैंक बैंकिंग  परिदृश्य से गायब हो जाएंगे.
 राष्ट्रीय कृत बैंक हमारी अर्थव्यवस्था के स्तंभ ही नहीं एक रीड की हड्डी भी साबित हुई है, 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था पिछले 50 वर्षों में राष्ट्रीयकृत बैंकों ने एक स्पष्ट सामाजिक और   उन्मुखथा के साथ एक मजबूत व्यवस्था के निर्माण में असाधारण योगदान  दीया है, जिस समय बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था उनकी शाखाओं की संख्या 8000 थी जो अब बढ़कर 90000 हो चुकी है इनमें से 40000 बैंक शाखा ग्रामीण एवं ग्रामीण इलाकों में है, राष्ट्रीयकरण से पहले बैंकिंग के  मामलों में ग्रामीण एवं ग्रामीण इलाके बुरी तरह उपेक्षित थे, राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों द्वारा देश के प्राथमिकता वाले क्षेत्र ऋण दिए गए जिससे हमारी अर्थव्यवस्था को जबर्दस्त फायदा पहुंचा 2008 में जब समूची दुनिया और बैंकिंग क्षेत्र में सुनामी की शिकार थी  उस समय भारतीय बैंकिंग व्यवस्था  के बैंकों को जाता है जो बैंक सार्वजनिक क्षेत्र में ना होते तो देश उस आर्थिक संकट से नहीं बच सकता था सरकार ने जिन छह बैंकों इलाहाबाद बैंक आंध्र प्रदेश बैंक कॉरपोरेशन बैंक यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स को हमले का निशाना बनाया है बहुत अच्छे बैंक रहे हैं और अपने-अपने भौगोलिक क्षेत्रों में उन्होंने आर्थिक विकास में जबरदस्त योगदान दिया है, अचानक  इन बैंकों को बंद करने की घोषणा  अनुचित एवं अवांछित है.
 मित्रों आबादी की संख्या की तुलना में बैंक शाखाओं की संख्या दुनिया में अनेक देशों की तुलना में अभी भी काफी कम है हमारे हजारों गांवों में आज भी बैंकों की शाखाएं नहीं है हमारे बैंकों के विस्तार करने की जरूरत है उनके विलय की नहीं देश में बैंकों के विस्तार के लिए और जनता तक उनकी पहुंच के लिए बहुत बड़ी गुंजाइश है ऐसे में जबकि जरूरत इस बात की है कि और अधिक बैंक शाखाएं खोली जाए बैंकों के विलय का नतीजा अनेक शाखाओं के बंद किए जाने के रूप में निकलेगा भारतीय स्टेट बैंक में जब कुछ बैंकों का विलय हुआ था तो हमने देखा है कि उसके फल स्वरुप 7000 बैंक शाखाएं बंद हो गई बैंकों के प्रस्तावित विलय इससे कहीं अधिक बैंक शाखाएं बंद हो जाएंगे देश में बैंक शाखाओं की संख्या को कम करना बेहद नासमझी की बात है
बड़े कारपोरेट सेक्टरों को फायदा पहुंचेगा बड़े बैंकों से आम आदमी को  कोई फायदा नहीं पहुंचेगा, बैंकों के विलय और अपेक्षाकृत कहीं अधिक बड़े बैंकों को बनाने के कुछ दूसरे भी दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं बड़े बैंकों का रुझान बड़े कारपोरेट ग्राहकों की खिदमत करने की तरफ  होगा और मैं आम आदमी की उपेक्षा की प्रवृत्ति होगी इससे राष्ट्रीय कृत बैंकों को सामाजिकता और उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा बैंकों के विलय से निश्चित तौर पर अनेक बैंक शाखाएं बंद हो जाएगी बैंक शाखाओं के बंद होने का मतलब है कि कम शाखाओं मैं अधिक ग्राहक पहुंचेंगे जिससे बैंकिंग सेवा पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ेगा प्रति बैंक शाखा ग्राहक संख्या बढ़ जाएगी और कारगर ग्राहक सेवा पर उसका बुरा असर पड़ेगा

हमारे देश में रोजगार युवाओं के लिए सबसे गंभीर समस्या है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में हर साल हजारों शिक्षित युवाओं को रोजगार मिलता रहा है यदि बैंकों का विलय कर दिया गया और अनेक शाखाएं बंद हो गई तो बैंकों में भर्तियां कम हो जाएंगे इससे शिक्षित युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों में और भी अधिक कमी  आएगी.
बैंकों एवं सरकार का मुख्य काम यह है कि बुरे दिनों की वसूली के लिए सख्त कदम उठाया जाए परंतु बैंकों के विलय के प्रस्तावित कदम से बैंकों का ध्यान विलय से जुड़े मुद्दों पर शिफ्ट हो जाएगा और बुरे दिनों की वसूली का मुद्दा पीछे रह जाएगा सरकार की इस नीति से हमारे बैंक बड़े बैंक बन जाएंगे भारत को बड़े बैंकों की जरूरत नहीं है भूमंडलीय स्तर पर बड़े बैंकों को बहुत जोखिम की चीज पाया गया है जैसा कि अमेरिका में हुआ हमें हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की जरूरत है जो कारगर तरीके से जनता की सेवा कर सके हमें ऐसे बड़े बैंकों की जरूरत नहीं जो केवल बड़े कारपोरेट को फायदा पहुंचाते है अतः बैंकों का विलय
और हमारे देश के हित में नहीं है

माननीय प्रधानमंत्री जी एवं वित्त मंत्री से आग्रह होगा बैंकों के विलय पर एक बार आप पुनर्विचार करें और कैबिनेट स्तर पर इसकी चर्चा जरूर करें.



