Tuesday, 24 November 2015

सहिष्णुता हिन्दू सभ्यता का स्वाभाव ही नहीं सांस भी है

chaitanya shree सहिष्णुता हिन्दू सभ्यता का स्वाभाव ही नहीं सांस भी है। असहिष्णुता की बात वही लोग कर रहे है , जिन्होंने  सहिष्णुता को खूब जिया है और भारत की  सहिष्णु  धरती को धर्मशाला की तरह इस्तेमाल किया है. दोस्तों सनातन धर्म की ही छाव में सिख। बौद्ध , जैन के साथ साथ अरब से आये शक ,हून ,यहूदी , कुषाण  और पारसी भी आए  और यही के रह गए। सनातन वसुधैव कुटुम्बकम की तर्ज सभी धर्मो को  समाहित कर लेता है। जैसे कट्टर और मूल स्वभाव से कट्टर ने भी अपने को खूब पोषित किया। भारत ने  सहिष्णुता की सांस की कीमत भी १९४७ में चुकाई है। सहिष्णुता  भारत में नहीं होता तो सोनिया गाँधी भारत में रानी बनकर शासन नहीं करती। पंडित नेहरू की भांजी का नयनतारा सहगल का कश्मीरी पंडितो के दमन पर कभी नम नहीं हुई आँखे वह तो मूल रूप से कश्मीरी पंडित ही है। देश में अहम सवालो पर स्वस्थ बहस होनी चाहिए ,यही हमारे देश के लिए बेहतर होगा।   

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