Wednesday, 5 February 2014

भगवा शब्द को कॉंग्रेस बदनाम ना करे ,भगवा अग्नि का प्रतीक है ,

 भगवा शब्द को कॉंग्रेस बदनाम ना करे ,भगवा अग्नि का प्रतीक है                                      भगवा आतंकवाद नहीं
क्या राजनीती एक चाल है ,एक कपट है,धोखा है , फरेब है। क्या राजनीती के कपटपूर्ण और आडम्बरयुक्त वातावरण से देश कि जनता ऊब चुकी है ? मुझे तो ऐसा ही लग रहा है कि राष्ट्र में लोग अब इस पर चिंतन करने लगे है कि आखिर वो इस वातावरण से कैसे निकले। वोटो के खातिर कांग्रेस किस प्रकार राष्ट्रवादियो को आतंवादी बनाने पर तुली हुई है। एक के बाद एक राष्ट्रभक्त हिन्दुओ को कांग्रेस ने निशाना बनाया है जो आज तक फलीभूत नहीं हुआ है वह हमारे सामने है। वास्तविकता भी यही है जिसके पास जो रहेगा वाही तो देगा। 
               
मै  इस पर एक छोटी सी कहानी बताना चाहता हु जो भगवन बुद्ध के साथ घटित हुआ , सुबह का समय था तथागत भगवान् बुद्ध अपने शिष्यो के साथ जैतवन में दो राते गुजार कर कही जाने  कि तैयारी में थे अचानक एक व्यक्ति वह आ पंहुचा ,उसने भगवान् बुद्ध  को आते ही गालिया देनी शुरू कर दी , वह उनके मतों मानने  वाला नहीं था, भगवान बुद्ध ने कहा  तुम्हे कुछ कहना है तो कहो ,मै  तुम्हारी बातो को सुनकर उनका समाधान करने को तैयार हू लेकिन वह व्यक्ति इतना उत्पाती था कि अपने मालिक को खुश करने के लिए भगवान् बुद्ध  पर गालियो कि झड़ी लगा दी तथा भगवान् पर थूक दिया , जिस तरह से तुस्टीकरण कि निति के तहत अपने  मालिक को खुस करने के लिए कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह , मनीष तिवारी ,अदि तथा छुटभैये नेता तथा छुटभैये पार्टियो के नेता करते है। महात्मा का शिष्य आनंद विचलित हो उठा और भगवान्  को कहा इस ने सारी  मर्यादाओ  का उल्लंघन किया है क्या करे ? भगवान् बुद्ध ने  विचलित आनंद को शांत होने कहा और आनंद को उत्तर देते हुए कहा "यह घृणा से इतना भरा है कि इसके पास देने को कुछ नहीं है ,शब्दो का आकाल है ,इसकी भाषा ही यही है इसे कुछ बोलो मत " आज के सन्दर्भ में अगर उदहारण देता हु तो जिस तरह से कांग्रेस के नेता , आप पार्टी के नेता छुटभैये पार्टी के छुटभैये नेता तथा उनके समर्थक कि भाषाओ में ऐसा लगता है जैसे भाषा का आकाल सा पड़ गया हो। 
                    कहानी कि ओर फिर लौटते है , जिस दिन उस व्यक्ति ने गालियो कि झड़ी लगायी थी उसदिन भगवान् बुद्ध जैत वैन में एक और रात गुजारने कि ठानी , उस गाली देने वाले व्यक्ति को रात में बहुत पश्चाताप हुआ दूसरे दिन पहली किरण के साथ दौड़ता -हफ्ता हुआ वह व्यक्ति जैत वैन पंहुचा और बुद्ध के चरण पकड़ लिए और उस वयक्ति ने रो -रो कर भगवान् के चरण धोए पर शब्द नहीं मिले , बुद्ध ने कहा देखते हो आनंद आज भी इसके पास शब्द नहीं है ,केवल आंसू है यही इसकी भाषा है , जो आज यह दे रहा है. जिसके पास जो रहेगा वाही तो देगा इसके अलावा करेगा भी क्या। 

                    कांग्रेस के नेताओ ने तथा छोटे पार्टियो के छुटभैये नेताओ ने कसम खाई है कि किस तरह से विश्व पटल पर हिदुओ को बदनाम किया जाये   , गृहमंत्री शिंदे ने भगवा आतंक का मिथक खड़ा करने का प्रयास किया इसके बाद दिग्विजय सिंह ने संघ को हिन्दू आतंकवाद से जोड़ दिया और सुनिये  इससे पहले राहुल गांधी ने अमेरकी राजदूत से चर्चा करते हुए हिन्दू आतंवाद को आतंकी सगठन लश्कर से भी खतरनाक बताया , यह सही बात है कांग्रेस के पास जो कुछ था वही उसने दूसरो को दिया, वैचारिक स्तर पर कांग्रेस ख़त्म हो चुकी है अब कांग्रेस का सांप्रदायिक चेहरा सामने आ चूका है। 

                    भगवा शब्द को कांग्रेस बदनाम न करे ये पुरे विश्व में हिन्दुओ के भगवान् के मुखाग्नि का प्रतीक है , अगर इसको आप आतंकवाद शब्द से जोड़ते है तो आप पुरे हिन्दू समाज को आतंवाद से जोड़ते है। आप संभल जाये कही पूरा हिन्दू समाज आप लोगो का बहिष्कार ना कर दे। "भगवा आतंकवाद "शब्द को बोलने के लिए कांग्रेस को पुरे हिन्दू समाज से माफ़ी मांगनी चाहिए।  

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