कांग्रेस की सरकार इस विधेयक को जोड़ कानून बनाने की जी तोड़ मेहनत कर रही है . अगर यह कानून बन गया तो हिन्दुओ की हालत गुलाम जैसे हो जाएगी . उड़ीसा के मुख्य मंत्री ने कहा है की यह बिल ऐसा है की कही अल्पसंख्यक ने कुछ किया और दंगा हुआ तो बहुसख्यक समुदाय के खिलाफ कार्यवाही होगी . इस प्रस्तावित बिल से यह पता चलता है की अपना देश एक न रहे, समाज में सद्बव समाप्त हो जाये . इस विधेयक को लेकर कुछ बिन्दुओ को अस्पस्ट करना चाहता हू .
विधेयक में प्रदेश में साम्प्रदायिकता हिंसा होने पर कानून वेवस्था के नाम पर केंद्र सरकार को "हस्तछेप का अधिकार"दिया गया है . यह भारतीय संविधान में "संघीय चरित्र " के विरुद्ध है .
विधेयक देश के सार्वभौम नागरीको को अल्पसंख्यक (मुस्लिम) और बहुसंख्यक (हिन्दू) में बाटकर देखता है .
विश्व के किसी भी देश में धर्म के नाम पर कोई साम्प्रदायिकता हिंसा विधेयक नहीं है
कांग्रेस का कहना है की साम्प्रदायिकता दंगे के समय अस्थानीय प्रशासन और पुलिस उनके साथ सही बर्ताव नहीं करती है . प्रशासन एवं पुलिस मुस्लिमो को संदेह की नजर से देखती है, यह गलत है .
साम्प्रदायिकता दंगो के लिये अस्थानिये जिला प्रशासन और पुलिस को जवाबदेह बनाने का कोई प्रावधान नहीं है .
विधेयक नागरीको को धर्म और जाती के नाम पर विभाजित करता है .
विधेयक के अनुसार हिन्दू, मुस्लिमो के लिये अलग-अलग आपराधिक दंड संहिता (फौजदारी कानून) होंगे . परिणाम स्वरुप सांप्रदायिक हिंसा विधेयक हिन्दू बहुसंख्यको के लिये भस्मासुर बनेगा इसका दुरूपयोग होने की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता है .
विधेयक से हिन्दू-मुस्लिम में "परस्पर अविश्वास " और अधिक गहराएगा . अतः यह संविधान विरोधी सांप्रदायिक हिंसा विधेयक मसौदा ख़ारिज किया जाये . वर्त्तमान में सांप्रदायिक हिंसा से निपटने के अनेक शक्त कानून है, उनका उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है ?
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