chaitanya shree मित्रो आज का शहरी समाज और गावों का समाज में अभी भी बहुत अंतर है जो रीती रिवाज हम गावों में अपनाते है वो शहर में नहीं अपनाते ,आपको लग रहा होगा ये बात मैं क्यों लिख रहा हूँ , अभी भी गावों में खास कर यदुवंशी समाज में लोगो के बचपन में शादी हो जाते है , लेकिन गौना नहीं होता है ये तभी होता जब लड़की अपने उम्र के परिपकवता के पड़ाव में आ जाती है, तभी उन्हें ससुराल विदा किया जाता है , यही चीज आदिवासी समाज में भी है , भाजपा अध्यक्ष ने अपने समाजिक ताना -बाना के आधार पर ही अपने पुत्र की शादी की है। गावों में जो लड़कियां बड़ी हो जाती है और उनमे पढ़ने की इक्षा होती है तब उनकी उम्र कक्षा के आधार पर लोग कम लिखवा दिया करते है इसमें कोई नयी बात नहीं है ,राजनितिक कारणों से विपक्ष भाजपा अध्यक्ष को मोहरा बनने की कोशिश कर रहे है। उन्हें उम्र की इतनी चिंता नहीं है उन्हें केवल राजनितिक रोटी सेकने से मतलब है। झारखण्ड में ऐसे कितने मिसाल मौजुद है उनके खिलाफ ये राजनितिक दल आवाज क्यों नहीं उठाते? बेटियों को अगर बचाना है तो सभी राजनितिक दलों को गावो की ओर कूच करना होगा, रांची में बैठ कर मुंह चला देने से बेटियां नहीं बचेगी। पहले आप गावों में जाकर देखिये तो की बेटियों का क्या हाल है ? केवल ताला मरांडी के बहु के पीच्छे ही क्यों , झारखण्ड के बेटियों के लिए ये विपक्षी दल आवाज़ क्यों नहीं उठा रही है ?
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