chaitanya shree क्या भारत और चीन को अपने सम्बन्धो को नया चेहरा नहीं देना चाहिए ?
इस सवाल का जवाब अगर मै हाँ में दू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी मै तो यह चाहता हूँ की अगर भारत ,चीन और रूस का एक त्रिकोणीय शक्ति की कल्पना साकार हो जाये तो वह अंतराष्ट्रीय मंचो पर एक बुलंद आवाज होगी और यह मंच नयी विश्व अंतराष्ट्रीय व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा।
चीन की सीमाएं रूस और भारत के साथ अन्य तेरह देशो से मिलती है , सीमा विवाद रूस और चीन के बीच भी था पर दोनो राष्ट्रों ने विवादों को विराम दे सैद्धांतिक रूप से बात -चीत और व्यापार को तरजीह देने का निर्णय लिया , नतीजा सकारात्मक निकला ,बढ़ते व्यापार के बीच विवाद धूमिल होते चले गए ,चीन भारत के साथ भी सामान नीति अख्तियार कर रहा है तथा भारत पाकिस्तान को भी यही घुट्टी पिलाना चाहता है , निति समझता हूँ , मेरी राय यह है की व्यापार बढ़ने से सीमाए अपने आप सिथिल हो जाती है तथाआहिस्ते -आहिस्ते विवाद भी समाप्त हो जाता है और फिर दोस्ती एवं विश्वास के एक नए युग का अभ्युदय होता है।
चीनी सूत्रों के अनुस्वार चीन भारत को शांघाई कॉर्पोरेशन आर्गेनाईजेशन में भारत की बृहद भूमिका देखना चाहता है ,चीन भी एशिया में भारत की बड़ी भूमिका को सिद्धांत रूप से स्वीकार लिया है,रूस भारत को शांघाई कारपोरेशन की सदस्यता देने का पक्षधर है ,इसके सदस्य देश रूस चीन के अलावा मध्य एशिया के चार देश उज्बेकिस्तान , किर्गिस्तान , ताजिकिस्तान , और कजाकिस्तान है ये सारे सदस्य विश्व के बड़े ऊर्जा उत्पादकों में शुमार किये जाते है ,अगर भारत इसकी सदस्यता ले लेता है तो भारत- रूस- चीन त्रिकोण की कल्पना साकार हो जाएगी। मै माननीय प्रधानमंत्रीजी श्री नरेँद्रमोदीजी से इसपर विचार करने के लिए आग्रह करता हूँ।
मेरा मानना है की भारत और चीन के सम्बन्धो को एक नया आयाम दिया जाना चाहिए। कांग्रेस के जमाने में भारत -चीन सम्बंदो में कोई ठोस पहल नहीं हुई , लेकिन मै मानता हूँ की भारत के पास बहुत से सकारात्मक सन्दर्भरी दुनिया का एक सशक्त नेतृत्व कर सकते है।भारत और चीन को मिलकर जलवायु परिवर्तन तथा हिमालय पर हो रहे प्राकृतिक घटनाओ पर अंकुश लगाने के लिए मिलकर काम करना होगा यह इनकी मजबूरी भी है और जरूरी भी है। इसलिए मै मानता हूँ की भारत और चीन को अपने सम्बन्धो को सुदृढ़ बनाकर एक नए युग की शुरुआत कर एक नया चेहरा स्थापित करना चाहिए। होते हुए भी उसका उपयोग नहीं कर सका , लेकिन पाकिस्तान ने नकारात्मक पहलुओ का उपयोग कर चीन को दुश्मनी के धरातल पर खड़ा कर दिया , अगर भारत -चीन से व्यापारिक सम्बन्ध तोड़ ले तो चीन की अर्थव्यवस्था को काफी आघात पहुंच सकता है ,दोनो देशो को अपने सम्बन्धो को नया चेहरा देना होगा।
चीन की सीमाएं रूस और भारत के साथ अन्य तेरह देशो से मिलती है , सीमा विवाद रूस और चीन के बीच भी था पर दोनो राष्ट्रों ने विवादों को विराम दे सैद्धांतिक रूप से बात -चीत और व्यापार को तरजीह देने का निर्णय लिया , नतीजा सकारात्मक निकला ,बढ़ते व्यापार के बीच विवाद धूमिल होते चले गए ,चीन भारत के साथ भी सामान नीति अख्तियार कर रहा है तथा भारत पाकिस्तान को भी यही घुट्टी पिलाना चाहता है , निति समझता हूँ , मेरी राय यह है की व्यापार बढ़ने से सीमाए अपने आप सिथिल हो जाती है तथाआहिस्ते -आहिस्ते विवाद भी समाप्त हो जाता है और फिर दोस्ती एवं विश्वास के एक नए युग का अभ्युदय होता है।
