chaitanya shree
क्या मुस्लिमो का आरक्षण एक राजनितिक घूस है ?
chaitanya shreeक्या मुस्लिमो का आरक्षण एक राजनितिक घूस है ?
मै अगर इस सवाल का उत्तर अगर हां में दू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, लेकिन मै इस सवाल पर अपनी प्रतिक्रिया कुछ तथ्यों के साथ देना चाहता हूँ।
२७ जून १९६१ को देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित नेहरू ने सभी मुख्यमंत्रियो को पत्र लिखकर अवगत कराया था कि मज़हब के आधार पर किसी भी प्रकार का आरक्षण ना दिया जाय,इसी प्रकार १९३६ में पूना पैक्ट के बाद अंग्रेज सरकार ने अनुसूचित जाती कि पहली सूची जारी जारी कि थी,जिसमे धर्मान्तरित ईसाई व् मुस्लिम कि जातिया उसमे शामिल करने कि मांग उठाई गयी थी , जिसे अंग्रेज हुकूमत ने अस्वीकार कर दिया था। परन्तु मनमोहन सरकार अपने पूर्वज से न सीख लेकर सच्चर समिति के बाद रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन करके धर्मान्तरित ईसाई व् धर्मान्तरित मुस्लिमो को अनुसूचित जाती का आरक्षण करने हेतु पैरवी प्रारम्भ कर दी प्रारम्भिक तौर पर राष्ट्रीय अनुसूचित जन जाती आयोग के अध्यक्ष श्री बूटा सिंह ने भी इसका विरोध किया था, परन्तु सोनिया गांधी कि सहमति देखकर बूटा सिंह गए थे। अब इलेक्शन का वक्त होने के कारण कांग्रेस ने फिर इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया है।
सरकार के नीतियो को लेकर अदालतो का दृष्टिकोण काफी कड़ा रहा है ,इसी मुस्लिम आरक्षण को लेकर अदालतो का दृष्टिकोण काफी कड़ा रहा है, इसी मुस्लिम आरक्षण को लेकर , तथा सच्चर समिति कि सिफारिशों को न लागू करने के सम्बन्ध में केंद्र सरकार के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायलय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार के वकील को कड़ी फटकार लगाते हुए बोला था :-
- आप गरीबी से लड़ना चाहते है तो धर्म आड़े क्यों आ रहा है ?
- क्या यह समुदाय विशेष का तुष्टिकरण करने का प्रयास तो नहीं है ?
- क्या यह समिति इसी काम के लिए बनी है ?
- क्या सरकार को सबके भले के लिए पैसा खर्च करना चाहिए या किसी एक समुदाय विशेष के उत्थान के लिए ?
-आखिर ९० मुस्लिम बहुल जिले चिन्हित कर उनमे मुस्लिमो कि तरक्की के ही विशेष प्रयास क्यों किये गए है ?
-सरकार केवल अल्पसंख्यको के उत्थान के लिए कटिबध्ध है , बहुसंख्यको के लिए क्यों नहीं है ?
- आप अंग्रेजो कि तरह "बाटों और राज करो "के सिद्धांत पर क्यों चलना चाहते है ?
अगर मै ठीक से समझा हूँ तो आरक्षण और कोटा जैसे सुविधाओ का लाभ असली जरूरत मंदो तक नहीं पहुच पाया है , जबकी इसका फायदा क्रीमी लेयर जायदा उठाते है , आज हालात यह है कि पढाई नौकरी ,,व्यापार ,हर क्षेत्र में आरक्षण को जगह मिली हुई है ,आश्चर्य कि बात तो यहाँ है कि चिकित्सा जैसे क्षेत्रो में भी आरक्षण लागू है , यह बात समझ से परे है कि मानव जीवन से जुड़े पेशे में आरक्षण देना वोट बैंक कि राजनीति के अलावा क्या हो सकता है ?इसे तो सही तौर पर राजनितिक घूस कहा जा सकता है।
मेरे विचार से नौकरियों में मुस्लिमो को आरक्षण कि घोषणा मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने कि है ये सरासर एक राजनितिक घूस है ,जिसका बहिष्कार जवाहर लाल नेहरू शुरू में ही कर चुके थे , पर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को इससे क्या फर्क पड़ता है , मनमोहन सिंह ने यह ऐलान किया हुआ है कि सरकार सच्चर समिति कि सिफारिशों पर अमल करने के लिए तैयार है , चुनाव से पहले मुस्लिमो को ये सीधी रिश्वत दी जा रही है। हिन्दू गरीबी में भले ही एड़िया रगड़-रगड़ कर मर जाए , कोई नहीं पूछेगा न सरकार न रिश्तेदार , न मित्र , कोई सहायता नहीं करता , लेकिन मुस्लिम भाइयो को इस बात से सतर्क रहना होगा कि चुनाव से पहले सहानुभूति जताकर राजनितिक दल उनसे धोखा तो नहीं कर रहे , जो बाद में न्यायिक प्रक्रिया के जाल में न फस जाए। इस विषय पर मुस्लिम समाज को थोडा सोचना पड़ेगा।
