कविवर कृष्णमित्र के शब्दों में हिन्दुस्तान की तस्वीर कुछ ऐसी है
बन्दुक की बगावत ,और गोलिओ की भाषा
बारूद के धुये ने आकाश को तराशा
दंगो के इस सहर में देश वाशियों की लाशे
इस खून की नदी में , किस -किस को तलाशे
फिर से विभाजनो के माहौल बन रहे है
तुस्टीकरण के दावे , लावे उफ़्फ़न रहे है .
आसाम की जातिये हिंशा अपनी जड़े गहरी कर ली है . आसाम में अवैध बग्लादेसी का मुद्दा फिर गरमा गया है .लेकिन कांग्रेस की सरकार के कान में जू तक नहीं रेंगता . 1979 में शुरू हुए आसाम आन्दोलन में "विदेशी खदेरो " ही नारा था उस समय इस समस्या को गंभीरता से लिया जाता तो देश में आज ये हालात पैदा नहीं होते . कांग्रेस अपने वोट बैंक के चलते राज्य
में एक भी बांग्लादेसी ना रहने की बात कहती रही .
में एक भी बांग्लादेसी ना रहने की बात कहती रही .
IMTD ACT 1983 आसाम में लगाया गया , IMTD ACT लागू होने के बाद इसमे घुस्पैतिये को खदेरना मुशकिल हो गया .IMTD ACT में प्रावधान था की शिकायत करने वाले वैक्ति को ही प्रामाणित करना पड़ेगा की वह वैक्ति बांग्लादेसी है की नहीं .
मुस्लिम लीग के गठन के समय से ही ब्रिटिश शासको का उद्देश्य यह बन गया था की बंगाल और आसाम को मिलाकर एक ऐसा मुस्लिम बहुल राज्य बनाया जाये जो सम्पूर्ण पूर्वोत्तर चेत्र को शेष भारत से अलग करके जिन्नाह द्वारा प्रस्तावित पाकिस्तान का पूर्वी भाग बनाया जा सके .
कांग्रेस चुनावो को सुविधा पूर्वक जीतना चाहती है . भले ही विदेशियों के अवैध वोटो का सहारा क्यों न लेना पड़ रहा हो .आज इस्तिती यह है की विधान सभा की 126 सीटों में 42 के चुनाव्चेअत्र मुस्लिम बहुल हो चुके है और उन्ही से आसाम का भाग्य निर्धारण होता है . बंग्लादेसियो ने बिहार में 22 और पश्चिम बंगाल में 18 सीटो में अपना दबदबा बना लिया है .भारत में अनेक जनप्रतिनिधि ऐसे है जो भारतीय का नहीं बल्कि विदेशियों का प्रतिनिधित्व करते है . क्या जनतंत्र का इससे बड़ा मजाक और कुछ हो सकता है .
अब इस्तिती यह है की अवैध घुस्पैत्तीये आसाम के मूल वासी हो गये है , और वनवासी वहा के दूसरे दर्जे के नागरिक बनने जा रहे है .
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