इस सवाल का जवाब अगर मै हाँ में दू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी मै तो यह चाहता हूँ की अगर भारत ,चीन और रूस का एक त्रिकोणीय शक्ति की कल्पना साकार हो जाये तो वह अंतराष्ट्रीय मंचो पर एक बुलंद आवाज होगी और यह मंच नयी विश्व अंतराष्ट्रीय व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेगा।
चीन की सीमाएं रूस और भारत के साथ अन्य तेरह देशो से मिलती है , सीमा विवाद रूस और चीन के बीच भी था पर दोनो राष्ट्रों ने विवादों को विराम दे सैद्धांतिक रूप से बात -चीत और व्यापार को तरजीह देने का निर्णय लिया , नतीजा सकारात्मक निकला ,बढ़ते व्यापार के बीच विवाद धूमिल होते चले गए ,चीन भारत के साथ भी सामान नीति अख्तियार कर रहा है तथा भारत पाकिस्तान को भी यही घुट्टी पिलाना चाहता है , निति समझता हूँ , मेरी राय यह है की व्यापार बढ़ने से सीमाए अपने आप सिथिल हो जाती है तथाआहिस्ते -आहिस्ते विवाद भी समाप्त हो जाता है और फिर दोस्ती एवं विश्वास के एक नए युग का अभ्युदय होता है।
चीनी सूत्रों के अनुस्वार चीन भारत को शांघाई कॉर्पोरेशन आर्गेनाईजेशन में भारत की बृहद भूमिका देखना चाहता है ,चीन भी एशिया में भारत की बड़ी भूमिका को सिद्धांत रूप से स्वीकार लिया है,रूस भारत को शांघाई कारपोरेशन की सदस्यता देने का पक्षधर है ,इसके सदस्य देश रूस चीन के अलावा मध्य एशिया के चार देश उज्बेकिस्तान , किर्गिस्तान , ताजिकिस्तान , और कजाकिस्तान है ये सारे सदस्य विश्व के बड़े ऊर्जा उत्पादकों में शुमार किये जाते है ,अगर भारत इसकी सदस्यता ले लेता है तो भारत- रूस- चीन त्रिकोण की कल्पना साकार हो जाएगी। मै माननीय प्रधानमंत्रीजी श्री नरेँद्रमोदीजी से इसपर विचार करने के लिए आग्रह करता हूँ।
मेरा मानना है की भारत और चीन के सम्बन्धो को एक नया आयाम दिया जाना चाहिए। कांग्रेस के जमाने में भारत -चीन सम्बंदो में कोई ठोस पहल नहीं हुई , लेकिन मै मानता हूँ की भारत के पास बहुत से सकारात्मक सन्दर्भरी दुनिया का एक सशक्त नेतृत्व कर सकते है।भारत और चीन को मिलकर जलवायु परिवर्तन तथा हिमालय पर हो रहे प्राकृतिक घटनाओ पर अंकुश लगाने के लिए मिलकर काम करना होगा यह इनकी मजबूरी भी है और जरूरी भी है। इसलिए मै मानता हूँ की भारत और चीन को अपने सम्बन्धो को सुदृढ़ बनाकर एक नए युग की शुरुआत कर एक नया चेहरा स्थापित करना चाहिए। होते हुए भी उसका उपयोग नहीं कर सका , लेकिन पाकिस्तान ने नकारात्मक पहलुओ का उपयोग कर चीन को दुश्मनी के धरातल पर खड़ा कर दिया , अगर भारत -चीन से व्यापारिक सम्बन्ध तोड़ ले तो चीन की अर्थव्यवस्था को काफी आघात पहुंच सकता है ,दोनो देशो को अपने सम्बन्धो को नया चेहरा देना होगा।
चीन की सीमाएं रूस और भारत के साथ अन्य तेरह देशो से मिलती है , सीमा विवाद रूस और चीन के बीच भी था पर दोनो राष्ट्रों ने विवादों को विराम दे सैद्धांतिक रूप से बात -चीत और व्यापार को तरजीह देने का निर्णय लिया , नतीजा सकारात्मक निकला ,बढ़ते व्यापार के बीच विवाद धूमिल होते चले गए ,चीन भारत के साथ भी सामान नीति अख्तियार कर रहा है तथा भारत पाकिस्तान को भी यही घुट्टी पिलाना चाहता है , निति समझता हूँ , मेरी राय यह है की व्यापार बढ़ने से सीमाए अपने आप सिथिल हो जाती है तथाआहिस्ते -आहिस्ते विवाद भी समाप्त हो जाता है और फिर दोस्ती एवं विश्वास के एक नए युग का अभ्युदय होता है।
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