Wednesday, 13 November 2013

क्या राजनीति धंधा है ?

chaitanya shree

  •                               क्या  राजनीति  धंधा है ? 

 कांग्रेस के राज्य सभा के सदस्य वीरेंदर सिंह ने लोकतंत्र कि शान मिटटी में मिलते हुए कहा था " वर्त्तमान में राजनीती सबसे अच्छा धंधा है।  यहाँ अरबो का खेल होता है।  कोई यदि अभियांत्रिकी  कि अथवा अन्य व्यवसाय में असफल हो जाये तो वह राजनीती में आता है " कुछ माह पूर्व उन्होंने ही कहा था राज्य सभा कि एक सीट १०० करोड़ में बेचीं जाती है।  उनके ऐसा कहने पर हरकंप मच गया था ,कांग्रेस के दवाब पर उन्होंने अपनी बात वापस ली थी। परन्तु उन्होंने जो कहा था उस सत्य को प्रमाणित करने के  लिये सैकड़ो उदहारण  प्रस्तुत किये जा सकते  है।
                         आकड़ो का अध्यन करने से पता चलता है कि जो नेता अपने प्रतिज्ञा पत्रो में जो ब्यौरा देते है वही  इतनी आश्चर्यजनक होती  है तो प्रत्यक्छ रूप में अगर देखा जाये तो क्या होगा ? मेरे मन में एक सवाल है जो मुझे हर वक्त कचोटता रहता है कि क्या हमारे देश कि जनता अपना भविष्य किसी ऐसे नेता के हाथो सौप देती है जिस  व्यक्ति में समर्पण,देश के प्रति जागरूकता , संसद कि अवहेलना करने वाले वयक्ति हो और वह  पैसे के बदले  वोट लेकर  अपने ही विकास का अवरोधक बन जाता   है। क्या जनता  छनिक सुख के लिये अपना भविष्य अंधकारमय बनाती है? अगर हमारे देश कि जनता पैसे के बदले वोट न देकर अपने विचार को प्रमुखता देकर वोट डाले तो मुझे नहीं लगता कि राजनीती धंधा बन सकता है। 
                        मै यह सोच कर परेसान हु कि जितनी धनराशि मतदाताओ को बाटने में दी जाती है उतनी धन राशि में  भारत में कितने पॉवर प्लांट खड़े  हो जायेंगे।मै  इस बात से आहत  हु कि एक ग्राम पंचायत कि सदस्यता के लिये हत्याए और पैसे का बोलबाला हो गया है।  ऐसा क्यों ? लोग सेवा करने जाते है या लूट करने , अगर सेवा करने जाते है तो इस तरह कि हत्याए और लूट क्यों? क्या राजनितिक धंधा करने जाते है यह एक बहुत बड़ा सवाल है जिसका उत्तर हमें ढूँढना होगा ? पक्छ द्वारा चुनावो के समय मिलने वाले पैसे ध्यान में रखकर पक्छ के जिला अध्यक्ष  पद के लिये मारा -मरी होती है। नगर सेवक पद के चुनावो में लगभग २० लाख रुपये तक वयय कि जाती है , तब विधायक अथवा सांसद के प्रत्यासियो कि छमता कम से कम १० -१५ करोड रुपये तो जरूर होगी। मुझे ऐसा लगता है जो वयक्ति पैसे देकर अगर वोट खरीदता है उसकी मनसा देश को बढ़ने में न होकर देश कि तिज़ोरी लूटने में होगी इसलिये कृपया पैसे लेकर वोट ना दे राजीनीति को धंधा न बनाये ! चुनाव जीतने के लिये पैसा बहाना और जीतने के उपरान्त उसे अथवा उससे भी कई गुना वसूल करने के पीछे लग्न , ऐसे ही आज कि राजनितिक गणित है। इसलिये वीरेंदर सिंगजी को किसी भी नेता को मिटाने का साहस नहीं हुआ और न कभी होगा। मुझे लगता है कि  हम सभी लोगो को राजनीती को धंधा न बनाकर विकास का धंधा बनाये तो ज्यायदा उचित होगा।  
                            

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