Saturday, 17 August 2013

शहीद भगत सिंह क्या शहीदे आज़म थे? RTI के तहत भारत सरकार तो यही कहती है

शहीद भगत सिंह क्या शहीदे आज़म थे? RTI  के तहत  भारत सरकार  तो यही कहती है 
                                मै इस पर कुछ ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत करना चाहता हु ,जो शायद भारत की नागरिको को पता नहीं है ,
                                जिस समय भारत में भगत सिंग को फासी दी गयी थी उसी वर्ष इंग्लैंड में लेबर पार्टी सत्तासीन हुई थी, प्रधानमंत्री रैम्सी  मेक्डोनाल्ड ने भारत के वायसराय  इरविन को लन्दन बुलाया ,इससे पूर्व वह एक प्रेस कांफ्रेंस के क्रम में प्रधानमन्त्री कह चुके थे -"भगत सिंह आदि का इरादा हत्या का नहीं था , वह धमाके से विरोध कर रहे थे "
                                इधर राउंड टेबल कांफ्रेंस का निमंत्रण कांग्रेस इसलिये ठुकरा चुकी थी क्योकि बापू चाहते थे भारत से कांग्रेस के अतिरिक्त और कोई भी लन्दन आमंत्रित न किया जाये , रैम्सी मक्दोनाल्ड की इक्षा थी की इसमें रियासती रजा भी बैठे ,क्रांतिकारियों को भी बुलाये और अहिन्सको को भी। राजे रजवाडो तक बापू मान गए लेकिन सुभास चन्द्र बोसे , भगत सिंह , तथा उनके साथियो और चंद्रशेखर आजाद को कांफ्रेंस में बुलाने के कारन कड़ी आपत्ति दर्ज किया और राउंड टेबल कांफ्रेंस को ठुकरा दिया। ३० नवम्बर ,१९३० को यह कांफ्रेंस लन्दन में न हो सकी। 
                              ब्रिटिश राज सत्ता जानती थी की क्रांतिकारियों से राष्ट्र की अस्मिता के विरोध में कुछ भी समझौता नहीं हो सकता , परन्तु सुविधा भोगी कांग्रेसी कुछ भी कर सकते है। 
                              अतः यही हुआ। 
                               अहिन्सको ने पहली शर्त रखी
                              पहले गांधीजी और नेहरूजी को रिहा किया जाये और साथ में वह जिसे भी रिहा करने को कहे , उन्हें भी किया जाये। 
                              जनवरी , १९३१ में नेहरु तथा अन्य नेताओ के साथ गांधीजी जेल से बाहर आ गए। इसी दौरान लार्ड इरविन ने स्पस्ट पुछा " क्या आप भगत सिंह आदि को भी चुदाना चाहते है , हम उसकी आज्ञा ब्रिटिश सरकार से ले लेंगे। 
                              बापू ने इरविन से कहा " मै भगत सिंह की भावना की क़द्र तो करता हु पर हिंसा के किसी भी पूजक को छोड़ने की पैरवी मई नहीं कर सकता , इससे हमारे शांतिपूर्ण आन्दोलन में दरार पद जाएगी , लोगो का हमसे विश्वास उठ जायेगा।  
                             दुसरे दिन ही जेल में भगत सिंह ने कहा ,
                             "जीवन की भीख मांगने से अच्छा है , मै यही प्राण दे दू। अच्चा किया बापू ने हमारी वकालत नहीं की "
                              राउंड टेबल कांफ्रेंस में अहिंसक आन्दोलनकारी शामिल हुए , विदेशी बहिष्कार नहीं करेंगे ,इसे लिखित रूप में दे दिया गया , ४ मार्च , १९३० को अहिन्सको का आन्दोलन मूलतः धराशाही हो गया ,सरे तथाकथित अहिन्षक जेल से बहार आ चुके थे। 
                            २३ मार्च , १९३१ को भगत सिंह ,राजगुरु , और सुखदेव को फांसी लगा दी गयी , मेरा  सवाल यह है, क्या यह समझौता सम्मान पूर्ण था ?क्या यह कर्तिकरियो से कांग्रेस ने छल-कपट नहीं किया था ?क्या हो जाता अगर जेल के बहार भूख हड़ताल का ढोंग करने वालो ने जेल के ही अन्दर इस मुद्दे पर "भूख हड़ताल " की होती की पहले भगत सिंह और उनके साथियो को छोड़ो , उन्होंने किसी की हत्या नहीं की , केवल धमाका किया है और उन पर चलाये जा रहे मुक्कद्दमे अंग्रेज वापस ले ?
                           और अब कांग्रेस की दोगली निति का भंडा  फोड़ हुआ है एक रति के तहत जिसमे भगत सिंह  को शहीद-ए -आजम की उपाधि नवाजा गया है। (उपरोक्त वाकया लिकने का हमारा मकसद लोगो को सही जानकारी देना है )
      




   
                        

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