Saturday, 22 April 2017

हमें आने वाले नस्लों के लिए पृथ्वी को बचाना ही होगा।

chaitanya shree धरती  के  विनाश का मुख्या कारन वन -विनाश , मानव का धरती के साथ अविवेकपूर्ण व्यवहार   रहा है. प्रारभ में धरती का दो तिहाई  भाग 12  अरब 8 0  करोड़  हेक्टेयर  वनों से आक्चादित था , परन्तु आज केवल 1 6  प्रतिसत  भूभाग २ अरब हेक्टेयर पर ही वन है और वे भी लुप्त होते जा रहे है. जिस दिन मनुष्य  ने लोहे के हल से धरती को चीरना प्रारभ  किया ,उसी दिन से वन-विनाश हो गया . कई छेत्रो  में सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिये राजनितिक नेताओ ने वन छेत्रों  में कृषि के लिये अतिक्रमण को बढ़ावा दिया .
  
कृषि विस्तार के आलावा नदी घाटी  ,बाँध परियोजनाओ के लिये हजारो -हजार हेक्टेयर भूमि ली जा चुकी है इसमें  तो कुछ भूमि जलमग्न हो गई . नदी घाटी  और जल-विध्युत  योजनाए वन विनाश की गति को किस प्रकार तीव्र करती है इसका उदहारण केरल की इदुकी परियोजना,ओड़िसा में रिन्गली बाँध परियोजना ,और उत्तराखंड की टिहरी बाँध परियोजना प्रमुख है. 

नयी  सडको का निर्माण , उद्योगों की स्थापना और नगरो का विस्तार वन विनाश के दूसरे कारन है,जहाँ -जहाँ हमारी सभ्यता का विस्तार होता है , वनस्पति का विनाश होता है.

आज़ादी आने के साथ ही वृक्ष मित्र  नेहरु और श्री कनाहिया लाल मानिकलाल मुंशी ने वन महोत्सव प्रारभ किया था , परन्तु वन -सबर्धन की दिशा में उलेखनीय  प्रगती  नहीं हुई , उसका मुख्य कारन वृक्षारोपण के पीचे  सामान्य लोगो के जीवन की सम्मास्याओ को हल करने वाली एक निशित उद्देश्य वाली निति का आभाव रहा है .राज्यों के लिये वन बिना खिलाए  पिलाए  ही सोने का अंडा देने वाली मुर्गी के सामान रहा है. उत्तराखंड,कश्मीर , झारखण्ड , की यह ज्वलंत समस्या है। 
तो क्या इस परिस्तिती में मुक्ति का कोई मार्ग है ? हा विकल्प है , उजड़े हुए वनों को पुनः आबाद करना , वन , वर्षा के विनाशकारी स्वरुप कल्याणकारी स्वरुप में बदलने का महत्वपूर्ण कार्य करते है .जब वर्षा की बूंदे नंगी धरती पर पड़ती है , तो उनकी मार से मिटटी का कटाव होता है , यह मिटटी पानी के साथ बह कर नदियों में और अन्ततोगत्वा समुद्र में चली जाती है . सतही पानी के बहाव में और वृद्धि ही बाढ़  और भू-अस्खलन  की विपत्ती    है. इस वृद्धि में एक ओर  तो बाढ़  का प्रकोप  बढ़ा  और दूसरी ओरे भूमिगत जल की मात्रा  घटी 
 पर्वतो में वन विनाश के लिये सरकार  और वन -निगमों का वनों से अधिक से अधिक कमाने का लालच जिम्मेदार रहा  है .

वन नदियों की माँ है . सदैव नज़रअंदाज किया जाता रहा है,  बाँध जल की समस्या का अल्पकालीन हल है . पर्वतीय  ढालो पर हरियाली का सघन कवच जिसमे विविध प्रजाति के पेड़ ,झारिया  , घास और जरी -बूटिया ही अस्थायी बाँध है , जिसपर हमें पुनराविचार करना होगा। मित्रो  हमें आने   वाले नस्लों के लिए पृथ्वी को बचाना ही होगा। हमें  आदिवासी समाज के धार्मिक ,सामाजिक -सांस्कृतिक एवं  वन  मूल्यों के प्रेम को लोगो तक पंहुचा कर जागरूकता  पैदा करना   होगा।  
    




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