क्या मजहब के आधार पर आरक्षण देना चाहिये ?( भाग-२ )
१६ दिसम्बर , २००४ को कैथोलिक बिशप कांग्रेस ऑफ़ इंडिया ने नई दिल्ली में ३४ इसाई और १४ गैर इसाई अर्थात कुल ४८ सांसदों की बैठक बुलाई , जिनमे धर्मान्तरित इसाई और मुसलमानों को अनुशुचित जाती के आरक्षण का लाभ दिलवाने सम्बन्धी जनहित याचिका सर्वोच्च न्यायलय में दाखिल करने का विचार तय हुआ। इस याचिका के सन्दर्भ में केंद्र सरकार ने अपनी सहमती वैयक्त की , जिसका ब्यान सरकार के वकील ने कोर्ट में दिया , इसपर नयायलय ने सहमती का आधार जानना चाहा। आधार बताने के लिये बड़े ही नाटकीय ढंग से रंगनाथ मिश्र आयोग बनाकर सरकार ने १० मई , २००७ को मनमानी रिपोर्ट सर्वॊच्च न्यायलय में प्रस्तुत कर दी जबकि सुप्रीम कोर्ट पंजाब राव बनाम मेश्राम (१९६५ ), रामलिंगम बनाम अब्राहम (१९६७ ),सुसाई बनाम भारत संघ (१९८७ ) आदि विवादों से पहले ही इस विषय पर असहमति वैयक्त कर चूका है। लेकिन केंद्र सरकार की नियत कैसी विचित्र है की १० मार्च ,२००६ को अल्प्संक्यक शिक्षण संस्थानों में अनु. जाती एवं पिछड़े वर्ग के आरक्षण की वेवस्था को छात्रों के प्रवेश के सम्बन्ध में समाप्त कर दिया गया जबकि धर्मान्तरित इसाई व् मुसलमानों को अनुशुचित जाती का आरक्षण दिलवाने की पैरवी प्रारभ कर दी गयी। मेरे मन में एक सवाल खटकता है की , क्या सचमुच में यह धर्मान्तरण को प्रेरित करने , तथा भारत में हिन्दू जनसँख्या कम करने का गंभीर षड़यंत्र नहीं रचा जा रहा ?
No comments:
Post a Comment