chaitanya shree श्री राम जन्म भूमि के तथ्य एवं उच्च न्यायलय के निर्देश।
१) श्री राम जन्म भूमि के लिए ३० मई को संतो का प्रतिनिधि मंडल भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी से मिला और लखनऊ उच्च न्यायलय द्वारा ३० सितम्बर २०१० को दिए गए निर्णय से अवगत कराया साथ ही आग्रह किया की वे संसदीय कानून द्वारा श्रीराम जन्म भूमि हिन्दू समाज को सौप कर प्रस्तावित भव्य मंदिर निर्माण का मार्ग प्रसस्त करे।
उच्च न्यायलय ने स्पष्ट कहा है की
क )विवादित स्थल ही भगवान् राम का जन्मस्थान है.जन्म भूमि स्वयं में देवता है और विधिक प्राणी है। जन्म भूमि का पूजन भी रामलला के समान ही दैव्य मानकर होता रहा है , और देवता का यह भाव सास्वत है ,यह सर्वत्र रहता है और हर समय रहता है और यह भाव किसी भी व्यक्ति को किसी भी रूप में भक्त की भावनाओ के अनुस्वार प्रेरणा प्रदान करता है। देवता का यह भाव निराकार में भी हो सकता है। (न्याय मुर्ति धर्मवीर शर्मा )
ख ) हिन्दुओ की श्रद्धा व् विश्वास के अनुस्वार विवादित भवन के मध्य गुंम्बद के नीचें का भाग श्री राम की जन्म भूमि है (न्याय मुर्ति सुधीर अग्रवाल )
१) श्री राम जन्म भूमि के लिए ३० मई को संतो का प्रतिनिधि मंडल भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी से मिला और लखनऊ उच्च न्यायलय द्वारा ३० सितम्बर २०१० को दिए गए निर्णय से अवगत कराया साथ ही आग्रह किया की वे संसदीय कानून द्वारा श्रीराम जन्म भूमि हिन्दू समाज को सौप कर प्रस्तावित भव्य मंदिर निर्माण का मार्ग प्रसस्त करे।
उच्च न्यायलय ने स्पष्ट कहा है की
क )विवादित स्थल ही भगवान् राम का जन्मस्थान है.जन्म भूमि स्वयं में देवता है और विधिक प्राणी है। जन्म भूमि का पूजन भी रामलला के समान ही दैव्य मानकर होता रहा है , और देवता का यह भाव सास्वत है ,यह सर्वत्र रहता है और हर समय रहता है और यह भाव किसी भी व्यक्ति को किसी भी रूप में भक्त की भावनाओ के अनुस्वार प्रेरणा प्रदान करता है। देवता का यह भाव निराकार में भी हो सकता है। (न्याय मुर्ति धर्मवीर शर्मा )
ख ) हिन्दुओ की श्रद्धा व् विश्वास के अनुस्वार विवादित भवन के मध्य गुंम्बद के नीचें का भाग श्री राम की जन्म भूमि है (न्याय मुर्ति सुधीर अग्रवाल )
ग ) यह घोसना की जाती है की आज स्थाई मंदिर में जिस स्थान पर रामलला का विग्रह विराजमान है वह स्थान हिन्दुओ को दिया जायेगा। (न्याय मुर्ति एस यु खान )
न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा एवं न्याय मूर्ति सुधीर अग्रवाल ने निर्मोही अखाड़ा द्वारा वर्ष १९५९ में तथा सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड द्वारा दिसंबर १९६१ में दायर किये गए मुकदद्मों को निरश्त कर दिया और निर्णय दिया की निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी मुस्लिम वक्फ बोर्ड को कोई राहत नहीं दी सकती।
२) अदालत में प्रतिपक्ष का तर्क था की विवादित ढांचा खली पड़ी बंजर भूमि पर बनाया गया , कोई मंदिर नहीं तोडा गया ,प्रतिपक्ष ने अदालत से मांग की थी की विवादित धचए को सार्वजानिक मस्जिद घोसित किया जाए।
प्रतिपक्ष नेताओ ने सर्कार को वचन दिया था की "यदि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने की बात सही पाई जाती है तब प्रतिपक्ष स्वेक्षा से इस विवादित स्थल को हिन्दुओ को सौप देंगे। "भारत सर्कार द्वारा जारी किए गए स्वेत पत्र में क्रमांक २. १ ,२.२ ,२.३ के अनुस्वार।
३ )७ जनवरी १९९३ को तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय ने संविधान की धरा १४३ के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट से अपने एक प्रश्न का उत्तर चाहा था , उनका प्रश्न था की "अयोध्या में बाबरी मस्जिद जिस स्थान पर कड़ी थी , उस स्थान पर इसके निर्माण के पहले कोई हिन्दू धार्मिक भवन अथवा कोई हिन्दू मंदिर था ,जिसे तोड़ कर ढांचा खड़ा किया गया ?