मै अगर इस सवाल का उत्तर अगर हां में दू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, लेकिन मै इस सवाल पर अपनी प्रतिक्रिया कुछ तथ्यों के साथ देना चाहता हूँ।
२७ जून १९६१ को देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित नेहरू ने सभी मुख्यमंत्रियो को पत्र लिखकर अवगत कराया था कि मज़हब के आधार पर किसी भी प्रकार का आरक्षण ना दिया जाय,इसी प्रकार १९३६ में पूना पैक्ट के बाद अंग्रेज सरकार ने अनुसूचित जाती कि पहली सूची जारी जारी कि थी,जिसमे धर्मान्तरित ईसाई व् मुस्लिम कि जातिया उसमे शामिल करने कि मांग उठाई गयी थी , जिसे अंग्रेज हुकूमत ने अस्वीकार कर दिया था। परन्तु मनमोहन सरकार अपने पूर्वज से न सीख लेकर सच्चर समिति के बाद रंगनाथ मिश्र आयोग का गठन करके धर्मान्तरित ईसाई व् धर्मान्तरित मुस्लिमो को अनुसूचित जाती का आरक्षण करने हेतु पैरवी प्रारम्भ कर दी प्रारम्भिक तौर पर राष्ट्रीय अनुसूचित जन जाती आयोग के अध्यक्ष श्री बूटा सिंह ने भी इसका विरोध किया था, परन्तु सोनिया गांधी कि सहमति देखकर बूटा सिंह गए थे। अब इलेक्शन का वक्त होने के कारण कांग्रेस ने फिर इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया है।
सरकार के नीतियो को लेकर अदालतो का दृष्टिकोण काफी कड़ा रहा है ,इसी मुस्लिम आरक्षण को लेकर अदालतो का दृष्टिकोण काफी कड़ा रहा है, इसी मुस्लिम आरक्षण को लेकर , तथा सच्चर समिति कि सिफारिशों को न लागू करने के सम्बन्ध में केंद्र सरकार के विरुद्ध दिल्ली उच्च न्यायलय ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार के वकील को कड़ी फटकार लगाते हुए बोला था :-
- आप गरीबी से लड़ना चाहते है तो धर्म आड़े क्यों आ रहा है ?
- क्या यह समुदाय विशेष का तुष्टिकरण करने का प्रयास तो नहीं है ?
- क्या यह समिति इसी काम के लिए बनी है ?
- क्या सरकार को सबके भले के लिए पैसा खर्च करना चाहिए या किसी एक समुदाय विशेष के उत्थान के लिए ?
-आखिर ९० मुस्लिम बहुल जिले चिन्हित कर उनमे मुस्लिमो कि तरक्की के ही विशेष प्रयास क्यों किये गए है ?
-सरकार केवल अल्पसंख्यको के उत्थान के लिए कटिबध्ध है , बहुसंख्यको के लिए क्यों नहीं है ?
- आप अंग्रेजो कि तरह "बाटों और राज करो "के सिद्धांत पर क्यों चलना चाहते है ?
अगर मै ठीक से समझा हूँ तो आरक्षण और कोटा जैसे सुविधाओ का लाभ असली जरूरत मंदो तक नहीं पहुच पाया है , जबकी इसका फायदा क्रीमी लेयर जायदा उठाते है , आज हालात यह है कि पढाई नौकरी ,,व्यापार ,हर क्षेत्र में आरक्षण को जगह मिली हुई है ,आश्चर्य कि बात तो यहाँ है कि चिकित्सा जैसे क्षेत्रो में भी आरक्षण लागू है , यह बात समझ से परे है कि मानव जीवन से जुड़े पेशे में आरक्षण देना वोट बैंक कि राजनीति के अलावा क्या हो सकता है ?इसे तो सही तौर पर राजनितिक घूस कहा जा सकता है।
मेरे विचार से नौकरियों में मुस्लिमो को आरक्षण कि घोषणा मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी ने कि है ये सरासर एक राजनितिक घूस है ,जिसका बहिष्कार जवाहर लाल नेहरू शुरू में ही कर चुके थे , पर मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को इससे क्या फर्क पड़ता है , मनमोहन सिंह ने यह ऐलान किया हुआ है कि सरकार सच्चर समिति कि सिफारिशों पर अमल करने के लिए तैयार है , चुनाव से पहले मुस्लिमो को ये सीधी रिश्वत दी जा रही है। हिन्दू गरीबी में भले ही एड़िया रगड़-रगड़ कर मर जाए , कोई नहीं पूछेगा न सरकार न रिश्तेदार , न मित्र , कोई सहायता नहीं करता , लेकिन मुस्लिम भाइयो को इस बात से सतर्क रहना होगा कि चुनाव से पहले सहानुभूति जताकर राजनितिक दल उनसे धोखा तो नहीं कर रहे , जो बाद में न्यायिक प्रक्रिया के जाल में न फस जाए। इस विषय पर मुस्लिम समाज को थोडा सोचना पड़ेगा।
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