chaitanya जीतेगा राष्ट्रवाद हारेगा जातिवाद भाग-६ ( सेक्युलर और विभिन्न धर्म के मानने वालो द्वारा शम्बूक की कहानी सुनाकर सनातन धर्म को मानने वालो को बाटना )
chaitanya shree हमारे कुछ मित्रो ने वाल्मीकि रामायण में उदृत शूद्र- शम्बूक वध की कथा लिख कर भेजा था , मै उसका उत्तर देने का एक छोटा सा कोशिश कर रहा हूँ।
अक्सर शूद्र -संबूक वध को जातीगत खाई को बढ़ाने , अन्य धर्मावलम्बी अपने धर्म का प्रचार -प्रसार करने के लिए , सनातन धर्म को नीचा दिखने के लिए एवं तथाकथित दलितों के ह्रदय में सनातन धर्म के प्रति नफरत पैदा करने और हिन्दू धर्म में तथाकथित दलितों का का कोई स्थान नहीं है , यह विचार उनमे घुसा कर अधिक -से अधिक पिछड़े बंधुओ को हिन्दू धर्म का त्याग करवाकर अपने धर्म में बटोर लेने के लिए शम्बूक - शूद्र वध की कथा बड़े जोर -शोर से प्रचारित करते है , अतः इस पर चर्चा करना मै जरूरी समझता हूँ , यह मेरा आखरी पड़ाव है "जीतेगा राष्ट्र वाद हारेगा जातिवाद" की शृंखला का।
कहानी -
एक दिन एक ब्राह्मण अपने मृतपुत्र के शव को लेकर श्री राम के दरबार में पंहुचा ,और कहा " राजा के ही अपराध से मेरा लड़का मर गया , वार्ना पिता के रहते पुत्र की मृत्यु कैसे हो सकती है ?"
श्री रामजी ने इस पर विचार करने के लिए नारदादि ऋषियों की एक सभा बुलाई , आपस में विचार विमर्श करके नारदजी ने घोषणा की कि निश्चय ही आपके राज्य में कोई शूद्र तप कर रहा है , इसीलिए ब्राह्मण पुत्र की मृत्यु हुई है , अतः लोक धर्म की रक्षा के लिए उक्त तपस्वी शूद्र का वध करना होगा , तभी ब्राह्मण पुत्र जीवित हो सकता है।
तपस्यारत शूद्र को खोजने श्री राम वन को प्रस्थान करते है , जहा उन्होंने देखा की एक शूद्र पेड़ पर लटक कर तपस्या में लीन है , श्री रामजी उस शूद्र से पूछते है " तुम क्यों तप कर रहे हो ? तपस्वी शूद्र शम्बूक ने कहा " मैं निः संदेह स्वर्ग जाना चाहता हूँ ,इसलिए तप कर रहा हूँ।
यह सुनते ही रामजी ने शम्बूक का वध कर डाला ,यह देख कर देवताओ ने दुदुंभी बजाई और फूलो की वर्षा की , संबूक वध होने के साथ -साथ ब्राह्मण पुत्र जी उठा।
मेरा विचार और तर्क -
इस कथा पर निष्पक्षता पूर्वक विचार करे तो यह स्पष्ट हो जायेगा की निश्चय ही कोई शूद्रद्वेषी अपने द्वेष को धर्मरूप देने के लिए शम्बूक कथा को लिखकर वाल्मीकि रामायण में घुसा दिया होगा , यह कथा पूर्णतः काल्पनिक और असत्य है और श्री राम ने निश्चय ही किसी शूद्र का वध नहीं किया है , इसके समर्थन में मै आपको कुछ बताना चाहता हूँ -
१) यह कथा तुलसी रामचरितमानस में नहीं है , इसकी चर्चा केवल वाल्मीकि रामायण में है। यह जगप्रसिद्ध है कि वाल्मीकि जी शूद्र थे और यह भी जगजाहिर है कि वे रत्नाकर डाकु के नाम से प्रसिद्द थे , बाद में नारद जी के उपदेश से उनकी मनोवृति बदली और वो तप में डूब गए , उनका सम्पूर्ण शरीर को वाल्मीकि (दीमक )ने ढक लिया , फलतः वे वाल्मीकि कहलाए। प्रश्न यह उठता है कि शूद्र वाल्मीकि के तप करने पर कोई ब्राह्मण पुत्र नहीं मरता है ,जिसका जिक्र मुझे कही नहीं मिला , और श्री राम ने उन्हें क्यों नहीं मारा ?
२ )श्रीरामजी ने वाल्मीकिजी से वनवास के समय "वे कहा निवास करे '; इस पर मार्गदर्शन माँगा , गर्भवती पत्नी सीता मइया को उनके आश्रम में पहुंचवाया , जहा उनके पुत्र लव -कुश हुए , फिर शूद्र के टप करने पर सनातन धर्म में उसे मार डालने की अवधारणा है ,यह बात कहा और कैसे उठती है ?
