Monday, 27 April 2015

नेपाल ,बिहार ,के विनाश का मुख्या कारन वन -विनाश , मानव का धरती के साथ अविवेकपूर्ण वैयव्हार रहा है.

chaitanya shree

नेपाल ,बिहार ,के  विनाश का मुख्या कारन वन -विनाश , मानव का धरती के साथ अविवेकपूर्ण वैयव्हार रहा है.


 नेपाल ,बिहार का विनाश का मुख्या कारन वन -विनाश , मानव का धरती के साथ अविवेकपूर्ण वैयव्हार  रहा है. प्रारभ में धरती का दो तिहाई  भाग 12  अरब 8 0  कऱोड़  हेक्टेयर  वनों से आक्चादित था , परन्तु आज केवल 1 6  प्रतिसत  भूभाग २ अरब हेक्टेयर पर ही वन है और वे भी लुप्त होते जा रहे है. जिस दिन मनुष्य  ने लोहे के हल से धरती को चीरना प्रारभ  किया ,उसी दिन से वन-विनाश हो गया . कई छेत्रो  में सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिये राजनितिक नेताओ ने वन छेत्रो में कृषि के लिये अतिक्रमण को बढ़ावा दिया .
  
कृषि विस्तार के आलावा नदी घाटी  ,बाँध परियोजनाओ के लिये हजारो -हजार हेक्टेयर भूमि ली जा चुकी है इसमें  तो कुछ भूमि जलमग्न हो गयी . नदी घाटी  और जल-विद्युत् योजनाए वन विनाश की गति को किस प्रकार तीव्र करती है इसका उदहारण केरल की इदुकी परियोजना,ओड़िसा में रिन्गली बाँध परियोजना ,और उत्तराखंड की टिहरी बाँध परियोजना प्रमुख है. 

नयी  सडको का निर्माण , उद्योगों की स्थापना  और नगरो का विस्तार वन विनाश के दूसरे कारन है,जहा जहा हमारी सभ्यता का विस्तार होता है , वनस्पति का विनाश होता है.


आज़ादी आने के साथ ही वृक्ष मित्र  नेहरु और श्री कनाहिया लाल मानिकलाल मुंशी ने वन महोत्सव प्रारभ किया था , परन्तु वन -सबर्धन की दिशा में उल्लेख्नियाए प्रगति नहीं हुई , उसका मुख्या कारन वृक्षारोपण के पीछे   सामान्य लोगो के जीवन की सम्मास्याओ को हल करने वाली एक निशित उद्देश्य वाली निति का आभाव रहा है .राज्यों के लिए वन बिना खिलाये पिलाये ही सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के सामान रहा है. उत्तराखंड,नेपाल ,बिहार ,झारखण्ड  में इस इस्थिति  के आने में  इस विषय का बहुत हाथ रहा है. 
तो क्या इस परिस्तिथि  में मुक्ति का कोई मार्ग है ? हा विकल्प है , उजड़े हुए वनों को पुनः आबाद करना , वन , वर्षा के विनाशकारी स्वरुप कल्याणकारी स्वरुप में बदलने का महत्वपूर्ण कार्य करते है .जब वर्षा की बूंदे नंगी धरती पर पड़ती है , तो उनकी मार से मिटटी का कटाव होता है , यह मिटटी पानी के साथ बह कर नदियों में और अन्ततोगत्वा समुद्र में चली जाती है . सतही पानी के बहाव में और वृद्धि ही बाढ़  और भू-अस्खलन  की विप्पति लाती  है. इस वृद्धि में एक ओर  तो बाढ़  का प्रकोप  बढ़ा  और दूसरी ओरे भूमिगत जल की मात्रा  घटी 
 पर्वतो में वन विनाश के लिये सरकार  और वन -निगमों का वनों से अधिक से अधिक कमाने का लालच जिम्मेदार है .नेपाल,बिहार, झारखण्ड,उत्तराखंड  इसके भुक्तभोगी है। 

वन नदियों की माँ है . सदैव नज़रअंदाज किया जाता रहा है,  बाँध जल की समस्या का अल्पकालीन हल है . पर्वतिये ढालो पर हरियाली का सघन कवच जिसमे विविध प्रजाति के पेड़ ,झारिया  , घास और जरी -बूटिया ही अस्थायी बाँध है , जिसपर हमें पुनराविचार करना होगा . 

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