इसपर उच्चतम न्यायलय ने राष्ट्रपती के प्रश्न पूछने का कारन सर्कार से जानना चाहा था , तब भारत सरकार के सॉलिसटर जनरल ने १४ सितम्बर १९९४ को शपत -पत्र के माध्यम से कहा था की -" यदि महामहिम द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर सकारात्मक होता है अर्थात एक हिन्दू मंदिर /भवन को तोड़ कर विवादित भवन बनाया गया था तो भारत सरकार हिन्दू समाज की भावनाओ के अनुस्वार वयवहार करेगी। यदि इसके विपरीत प्रश्न का उत्तर नकारात्मक आता है अर्थात कोई हिन्दू मंदिर भवन १५२८ ईश्वी के पहले वहाँ था ही नहीं तो भारत सर्कार का वाइव्हर मुस्लिम समाज की भावनाओ के अनुस्वार होगा (१९६४ ) 6SSC383:ISMAIL FAROOQI BANAM BHARAT SARKAR .
४) रास्ट्रपती महोदय के प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए हाई कोर्ट ने धरती के नीचे की फोटोग्राफी रडार तरंगो से करवाई ,तत्पश्चात भारतीय पुरातत्व विभाग से उत्खनन करवाया ,फोटोग्राफी रिपोर्ट और उत्खनन रिपोर्ट दोनो ने ही ढाचाए के नीचे एक विशाल हिन्दू मंदिर होने की बात स्वीकार की ,इन्ही वैज्ञानिक रिपोर्टो के आधार पर न्यायधीशो ने लिखा है की -
क ) विवादित ढांचा किसी पुराने भवन को विध्वंश करके उसी स्थान पर बनाया गया था ,पुरातत्व विभाग ने यह सिद्ध किया है की वह पुराना भवन कोई विशाल हिन्दू धार्मिक स्थल था ... न्यायमूर्ती धर्मवीर शर्मा।
ख )विवादित ढांचा बाबर के द्वारा बनाया गया था। ...... यह इस्लाम के नियमो के विरुद्ध बना ,इसलिए यह मस्जिद का रूप नहीं ले सकता (न्यायमूर्ती धर्मवीर शर्मा )
ग ) तीन गुम्बदों वाला यह ढांचा किसी खली पड़े बंजर स्थान पर नहीं बना था बालक अवैध रूप से एक हिन्दू मंदिर /पूजा स्थल पर खड़ा किया गया था ,एक गैर इस्लामिक धार्मिक भवन का निर्माण कराया गया था (न्यायधीश न्याय मूर्ति सुधीर अग्रवाल )
घ ) प्रत्यक्ष साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध नहीं किया जा सका की निर्मित भवन सहित सम्पूर्ण विवादित परिसर बाबर अथवा इस मस्जिद को निर्माण कराने वाले व्यक्ति अथवा जिसके आदेश ये भवन बनाया गया , उसकी संपत्ति है ,"न्यायमूर्ति ऐस यु खान का यह निष्कर्ष विवादित भवन के वक्फ होने पर प्रश्नचिन्ह लगता है "
५ )मित्रो इस्लाम की मान्यताओं के अनुस्वार जोर- जबरदस्ती से प्राप्त की गयी भूमि पर पढ़ी गयी नमाज़ अल्लाह स्वीकार नहीं करते है और न ही ऐसी संपत्ति अल्लाह को समर्पित (वक्फ) की जा सकती है.किसी मंदिर का विध्वंस करके उसके स्थान पर मस्जिद के निर्माण करने की अनुमति मान्यताएं नहीं देती ,न्यायमुर्ती धर्मवीर शर्मा ने कुरआन व् इस्लाम की मान्यताओं का उल्लेख करते हुए निर्णय दिया की विजेता बाबर को भी विवादित भवन को मस्जिद के रूप में अल्लाह को समर्पित (वक्फ) करने का अधिकार नहीं था।
मित्रो उच्चतम न्यायलय में सम्बंधित केस उच्च न्यायलय के आधार पर ही होगा ,और राम लला का भव्य मंदिर उनके स्थान पर ही होगा , परन्तु इस निर्णय के खिलाफ कांग्रेस देश सद्भाव को तोड़ने की कोशीश करेगी जिससे हमें बचना होगा।
२) अदालत में प्रतिपक्ष का तर्क था की विवादित ढांचा खली पड़ी बंजर भूमि पर बनाया गया , कोई मंदिर नहीं तोडा गया ,प्रतिपक्ष ने अदालत से मांग की थी की विवादित धचए को सार्वजानिक मस्जिद घोसित किया जाए।
प्रतिपक्ष नेताओ ने सर्कार को वचन दिया था की "यदि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाने की बात सही पाई जाती है तब प्रतिपक्ष स्वेक्षा से इस विवादित स्थल को हिन्दुओ को सौप देंगे। "भारत सर्कार द्वारा जारी किए गए स्वेत पत्र में क्रमांक २. १ ,२.२ ,२.३ के अनुस्वार।
३ )७ जनवरी १९९३ को तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय ने संविधान की धरा १४३ के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट से अपने एक प्रश्न का उत्तर चाहा था , उनका प्रश्न था की "अयोध्या में बाबरी मस्जिद जिस स्थान पर कड़ी थी , उस स्थान पर इसके निर्माण के पहले कोई हिन्दू धार्मिक भवन अथवा कोई हिन्दू मंदिर था ,जिसे तोड़ कर ढांचा खड़ा किया गया ?