३ )शूद्र वाल्मीकिजी स्वयं तप के द्वारा ऋषि पद को प्राप्त किए, फिर वे अपनी कृति रामायण में इस दुष्ट कथा को कैसे लिख सकते है ?
४ ) नारद जी स्वयं शूद्रा दासी के पुत्र थे , वे तप के बदौलत ही देवर्षि पद को प्राप्त हुए , नारद जी ने स्वयं ही शूद्र वाल्मीकि जी को तप करने की प्रेरणा दी थी , फिर वे तपस्वी शूद्र शम्बूक के वध का आदेश कैसे दे सकते है ?
५)श्री रामजी ने स्वयं गणिका उर्वशी पुत्र वशिष्ट को अपना गुरु बनाया जो अपने तप के द्वारा ब्रमर्षी पद को प्राप्त किए , फिर श्री राम शम्बूक का वध कैसे कर सकते है ?
६ )शूद्र शबरी के टप करने पर श्री राम प्रसन्न होते है ,और भावपूर्वक दिए गए शबरी के झूठे बेर भी खा लेते है , फिर शूद्र शम्बूक के टप करने पर श्री राम कुपित होकर उसे कैसे मार डालेंगे ?
७ ) वाल्मीकि , नारद , वशिष्ट और इसी तरह के अनेक शूद्र तपस्वी जैसे पराशर , वेदव्यास ,भरद्वाज ,जाबाल , कणाद , मातंग ,आदि के टप करने पर कोई ब्राह्मण पुत्र नहीं मारा , किसी को देवसत्ता ने नहीं मारा ,उलटे इन सभी को श्री राम ने और सनातन धर्म ने अपने सर पर धारण करके रखा , फिर शम्बूक शूद्र के ही तप करने से ब्राह्मण पुत्र कैसे मर जायेगा , और क्योंकर श्री राम उसे मारेंगे ?
मेरे विचार से एक - दो प्रसंगो को पढ़ कर या सुन कर भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए , शास्त्रो के अध्यन से ही वस्तुिस्थिति की झलक मिल सकती है। मेरी समझ से मित्रो का का यह भ्रम पूरी तरह से टूट जाना चाहिए की शूद्रो का सनातन धर्म में कोई स्थान नहीं है , हमेशा इसकी उपेक्षा होती रही है और सनातन धर्म केवल ब्राह्मण का पक्षधर है , सनातन धर्म मानवमात्र के लिए ब्राह्मणत्व प्राप्ति का लक्ष्य रखता है।
अक्सर शूद्र -संबूक वध को जातीगत खाई को बढ़ाने , अन्य धर्मावलम्बी अपने धर्म का प्रचार -प्रसार करने के लिए , सनातन धर्म को नीचा दिखने के लिए एवं तथाकथित दलितों के ह्रदय में सनातन धर्म के प्रति नफरत पैदा करने और हिन्दू धर्म में तथाकथित दलितों का का कोई स्थान नहीं है , यह विचार उनमे घुसा कर अधिक -से अधिक पिछड़े बंधुओ को हिन्दू धर्म का त्याग करवाकर अपने धर्म में बटोर लेने के लिए शम्बूक - शूद्र वध की कथा बड़े जोर -शोर से प्रचारित करते है , अतः इस पर चर्चा करना मै जरूरी समझता हूँ , यह मेरा आखरी पड़ाव है "जीतेगा राष्ट्र वाद हारेगा जातिवाद" की शृंखला का।
कहानी -
एक दिन एक ब्राह्मण अपने मृतपुत्र के शव को लेकर श्री राम के दरबार में पंहुचा ,और कहा " राजा के ही अपराध से मेरा लड़का मर गया , वार्ना पिता के रहते पुत्र की मृत्यु कैसे हो सकती है ?"
