chaitanya shreeक्या साम्प्रदायिकता विरोधी विधेयक,तथा हिन्दू -मुस्लिम दंगो का विशलेषण नहीं होना चाहिये?
विदेसियो के नजर में हिन्दुओ के अत्याचारो के शिकार मुस्लिम समुदाय हो रहे है ,ऐसा प्रचार -प्रसार किया जा रहा है, इसकी प्रतिक्रिया में विदेशो में हमारी मंदिर और गुरूद्वारे अपमानित किये जाते है और हमारी सरकार सिर्फ जबानी जमा खर्च के कुछ नहीं करती। कांग्रेस तथा छेत्रिये पार्टिया केवल अपनी गद्दी कि सुरक्षा के लिये भारतीय जनता पार्टी को बदनाम करने में जुटी रहती है। अगर हिन्दू सांप्रदायिक होते तो राज्य हिंदुनिष्ट संस्थाओ का होता इन सेक्युलरवादियों का नहीं।
लौकिकता ,सवधर्म समभाव तथा प्रजातंत्र वास्तव में देश में कभी नहीं चलाये गए। अल्पसंख्यको के वोट बटोर कर अपनी गद्दी सुरक्षित करने के बाद हिन्दू बहुमत को गाली देना , उन्हें आतंकित करना , उन्हें साम्प्रदायिक तथा देश विरोधी बताना कांग्रेस नेतृत्व कि पुरानी प्रवृति रही है ,जबकि वह हिन्दू बहुमत के वोट और नोट से ही शासक बनते है। साम्प्रदायिकता विरोधी विधेयक भी उसी कि एक कड़ी है जिससे अल्पसंख्यको के वोटो को बटोरा जा सके। कांग्रेस का जनाधार जब भी खिसकता है या उसे भ्रस्टाचार और घोटाले के कारण झटके पर झटका लगता है तो वह ऐसा ब्रम्हास्त्र चलाने कि फिराक में रहती है कि देश के १८ करोड मुस्लिम मतदाता किसी न किसी तरह पट जाये।
कांग्रेस तथा प्रदेशो के छुटभैये छेत्रिये दलो के नेता राष्ट्रीय एकता ,धर्मनिरपेक्षता ,साम्प्रदायिक सदभाव , जाती विहीन समाज , सामाजिक न्याय आदि कि लम्बी - चौड़ी बाते करते आ रहे है तो फिर हम उससे एकदम उलटी दिशा में बढ़ते क्यों देख रहे है जो देश को पुनः विभाजन के निकट ला रहा है ?हम लम्बे समय से इस विनाश कारी राजनितिक प्रणाली का सक्रिय अंग हो चुके है और इससे यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि कांग्रेस तथा क्षेत्रीय दलो का राजनितिक नेतृत्व अपनी चुनावी रणनीति और वादे गणित का पूरा गुलाम बन चूका है , इनकी धारणा पक्की बन चुकी है कि मुस्लिम समुदाय ही सबसे पक्का और सबसे बड़ा आधार है क्योकि मुस्लिम मतदाता अपने वोट मजहबी आधार पर ही प्रयोग करते है , इससे यह स्पस्ट होता है कि इनकी धर्मनिरपेक्षता का अर्थ हिन्दुओ पर हिन्दू ही आक्रमण करते रहे और वह धर्मनिरपेक्ष कहलाता रहे। इसका सबसे बड़ा मिसाल सांप्रदायिक विरोधी बिल सबसे बड़ा उदहारण है।
मेरे मन में एक सवाल है क्या हम जम्मू -कश्मीर में साम्प्रदायिकता विरोधी बिल लागू कर सकते है ?
