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Tuesday, 22 December 2015

हिन्दू समाज के लिए बुद्धि जीवी पहल करे भाग -२

chaitanya shree हिन्दू समाज के लिए बुद्धि जीवी पहल करे भाग -२

आज सभी धर्मो को मानने वालो की नजर सनातन धर्म कि वर्त्तमान स्थिति पर है और वर्त्तमान स्थिति को ही हिन्दू समाज की नियति मान ली गयी है। आगे -पीछे का विचार करने कि आवश्यकता आज लोग करना नहींचाह  रहे , और अगर विचार -  विमर्श हो भी रहा है तो वर्त्तमान स्थिति पर ही तर्क - वितर्क ,बहस तथा आपस में ही घमासान मचाने  की होड़ लगी है। हमारे समाज के रचनाकार जिन्होंने सभी जीवो में परमात्मा का दर्शन किया ,कण -कण में भगवान का साक्षात्कार किया और सभी मानव जाती को कुटुंब के रूप में देखा इस पर हमें गंभीरता पूर्वक पुनर्विचार करने की आवश्यकता है , आज की वर्त्तमान स्थिति हिन्दू समाज कि वास्तविक स्थिति नहीं है। हमें हिन्दू समाज की स्वाभाविक स्थिति व् व्यवस्था को खोजना पड़ेगा , जिसके लिए मै अतीत का अवलोकन करना जरूरी समझता हूँ। हमारे हिन्दू समाज में कुछ भ्रम फैले हुए है जिसका निवारण है जिसे मै  मित्रो को बताना जरूरी समझता हूँ।

१। एक भ्रम समाज में यह फैला हुआ है की वर्ण व्यवस्था में छुआ-छूत के कीटाणु विद्दमान है ,किन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है , मुस्लिम आक्रमणों के पूर्व हमारे समाज में वर्ण व्यवस्था तो थी लेकिन छुआछूत नहीं था। उस काल में शूद्र अस्पृश्य नहीं थे। ये दोन्हो बाते अलग-अलग है इनका एक दूसरे से सम्बन्ध नहीं है। शूद्र व् अस्पृश्य एक नहीं अलग अलग स्थिति है।

२। जैसे प्रसूति अवस्था में माँ अस्पृश्य होती है किन्तु अवस्था समाप्त होने के बाद सामान्य हो जाती है। सभी समाजो में स्वक्षता के दृष्टि सामान रहती है ,जैसे ह्रदय  रोगियों के कमरे में जूते आदि पहनकर नहीं जाने दिया जाता या अन्य संक्रामक रोगो में शेष लोगो से रोगी को अलग रहने कि सलाह दी जाती है। ऑपरेशन के बाद बिना स्नान आदि किए डॉक्टर अस्पृश्य जैसे ही रहते है ,अस्पृश्यता अस्थायी होती है जो परिस्थितियों पर निर्भर करती है।  यह हमारे चिंतन का विषय नहीं है।

३. समाजगत जन्मना छुआ - छूत - यह वह अवस्था है , जिसमे जन्म से ही कुछ लोग अस्पृश्य मान लिए जाते है , हमारे चिंतन का विषय यही वर्गगत जन्मना छुआछूत है।

            रहा सवाल अतीत का तो ,हमें बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं है। सन ७१२ ई ०  से लेकर १९४७ ई ० तक हिन्दू समाज निरंतर विदेशी आक्रांताओ से जूझता रहा है। हिन्दू समाज का अध्यन हेतु काल खंडो के बीच विभाजन रेखा खींचनी हो तो ७१२ ई ० हो सकती है क्योकि मुस्लिम आक्रमणों कि श्रंखला यही से शुरू होती है।  हिन्दू समाज को दो भागो में विभाजित किया जा सकता है।
१। वैभव व् विजय का काल खंड
२। पराजय व् ग़ुलामी का संघर्ष काल
इन दोन्हो काल खंडो का सम्यक विश्लेषण करने के बाद ही छुआ छूत के सम्बन्ध में किसी निष्कर्ष पर पहुँच सकते है। जिनका वर्णन मै आगे की श्रंखलाओ  में करूंगा।