श्री रामजी ने इस पर विचार करने के लिए नारदादि ऋषियों की एक सभा बुलाई , आपस में विचार विमर्श करके नारदजी ने घोषणा की कि निश्चय ही आपके राज्य में कोई शूद्र तप कर रहा है , इसीलिए ब्राह्मण पुत्र की मृत्यु हुई है , अतः लोक धर्म की रक्षा के लिए उक्त तपस्वी शूद्र का वध करना होगा , तभी ब्राह्मण पुत्र जीवित हो सकता है।
तपस्यारत शूद्र को खोजने श्री राम वन को प्रस्थान करते है , जहा उन्होंने देखा की एक शूद्र पेड़ पर लटक कर तपस्या में लीन है , श्री रामजी उस शूद्र से पूछते है " तुम क्यों तप कर रहे हो ? तपस्वी शूद्र शम्बूक ने कहा " मैं निः संदेह स्वर्ग जाना चाहता हूँ ,इसलिए तप कर रहा हूँ।
यह सुनते ही रामजी ने शम्बूक का वध कर डाला ,यह देख कर देवताओ ने दुदुंभी बजाई और फूलो की वर्षा की , संबूक वध होने के साथ -साथ ब्राह्मण पुत्र जी उठा।
मेरा विचार और तर्क -
इस कथा पर निष्पक्षता पूर्वक विचार करे तो यह स्पष्ट हो जायेगा की निश्चय ही कोई शूद्रद्वेषी अपने द्वेष को धर्मरूप देने के लिए शम्बूक कथा को लिखकर वाल्मीकि रामायण में घुसा दिया होगा , यह कथा पूर्णतः काल्पनिक और असत्य है और श्री राम ने निश्चय ही किसी शूद्र का वध नहीं किया है , इसके समर्थन में मै आपको कुछ बताना चाहता हूँ -
१) यह कथा तुलसी रामचरितमानस में नहीं है , इसकी चर्चा केवल वाल्मीकि रामायण में है। यह जगप्रसिद्ध है कि वाल्मीकि जी शूद्र थे और यह भी जगजाहिर है कि वे रत्नाकर डाकु के नाम से प्रसिद्द थे , बाद में नारद जी के उपदेश से उनकी मनोवृति बदली और वो तप में डूब गए , उनका सम्पूर्ण शरीर को वाल्मीकि (दीमक )ने ढक लिया , फलतः वे वाल्मीकि कहलाए। प्रश्न यह उठता है कि शूद्र वाल्मीकि के तप करने पर कोई ब्राह्मण पुत्र नहीं मरता है ,जिसका जिक्र मुझे कही नहीं मिला , और श्री राम ने उन्हें क्यों नहीं मारा ?
२ )श्रीरामजी ने वाल्मीकिजी से वनवास के समय "वे कहा निवास करे '; इस पर मार्गदर्शन माँगा , गर्भवती पत्नी सीता मइया को उनके आश्रम में पहुंचवाया , जहा उनके पुत्र लव -कुश हुए , फिर शूद्र के टप करने पर सनातन धर्म में उसे मार डालने की अवधारणा है ,यह बात कहा और कैसे उठती है ?
३ )शूद्र वाल्मीकिजी स्वयं तप के द्वारा ऋषि पद को प्राप्त किए, फिर वे अपनी कृति रामायण में इस दुष्ट कथा को कैसे लिख सकते है ?
४ ) नारद जी स्वयं शूद्रा दासी के पुत्र थे , वे तप के बदौलत ही देवर्षि पद को प्राप्त हुए , नारद जी ने स्वयं ही शूद्र वाल्मीकि जी को तप करने की प्रेरणा दी थी , फिर वे तपस्वी शूद्र शम्बूक के वध का आदेश कैसे दे सकते है ?
५)श्री रामजी ने स्वयं गणिका उर्वशी पुत्र वशिष्ट को अपना गुरु बनाया जो अपने तप के द्वारा ब्रमर्षी पद को प्राप्त किए , फिर श्री राम शम्बूक का वध कैसे कर सकते है ?
६ )शूद्र शबरी के टप करने पर श्री राम प्रसन्न होते है ,और भावपूर्वक दिए गए शबरी के झूठे बेर भी खा लेते है , फिर शूद्र शम्बूक के टप करने पर श्री राम कुपित होकर उसे कैसे मार डालेंगे ?
७ ) वाल्मीकि , नारद , वशिष्ट और इसी तरह के अनेक शूद्र तपस्वी जैसे पराशर , वेदव्यास ,भरद्वाज ,जाबाल , कणाद , मातंग ,आदि के टप करने पर कोई ब्राह्मण पुत्र नहीं मारा , किसी को देवसत्ता ने नहीं मारा ,उलटे इन सभी को श्री राम ने और सनातन धर्म ने अपने सर पर धारण करके रखा , फिर शम्बूक शूद्र के ही तप करने से ब्राह्मण पुत्र कैसे मर जायेगा , और क्योंकर श्री राम उसे मारेंगे ?
मेरे विचार से एक - दो प्रसंगो को पढ़ कर या सुन कर भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए , शास्त्रो के अध्यन से ही वस्तुिस्थिति की झलक मिल सकती है। मेरी समझ से मित्रो का का यह भ्रम पूरी तरह से टूट जाना चाहिए की शूद्रो का सनातन धर्म में कोई स्थान नहीं है , हमेशा इसकी उपेक्षा होती रही है और सनातन धर्म केवल ब्राह्मण का पक्षधर है , सनातन धर्म मानवमात्र के लिए ब्राह्मणत्व प्राप्ति का लक्ष्य रखता है।
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