Saturday 13 November 2021

गाँधी के आंदोलन से देश आज़ाद नहीं हुआ वीर सॉवरकर एवं नेताजी की कूटनीति एवं क्रांतिकारियों का बलिदान ने देश को आज़ादी दिलाई

chaitanya shree गाँधी के आंदोलन से  देश आज़ाद नहीं हुआ वीर सॉवरकर  एवं नेताजी की कूटनीति एवं क्रांतिकारियों  का बलिदान  ने  देश को आज़ादी दिलाई।  
 कंगना रौनात ने जो बाते  कही मै  उसका समर्थन करता हूँ , हिन्दुओ ने देश में मोदी सरकार के आने पर ही आज़ादी महसूस किया है , कुछ बाते है जो हिन्दुस्तान की जनता नहीं जानती है आपके सामने मै  देश की आज़ादी की कुछ घटनाओ का वर्णन मै  नीचे कर रहा हूँ। 
सन १९२६   की एक घटना है , चन्द्र शेखर आजाद अंग्रेजो से बचकर वैक्तिगत रूप से बापू से मिले  थे  और सिर्फ उन्हें इतना कहा था - बापू हमारे  दिलो में आपके लिये बड़ा सम्मान है , सारा राष्ट्र आपका सम्मान करता है ,कृपया आप हम पर  एक उपकार कर दे अपने वैक्तिगत संबोधनों में हमें आतंकवादी न कहा करे ,इससे हमें दुःख होता है .
बापू ने जवाब दिया -
" तुम्हारा  मार्ग हिंसा का है और हिंसा का अवलंबन लेने वाला हर व्यक्ति   मेरी नज़र में आतंकवादी है. ."
चन्द्रशेखर वापस आ गये.
जो बापू के अनुयाई  थे  वह नेहरु और बापू के प्रभाव में क्रांतिकारियों को तो हे दृष्टी से देखते थे , परन्तु जब ये अहिंसक किसी घटना के कारन ब्रिटिश  जुल्म के  कोपभाजन बनते थे,और पुलिस उन्हें मार -मारकर बेहाल कर देती थी, तो इस अत्याचार का क्रांतिकारियों पर बड़ा विपरीत असर पड़ता था .
 भगत सिंह   तब असेंबली के बहार चरखा लेकर नहीं गए थे, उन्होंने असेंबली के बहार कोई "वैष्णव जन तेने कहिये " की गुहार नहीं लगाई थी . वह किसी की हत्या भी नहीं करना चाहते थे , उनके हाथ में  बम  था , जिसकी गूँज उस दिन लाहोर से लन्दन  तक गूंजी थी . सारा जीवन लड़े 

 , पर शेरो की तरह रहे.
           मर कर भी न जायेगी , दिल से वफ़ा की उल्फत ,
           मेरी मिटटी से भी खुसबू -ए -वतन आयेगी .
  मेरा सवाल
 मेरा सवाल कांग्रेसी और गांधीवादियों से है , बापू समेत क्या किसी में भी यह हिम्मत नहीं  हुई की "लार्ड इरविन " को यह कह सकते की हम तब तक कोई  समझौता नहीं कर सकते जब तक इन क्रांतिकारियों को अंग्रेज  छोड़ नहीं देते ? क्या हो जाता अगर जेल के  बहार भूख हड़ताल का ढोंग करने वाले  ने जेल के अन्दर इस मुद्दे पर "भूख हड़ताल" की होती की पहले भगत सिंह और उनके साथियो को छोड़ो ,उन्होंने किसी की हत्या नहीं की है, केवल धमाका किया है और उन पर चलाये जा रहे मुकदमे अंग्रेज वापस ले ?
 अगर ऐसा होता तो भारत का इतिहास स्वर्णिम हो जाता ,भगत सिंह को फासी  के तख्ते पर झुलाने की आज्ञा  हो गयी और गाँधी इरविन पैक्ट भी उसी वर्ष हो गया .
   तीसरी घटना  देश की आज़ादी का? १९४७ की आज़ादी की एक बहुत ही दिलचस्प घटना है जिसका  लोगो को बहुत  कम जानकारी है ,द्वितीय विश्व युद्ध के वक़्त  अंग्रेज  भारतीयों को अपनी सेना में भर्ती कर रहे थे और युद्ध के लिए अपने देश भेज रहे थे जिसका समर्थन कूटनीतिक रूप से सावरकर ने समर्थन किया था ,उनका विश्वास था की हमारे देश वासी आधुनिक हथियारों से लैस अपनी ट्रेनिंग पूरी कर लेंगे जो बाद में अपने देश के लिए काम आएंगे , जब द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म  हुआ तो लाखो की तादाद में भारतीय सेना के लोग बेरोजगार हो गए वे वापस भारत आ गए जिससे उनके भड़कने व् निजी सेनाओ , जय हिन्द की सेना में भर्ती का डर  था जो अंग्रेजो के लिए खतरनाक साबित होने वाला था ,यही डर  देश को आज़ाद करने में  एक वरदान साबित हुआ। 

                                                                                                               आपका चैतन्य श्री 

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