Thursday, 20 June 2013

हमारी भूमि विधवा की मांग की भाति सूनी पड़ी रही (on uttrakhand)

chaitanya shree
पहले बड़ा आदमी बाग़ लगवाता था और अब बड़ा आदमी बाग़ कटवा कर कालोनी बसाता  है , पहले पेड़ लगवाने वाला भला आदमी कहलाता था और अब भला वह है जो पेड़ कटवाता है . यह परिणाम नकली जीवन जीने की पद्धति है , प्रकृति  से मुह मोड़ कर हमने परियावरण को डुबो दिया , वैसे तो हमारे देश परियवरण  के नाम पर कई अरब पेड़ लग चुके है  परन्तु वे  पेड़ कागज़ पर लगे और  हमारी भूमि विधवा की मांग की भाति सूनी पड़ी रही  . उत्तराखंड और बाढ़ इसीका परिणाम है. वन नदियों की माँ है जिसे सदा नजरअंदाज की जाता रहा है , आब यह इस्तिती आ गयी है की वन ,भॊअस्खलन एवं नदियों  के बीच अंतर्द्वंद की लड़ाई  चल रही है , मिटटी पानी और बयार जिन्दा रहने के आधार . मै  तबाही का मंजर देख कर खुद से लड़ाई कर रहा हु , आखिर हम कब समझेंगे , मुझे याद आ रहा है जब अस्नातक का छात्र था तो मैंने संस्कृत  में एक कविता लिखी थी जो याद आ रहा है
                                                                     रक्षानियम परियावरण  खलु रक्ष्नायम परियावरण
                                                                      भोमंडल मेतत जीवजगत यस्मिन सर्वे निवास्मो वयं
                

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