chaitanya shree क्या वोटो के लालच में धर्मनिरपेक्षता शब्द का खुला दुरूपयोग किया जाता रहा है ?
क्या हिन्दुओ कि हर बात सांप्रदायिक और राष्ट्र विरोधी बन जाती है?
मित्रो राष्ट्र को आराध्य मानने वाला हिन्दू सांप्रदायिक कैसे हो सकता है, संसार के किसी देश में ८० प्रतिसत बहुमत वाली जनसँख्या को साम्प्रदयिक नहीं माना जा सकता है . वह तो अपने आप में एक स्वस्थ एवं सबल राष्ट्र होने का सामर्थ्य रखता है , परन्तु हमारे यहाँ ऐसा इसलिये होता है की हिन्दू संगठित न हो कर अलग-अलग पार्टियों को अपनी रुचि के अनुस्वार वोट देता है. और मुस्लिम अल्पमत संगठित होकर हिन्दू के मुकाबले एक मुस्लिम को वोट देकर सफल बनाते है. मुस्लिमो का वोट किसी भी गैर मुस्लिम को वोट तभी पड़ता है जब कोई मुस्लिम चुनाव छेत्र में नहीं रहता है. इसमें उसके वोट का महत्व है. हिन्दुओ के वोट अब तक धर्मनिर्पेक्ष (सो कॉल्ड)पार्टियों को ही मिलते रहे है. इसलिये इनकी वोट की कोई कीमत नहीं है. यह धर्मनिर्पेक्षता , हिन्दुओ के वोट लेकर मुस्लिम साम्प्रदायिकता को पालती पोषती रहती है , इसलिये उनकी हर बात का महत्व होता है . और हिन्दुओ की हर बात सांप्रदायिक और राष्ट्र - विरोधी बन जाती है।
वोटो के लालच में सेकुलरिज्म शब्द का खुला दुरूपयोग होता रहा है। जब कभी हिन्दू हितो कि बात हो तो उन्हें धर्मनिर्पेक्षता विरोधी बता कर विरोध किया जाने लगता है । इस प्रकार धर्मनिर्पेक्ष शब्द को हिन्दू विरोध का पर्यावाची मान लिया गया है। क्या सेक्युलर स्टेट में सबके लिए एक सा कानून नहीं होना चाहिए ? मित्रो सामान नागरिक संहिता , धर्म परिवर्तन के खिलाफ कठोर कानून बनाने की जरूरत है।

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