कानून में धर्म या जाती के आधार पर भेद भाव क्यों किया जा रहा है ? अपराध तो अपराध है चाहे वह किसी समुदाय के वयक्ति ने किया हो।
२१ वी शताब्दी में एक ऐसा कानून बनाया जा रहा है जिसमे किसी अपराधी कि जाती और धर्म उसको अपराध से मुक्त ठहराता है।
साम्प्रदायिकता विरोधी विधेयक अँधा कानून है ,काला क़ानून है।
विधेयक में साम्प्रायिक सौहार्द , न्याय और क्षतिपूर्ती के लिए एक सात सदसिये राष्ट्रिय प्राधिकरण होगा। इन ७ सदस्यो में कम से कम चार सदस्य (जिसमे अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी शामिल है )समूह अर्थात अल्पसंखयक समुदाय से होंगे।
विदेसियो के नजर में हिन्दुओ के अत्याचारो के शिकार मुस्लिम समुदाय हो रहे है ,ऐसा प्रचार -प्रसार किया जा रहा है, इसकी प्रतिक्रिया में विदेशो में हमारी मंदिर और गुरूद्वारे अपमानित किये जाते है और हमारी सरकार सिर्फ जबानी जमा खर्च के कुछ नहीं करती। कांग्रेस तथा छेत्रिये पार्टिया केवल अपनी गद्दी कि सुरक्षा के लिये भारतीय जनता पार्टी को बदनाम करने में जुटी रहती है। अगर हिन्दू सांप्रदायिक होते तो राज्य हिंदुनिष्ट संस्थाओ का होता इन सेक्युलरवादियों का नहीं।
लौकिकता ,सवधर्म समभाव तथा प्रजातंत्र वास्तव में देश में कभी नहीं चलाये गए। अल्पसंख्यको के वोट बटोर कर अपनी गद्दी सुरक्षित करने के बाद हिन्दू बहुमत को गाली देना , उन्हें आतंकित करना , उन्हें साम्प्रदायिक तथा देश विरोधी बताना कांग्रेस नेतृत्व कि पुरानी प्रवृति रही है ,जबकि वह हिन्दू बहुमत के वोट और नोट से ही शासक बनते है। साम्प्रदायिकता विरोधी विधेयक भी उसी कि एक कड़ी है जिससे अल्पसंख्यको के वोटो को बटोरा जा सके। कांग्रेस का जनाधार जब भी खिसकता है या उसे भ्रस्टाचार और घोटाले के कारण झटके पर झटका लगता है तो वह ऐसा ब्रम्हास्त्र चलाने कि फिराक में रहती है कि देश के १८ करोड मुस्लिम मतदाता किसी न किसी तरह पट जाये।
कांग्रेस तथा प्रदेशो के छुटभैये छेत्रिये दलो के नेता राष्ट्रीय एकता ,धर्मनिरपेक्षता ,साम्प्रदायिक सदभाव , जाती विहीन समाज , सामाजिक न्याय आदि कि लम्बी - चौड़ी बाते करते आ रहे है तो फिर हम उससे एकदम उलटी दिशा में बढ़ते क्यों देख रहे है जो देश को पुनः विभाजन के निकट ला रहा है ?हम लम्बे समय से इस विनाश कारी राजनितिक प्रणाली का सक्रिय अंग हो चुके है और इससे यह विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है कि कांग्रेस तथा क्षेत्रीय दलो का राजनितिक नेतृत्व अपनी चुनावी रणनीति और वादे गणित का पूरा गुलाम बन चूका है , इनकी धारणा पक्की बन चुकी है कि मुस्लिम समुदाय ही सबसे पक्का और सबसे बड़ा आधार है क्योकि मुस्लिम मतदाता अपने वोट मजहबी आधार पर ही प्रयोग करते है , इससे यह स्पस्ट होता है कि इनकी धर्मनिरपेक्षता का अर्थ हिन्दुओ पर हिन्दू ही आक्रमण करते रहे और वह धर्मनिरपेक्ष कहलाता रहे। इसका सबसे बड़ा मिसाल सांप्रदायिक विरोधी बिल सबसे बड़ा उदहारण है।
मेरे मन में एक सवाल है क्या हम जम्मू -कश्मीर में साम्प्रदायिकता विरोधी बिल लागू कर सकते है ?
कानून में धर्म या जाती के आधार पर भेद भाव क्यों किया जा रहा है ? अपराध तो अपराध है चाहे वह किसी समुदाय के वयक्ति ने किया हो।
२१ वी शताब्दी में एक ऐसा कानून बनाया जा रहा है जिसमे किसी अपराधी कि जाती और धर्म उसको अपराध से मुक्त ठहराता है।
साम्प्रदायिकता विरोधी विधेयक अँधा कानून है ,काला क़ानून है।
विधेयक में साम्प्रायिक सौहार्द , न्याय और क्षतिपूर्ती के लिए एक सात सदसिये राष्ट्रिय प्राधिकरण होगा। इन ७ सदस्यो में कम से कम चार सदस्य (जिसमे अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी शामिल है )समूह अर्थात अल्पसंखयक समुदाय से होंगे।
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