Monday, 15 February 2016

क्या रोहित वेमुला और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देश विरिोधी आंदोलन आजादी से पहले की रणनीति को दोहराई जा रही है?(विश्लेषण )

chaitanya shree क्या रोहित वेमुला  और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देश विरिोधी आंदोलन आजादी से पहले की रणनीति को  दोहराई जा रही है?(विश्लेषण )
ब्लिट्ज ,२४ अप्रैल १९९३ में उदृत -
अम्बेडकर के जीवनी लेखक धनंजय कीर  ने लिखा है -पाकिस्तान सरकार की भर्तस्ना करते हुए एक वक्तव्य अम्बेडकर ने निर्गत किया था " मै अनुसूचित जाती के उन लोगो को , जो इस समय पाकिस्तान में फंसे है यह कहना चाहता हूँ कि वे भारत आ जाए।  दूसरी बात मै  यह कहना चाहता हूँ कि अनुसूचित जाति के लोग , चाहे वे पाकिस्तान में हो या ह्य्द्राबाद  में , मुस्लिम लीग पर विश्वास न करे , यह उनके लिए घातक होगा। अनुसूचित जाती के लोगो में मुसलमानो को अपना हितैषी मानने की आदत हो गयी है , केवल इसलिए की उनके मनो में हिन्दुओ के प्रति रोष है।  यह दृष्टिकोण ठीक नहीं है। "
 मै मानता हूँ कि डॉ आंबेडकर की दृढ़ मान्यता थी कि भारत के राष्ट्रीय उत्कर्ष के लिए पुनरूथित , शक्तिमान और एकताबद्ध हिन्दू समाज का होना आवश्यक है। लेकिन आज कल के घटनाओ को मै देखता हूँ तो मुझे लगता है वेमुला कि मृत्यु की घटना और जवाहरलाल विश्वविद्यालय की देश विरोधी आंदोलन उस कड़ी को आगे बढ़ाता  है जिसका उदहारण  मै आज के और ऐतिहासिक  परिपेक्ष में आप को समझाने का कोशिश करता हूँ।
ये है जोगेन्द्रनाथ मंडल पूर्व कानून एवं श्रम मंत्री , पाकिस्तान सरकार 
जोगेन्द्र नाथ मंडल जी ने  अनुसूचित जाती के उद्धार के लिए सराहनीय काम किया था।  आज़ादी से पहले इनका व् मुस्लिम लीग के नेता जिन्नाह का  नारा था "मुस्लिम अनुसूचित जाती भाई -भाई " इसका मकसद क्या  था जिसका जिक्र मंडलजी ने अपने पत्र ८ अक्टूबर १९५० में  लियाकत अली को लिखते हुए किया है " जिन प्रमुख उद्देश्यों ने मुझे मुस्लिम लीग के साथ काम करने का उत्साह दिया उसमे यह था कि बंगाल में मुसलमानो के आर्थिक हित  आमतौर पर वे ही थे जो अनुसूचित जातियों के थे। यह साबित करता है कि उस वक़्त भी कोई इसी तरह का दुष्प्रचार रहा होगा की मुसलमानो और अनुसूचित जातियों के उद्देश्य एक से ही है। यह उस समय की ताक़तों कि हिन्दुओ के बीच खाई पैदा करने की चाल थी जिसमे जिन्नाह सफल हुए थे बाद में उन्ही दलितों का कत्लेआम पाकिस्तान में किया गया था , जिस कारण से जोगेन्द्र नाथ मण्डल ने मंत्रिमण्डल से इस्तीफा दिया था , आज उसी चीज को ओबैसी जैसे नेता हिन्दुओ में जातिगत भेद को उजागर कर "दलित -मुस्लिम भाई भाई "के नारे  को चरितार्थ करने की कोशिश कर रहे है जिसे हमें समझना होगा।मुसलमानो को हिन्दू अनुसूचित जातियों के समकक्ष ही कमजोर वर्ग का ठप्पा लगवाने की जी तोड़ कोशिश की जा रही  है ओवैसी बंधुओ ने,कोशिश की है की  मुसलमानो और दलितों की समास्यए एक सी है जो अनुसूचित  जाती के हिन्दुओ के बीच भ्रम फ़ैलाने की एक रणनीति से ज्यादा और कुछ नहीं है। इसको आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अकादमिक संस्थानों में भी भेद को उजागर करने की कोशिश की है जो जवाहर लाल विश्विद्यालय में अफजलगुरू के मुद्दे और कश्मीर के मुद्दे को उठा कर किया जा रहा है। इसलिए मुझे लगता है वेमुला  की मौत और जवाहर लाल विश्वविद्यालय का आंदोलन उसी कड़ी को बढ़ाने  का काम किया जा रहा है। मेरा मानना है देश को एकजुट शक्ति के रूप में इस रणनीति को परास्त करना होगा , हिंदू समाज ने बहुत प्रहार झेले है , जवाहर लाल विश्वविद्यालय का छात्र आंदोलन भी एक प्रहार है जिसे हम झेल रहे है , जिसका  निदान कठोरता से करना जरूरी है,और उसके लिए हमें  सकारात्मक प्रयास करना जरूरी होगा ऐसा मेरा मानना है , समाज में खाई पैदा करना और एक दूसरे के लिए नफरत फैला कर गुटो में बाटना यह राष्ट्र के विरुद्ध राष्ट्र  विरोधी कार्य है.      


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