आतंकवाद का एक ही धर्म -हिंसा (मूल स्वार्थियो द्वारा युवको पर दाला गया मोहजाल )
पाश्चात्य समाचार -पत्रों तथा विचारको का लेखन पढ़ कर हमारे राजनितिक विचार बनते है। केवल राजनितिक ही नहीं , हमारे आर्थिक ,सामजिक और सांस्कृतिक विचार भी हम वैश्वीकरण के नाम पर आंखे मूँद कर पश्चिमी राष्ट्रों का अनुकरण करके ही बनाते है, और इसमें हमलोग बहुत ही धन्य महसूस भी करते है। अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में धर्म के नाम से हुंकार भरी और हमने भी हा में हा मिलकर उनका समर्थन कर दिया। वास्तव में इस्लाम धर्म का उपयोग कर अताक्वादी संगठनो को पालने - पोसने का काम अमेरिका के गुप्तचर विभाग ने ही अफगानिस्तान में और अमेरिका की कटपुतली बने मिश्र के नेताओ ने मिश्र में किया था। यह हम भूल जाते है। शायद हमें इस बात की कल्पना भी नहीं होती।
आतंकवाद आज दुनिया भर में फैला हुआ जाल है। उसमे अनेक युवको को धर्म ,न्याय , स्वतंत्रता , जैसे आकर्षक चारे दाल कर फासा जाता है। अनेक युवको को बाद में अपनी गलती का एहसास भी होता है , मगर तब तक देर हो चुकी होती है। वे चक्रविऊह में फस जाते है। वहा से बाहर निकलने के मार्ग उन्हें बंद मिलता है। मगर हम इन संगठनो के सूत्रधार की ओर ध्यान देने के बजाय भटके हुए और उपयोग किये गए युवको पर ही लक्ष्य केन्द्रित करते है। आतंकवाद ,आतंकवाद , चिल्लाते रहना और उसकी सूत्रधार पाकिस्तानी सेना के साथ चर्चा भी करना यह कैसी कूटनीति है ?
भटके हुए युवको से युद्ध करने में कोई बहादुरी नहीं है। अकलमंदी यही है की वहाँ युवको को बर्गालानेवाले पाकिस्तानी सेना के तानाशाहों को नेस्तनाबूत करने में है। यह संभव है, मगर इसकेलिये राष्ट्र की रीढ़ मजबूत होनी चाहिये।
पाश्चात्य समाचार -पत्रों तथा विचारको का लेखन पढ़ कर हमारे राजनितिक विचार बनते है। केवल राजनितिक ही नहीं , हमारे आर्थिक ,सामजिक और सांस्कृतिक विचार भी हम वैश्वीकरण के नाम पर आंखे मूँद कर पश्चिमी राष्ट्रों का अनुकरण करके ही बनाते है, और इसमें हमलोग बहुत ही धन्य महसूस भी करते है। अमेरिका ने आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में धर्म के नाम से हुंकार भरी और हमने भी हा में हा मिलकर उनका समर्थन कर दिया। वास्तव में इस्लाम धर्म का उपयोग कर अताक्वादी संगठनो को पालने - पोसने का काम अमेरिका के गुप्तचर विभाग ने ही अफगानिस्तान में और अमेरिका की कटपुतली बने मिश्र के नेताओ ने मिश्र में किया था। यह हम भूल जाते है। शायद हमें इस बात की कल्पना भी नहीं होती।
आतंकवाद आज दुनिया भर में फैला हुआ जाल है। उसमे अनेक युवको को धर्म ,न्याय , स्वतंत्रता , जैसे आकर्षक चारे दाल कर फासा जाता है। अनेक युवको को बाद में अपनी गलती का एहसास भी होता है , मगर तब तक देर हो चुकी होती है। वे चक्रविऊह में फस जाते है। वहा से बाहर निकलने के मार्ग उन्हें बंद मिलता है। मगर हम इन संगठनो के सूत्रधार की ओर ध्यान देने के बजाय भटके हुए और उपयोग किये गए युवको पर ही लक्ष्य केन्द्रित करते है। आतंकवाद ,आतंकवाद , चिल्लाते रहना और उसकी सूत्रधार पाकिस्तानी सेना के साथ चर्चा भी करना यह कैसी कूटनीति है ?
भटके हुए युवको से युद्ध करने में कोई बहादुरी नहीं है। अकलमंदी यही है की वहाँ युवको को बर्गालानेवाले पाकिस्तानी सेना के तानाशाहों को नेस्तनाबूत करने में है। यह संभव है, मगर इसकेलिये राष्ट्र की रीढ़ मजबूत होनी चाहिये।
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