Thursday, 17 October 2019

कोयला कम पूंजी अधिक मुनाफा 100% कोयले में एफडीआई का फैसला, क्या सरकार का एक आत्मघाती फैसला है?

chaitanya shree मित्रों भगवा प्रणाम मित्रों में कोयला क्षेत्र में 100% एफडीआई के खिलाफ हूं ,हमारी सरकार को इस विषय पर पुनर्विचार करने की जरूरत है ,क्यों पुनर्विचार करने की जरूरत है उसका विवरण मैं सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से पेश करने की कोशिश कर रहा हूं .

 निजी करण का सिलसिला 1991 में कांग्रेस के कार्यकाल में शुरू हुआ था जब पावर प्लांटों, निजी स्टील मिलो, एवं उर्वरक कारखानों को अपने स्वयं के इस्तेमाल के लिए खनन की इजाजत दी गई थी ,जिसे सरकार ने कोल इंडिया का 29 .65 हिस्से  दिए जिसमें सरकार की दलील थी कि प्रतिस्पर्धा एवं क्षमता बढ़ेगी और टेक्नोलॉजी का विकास होगा ,मैं उस वक्त के Congress सरकार की बातों से सहमत नहीं था और आज की सरकार के एफडीआई सौ परसेंट के खिलाफ हूं.

 मित्रों आपको मालूम होगा कांग्रेस के सरकार में जब निजीकरण किया गया था उसके बाद कोलगेट का सबसे बड़ा घोटाला उजागर हुआ था  ,निजी क्षेत्रों ने भारत मां की धरती का चीर हरण कर अपने फायदे के लिए दोहन किया था . पूर्व सरकारों एवं अभी की सरकार की दलील थी की निजी करण से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और कोयला क्षेत्र में सर्वोत्तम संभव टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल होगा .मित्रों मैं बता दूं कि इस समय कोल इंडिया पहले के मुकाबले कहीं बेहतर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है ,जिस समय राष्ट्रीयकरण किया गया था उस समय 79 मिलियन टन था जो अब 606 मिलियन टन हो गया है यह बात कोयला खानों के निजीकरण के लिए दी जाने वाली सभी दलील को खारिज करती है.

 मित्रों 1973 में कोयला खानों के राष्ट्रीयकरण से पहले कोयला एक हिंसक और भ्रष्ट कारोबार था निजी कोयला खान के समय कोयला निकालने वाले मजदूर का शोषण चरम शिखर पर था ,उस समय कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं थी मजदूरों के साथ अमानवीय बर्ताव किया जाता था और मजदूरी बहुत कम दी जाती थी.  1969 से 70  के समय मजदूर नेताओं ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाया , उनके आंदोलन के दौरान अनेक मजदूरों ने अपनी जान गवाई और यहां तक कि यूनियन के नेताओं को जेल में डाला गया, कोयला खान मजदूरों और नेताओं के इस बलिदान के फल स्वरुप कोयला खानों का दो चरणों में राष्ट्रीयकरण किया गया 1971 में राष्ट्रीयकरण किया गया ,राष्ट्रीयकरण से कोयला खानों में बेहतर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल शुरू किया गया मजदूरों की मजदूरी में वृद्धि हुई उन्हें सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई भ्रष्टाचार कम हुआ और कोयले के उत्पादन में भारी वृद्धि हुई और सरकार को मिलने वाली राजस्व भी  बढ़ा भारत सरकार का यह फैसला गलत है जिसमें उन्होंने 100% एफडीआई की है जिसमें जुड़े प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के कार्यकलाप में ,कोल वाशरी, क्रशिंग, coal हैंडलिंग एवं  सिपरेशन शामिल होंगे
सरकार के इस फैसले से अवश्य ही कोयला मजदूरों को नुकसान पहुंचेगा और हो सकता है वे उसी हालत में पहुंच जाएं जिसमें राष्ट्रीयकरण से पहले थे ,यह बात पक्की है कि निजी खान मालिक कोयला मजदूरों को बेहतर सुविधाओं सामाजिक सुरक्षा, उच्च वेतन से वंचित करेंगे ,एक बार फिर कोयला मजदूर निजी खान मालिकों के शोषण के शिकार बन जाएंगे ,कोयला खानों के निजीकरण और कोयला उद्योग में शत-प्रतिशत निवेश की इजाजत की फैसले से राष्ट्रीय हितों को भी नुकसान पहुंचेगा इससे मजदूरों को फिर से शोषण का शिकार होना पड़ेगा इस लिहाज से यह सरकार का एक अमानवीय फैसला भी है.
 आपका चैतन्य श्री