इसपर उच्चतम न्यायलय ने राष्ट्रपती के प्रश्न पूछने का कारन सर्कार से जानना चाहा था , तब भारत सरकार के सॉलिसटर जनरल ने १४ सितम्बर १९९४ को शपत -पत्र के माध्यम से कहा था की -" यदि महामहिम द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर सकारात्मक होता है अर्थात एक हिन्दू मंदिर /भवन को तोड़ कर विवादित भवन बनाया गया था तो भारत सरकार हिन्दू समाज की भावनाओ के अनुस्वार वयवहार करेगी। यदि इसके विपरीत प्रश्न का उत्तर नकारात्मक आता है अर्थात कोई हिन्दू मंदिर भवन १५२८ ईश्वी के पहले वहाँ था ही नहीं तो भारत सर्कार का वाइव्हर मुस्लिम समाज की भावनाओ के अनुस्वार होगा (१९६४ ) 6SSC383:ISMAIL FAROOQI BANAM BHARAT SARKAR .
४) रास्ट्रपती महोदय के प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए हाई कोर्ट ने धरती के नीचे की फोटोग्राफी रडार तरंगो से करवाई ,तत्पश्चात भारतीय पुरातत्व विभाग से उत्खनन करवाया ,फोटोग्राफी रिपोर्ट और उत्खनन रिपोर्ट दोनो ने ही ढाचाए के नीचे एक विशाल हिन्दू मंदिर होने की बात स्वीकार की ,इन्ही वैज्ञानिक रिपोर्टो के आधार पर न्यायधीशो ने लिखा है की -
क ) विवादित ढांचा किसी पुराने भवन को विध्वंश करके उसी स्थान पर बनाया गया था ,पुरातत्व विभाग ने यह सिद्ध किया है की वह पुराना भवन कोई विशाल हिन्दू धार्मिक स्थल था ... न्यायमूर्ती धर्मवीर शर्मा।
ख )विवादित ढांचा बाबर के द्वारा बनाया गया था। ...... यह इस्लाम के नियमो के विरुद्ध बना ,इसलिए यह मस्जिद का रूप नहीं ले सकता (न्यायमूर्ती धर्मवीर शर्मा )
ग ) तीन गुम्बदों वाला यह ढांचा किसी खली पड़े बंजर स्थान पर नहीं बना था बालक अवैध रूप से एक हिन्दू मंदिर /पूजा स्थल पर खड़ा किया गया था ,एक गैर इस्लामिक धार्मिक भवन का निर्माण कराया गया था (न्यायधीश न्याय मूर्ति सुधीर अग्रवाल )
घ ) प्रत्यक्ष साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध नहीं किया जा सका की निर्मित भवन सहित सम्पूर्ण विवादित परिसर बाबर अथवा इस मस्जिद को निर्माण कराने वाले व्यक्ति अथवा जिसके आदेश ये भवन बनाया गया , उसकी संपत्ति है ,"न्यायमूर्ति ऐस यु खान का यह निष्कर्ष विवादित भवन के वक्फ होने पर प्रश्नचिन्ह लगता है "
५ )मित्रो इस्लाम की मान्यताओं के अनुस्वार जोर- जबरदस्ती से प्राप्त की गयी भूमि पर पढ़ी गयी नमाज़ अल्लाह स्वीकार नहीं करते है और न ही ऐसी संपत्ति अल्लाह को समर्पित (वक्फ) की जा सकती है.किसी मंदिर का विध्वंस करके उसके स्थान पर मस्जिद के निर्माण करने की अनुमति मान्यताएं नहीं देती ,न्यायमुर्ती धर्मवीर शर्मा ने कुरआन व् इस्लाम की मान्यताओं का उल्लेख करते हुए निर्णय दिया की विजेता बाबर को भी विवादित भवन को मस्जिद के रूप में अल्लाह को समर्पित (वक्फ) करने का अधिकार नहीं था।
मित्रो उच्चतम न्यायलय में सम्बंधित केस उच्च न्यायलय के आधार पर ही होगा ,और राम लला का भव्य मंदिर उनके स्थान पर ही होगा , परन्तु इस निर्णय के खिलाफ कांग्रेस देश सद्भाव को तोड़ने की कोशीश करेगी जिससे हमें बचना होगा।
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