Saturday, 10 August 2013

क्या भारत की पुलिस कर्मियों की दुर्दशा देख कर हमें रोना आता है ?

 क्या भारत की पुलिस कर्मियों की दुर्दशा देख कर हमें रोना आता है ?
                           हमारे समाज में होटल , बंगले ,अथवा सम्पूर्ण हिल स्टेशन बनाने में करोड़ रुपये खर्च किये जाते है।  मगर पुलिस के लिये अच्छे   किस्म के  बुलेट प्रूफ जैकेट   खरीदने के लिये सरकार के पास कुछ लाख रुपये भी नहीं है, और अगर है भी तो सरकार उसे खरीदती क्यों नहीं है।  जबकि भारत बुलेट प्रूफ निर्माण में अग्रणी देश है जो  लगभग १०० देशो से ऊपर के देशो में निर्यात करता है। आम पुलिस कर्मी की दुर्दशा देखकर रोना आता है।  इनके रहने एवं परिवार के पालन पोसन की व्यवस्था  राज्य सरकारे ठीक से नहीं कर पा रही है। अनेक वर्षो से सेवा कर रहे पुलिसकर्मी  का वेतन १० हजार रुपये मासिक तक ही पहुच पता है।  लोग जो गलत कर्मो में लगे होते है उनकी आर्थिक इस्तिती का गलत फायदा उठाते है। उन्हें अच्छे पैसे एवं उनकी पारिवारिक इस्थिति को   हमें ठीक करना होगा जिससे इनका उपयोग गलत लोग ना कर सके।   यही कारन है आतंकवादी हमला करने से डरते नहीं है।  हमें यदि वास्तव में आतंकवाद को समाप्त करना है तो पुलिसवालों का जीवन स्तर सुधारने के लिये जनता जनार्दन को जी- तोड़  प्रयत्न करने पड़ेगे।   क्या घूस के पैसे से इनका जीवन अस्तर  बढ़ सकता है ? सामाजिक तौर पर पुलिसकर्मियों को हीन भावना से देखा जाता है , जिसमे अच्छे पुलिसकर्मी भी समेट  लिए जाते है, इसका मुख्य कारन हमारी राजनितिक व्यवस्था और राजनितिक चाटुकारिता है जिसे हमें समझना होगा और उसे दूर भी करना होगा। भारत का सबसे बड़ा 

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