chaitanya shree कब तक सामान नागरिक संहिता का विरोध कर असहिष्णुता का कलंक भारत का नागरिक सहता रहेगा ?
मित्रो सबसे पहले आपको ये समझना होगा की अनुच्छेद ४४ है क्या ? अनुच्छेद ४४ में कहा गया है "भारत समस्त राज्य क्षेत्र में नागरीको के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा। " डॉ भीम राव अम्बेडकर भी इसके कड़े समर्थक थे।
मित्रो कांग्रेस ने वोट की राजनीती तथा अपने घटते जनाधार को देखते हुए उन्होंने एक वर्ग के लिए तुष्टिकरण की निति अपनाई तथा सामान नागरिक संहिता के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया ,जिसका परिणाम यह हुआ की देश के एक वर्ग में भारतीय संविधान के प्रति श्रद्धा व् आस्था काम हो गयी ,और उनमे विशेष सुविधाए प्राप्त करने की और लालसा बढ़ गयी। यह देश की विडम्बना है की जिस व्यक्ति ने संविधान की रखवाली की और निर्माण किया ११ अक्टूबर १९५१ को नेहरू मंत्री मंडल से त्याग पत्र दे दिया था। डॉ ाबमेडकर ने त्याग पत्र देते वक़्त अपने वक्तव्य में कहा था " उनके कठिन प्रयासों के बावजूद भी वंचित वर्ग पीड़ित हो रहा है और इसके विपरीत मुसलमानो की देखभाल पर जरूरत से ज्यादा ही ध्यान दिया जा रहा है , और प्रधान मंत्री (पंडित नेहरू )अपना सारा समय और ध्यान मुसलमानो की सुरक्षा में ही व्यतीत करते है। उपरोक्त परिस्थिति में उनके मंत्रिमंडल में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। "
मित्रो मजे की बात तो यह है की नेहरू ,इंदिरा , के बाद भारत में जितने सेक्युलर दल हुए सभी ने अपना विधवा विलाप शुरू कर दिया सिर्फ- सिर्फ तुष्टि करन के लिए। कांग्रेस ने तो मुस्लिम वोट के खातिर भारतीय संविधान की मूल स्वतंत्रता तथा समानता की भावना से विश्वासघात तो किया ही वही आंबेडकर के नाम से वोट बटोरने वाले तथा लोहिया का गीत गाने वाले पार्टिया भी स्वार्थवश अपने पथ से विचलित हो गई। वे भी आंबेडकर व् लोहिया मार्ग से भटक गए।
इस वक्त इस की चर्चा इसलिए हो रही क्योकि माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने १२ अक्टूबर , २०१५ को पुनः सामान नागरिक संहिता पर जोर दिया है उसने केंद्र सरकार से पूछा की वह इस दिशा में क्या कर रही है ? सर्वोच्च न्यायलय ने ने यह टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई करते हुए के है , जिसमे ईसाई समुदाय के दम्पत्तियो को आपसी सहमति से तलाक के लिए अन्य समुदाय के मुकाबले एक वर्ष अधिक प्रतीक्षा करने वाले प्रावधान को चुनौती दी गयी थी। भारत के कानून मंत्री ने अदालत को सामान नागरिक संहिता के प्रति सहमति जताते हुए इसके लिए उचित माहोल बनने के लिए समय माँगा है।
इस विषय पर मुस्लिम समाज दो भागो में बता हुआ है , एक रूढ़िवादी समाज तथा आधुनिक पढ़ा लिखा समाज।
पहले मुस्लिम रूढ़ी वादी समाज की चर्चा करते है जिसका नेतृत्व मौलवी अब्दुल हमीद नोमानी का नाम आता है जिन्होंने कहा है यह सामान नागरिक संहिता अव्यवहारिक है तथा समस्त मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध है. मौलाना अब्दुल रहीम मुजादि ने कहा है की "मुसलमानो को अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करनी है तो उन्हें अपने मामलो को देश की अदालतों में नहीं ले जाना चाहिए। जयपुर के मौलाना मजदी अदालतों के बहिष्कार की रट लगते फिर रहे है। दारुल उलूम ,देवबंद के मुफ्तियों के अनुस्वार महिलाओं की कमाई शरीयत की नज़र में हराम है ,और महिलाओं को पुरषो के साथ काम करना हराम है , दोस्तों मेरा मानना है की अगर यह समुदाय इस तरह की सोच रखेगा तो उन्हें शरीयत के उन कानूनों को भी मन्ना चाहिए जिसमे चोरी ,डकैती ,क़त्ल , रेप इत्यादि का दण्ड मौत है या शरीर के आंगो को काट देना है। मित्रो हिन्दुस्तान का कानून सहिष्णु है जिसे मुस्लिम महिलाओं को ताकत मिलेगी और वो बढ़ चढ़ कर देश की तरक्की में भाग लेंगी इस पर देश को विचार करना होगा।
दूसरी तरफ अनेक मुस्लिम चिंतक व् विचारक न्याधीश ,अध्यापक तथा दूसरे विद्वान है, इनमे उल्लेखनीय है न्यायमूर्ति मुहम्मद करीम छागला ,न्यायमूर्ति म उ बेग ,ये लोग संविधान के अनुच्छेद ४४ को अतिशीघ्र लागू करना चाहते है। आरिफ मोह्हमद खान जैसे राष्ट्रवादी नेता जो राजीव गांधी के काल से ही शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायलय के फैसले को सही ठहरा है तो इसे प्रोफ ताहिर महमूद ने सही मन है अल्पसंख्यक मामलो की मंत्री नज़्म हेपतुल्लाह ने "सबका साथ सबका हाथ "कहते हुए मुस्लमान महिलाओं की इज़्ज़त तथा सम्मान की बात कही है पत्रकार शेखर गुप्ता ने इसके विरोध को निर्रथक कहा है।
मित्रो अगर मैं निष्पक्ष रूप से इसे देख्ता हूँ तो ऐसा लगता है की संविधान का प्रमुख अनुच्छेद ४४ आखिर कब तक मरणासन्न इस्थिति में पड़ा रहेगा, जिसका जवाब हम सब को मिलकर ढूंढना होगा।
आपका चैतन्य श्री
मित्रो सबसे पहले आपको ये समझना होगा की अनुच्छेद ४४ है क्या ? अनुच्छेद ४४ में कहा गया है "भारत समस्त राज्य क्षेत्र में नागरीको के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा। " डॉ भीम राव अम्बेडकर भी इसके कड़े समर्थक थे।
मित्रो कांग्रेस ने वोट की राजनीती तथा अपने घटते जनाधार को देखते हुए उन्होंने एक वर्ग के लिए तुष्टिकरण की निति अपनाई तथा सामान नागरिक संहिता के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया ,जिसका परिणाम यह हुआ की देश के एक वर्ग में भारतीय संविधान के प्रति श्रद्धा व् आस्था काम हो गयी ,और उनमे विशेष सुविधाए प्राप्त करने की और लालसा बढ़ गयी। यह देश की विडम्बना है की जिस व्यक्ति ने संविधान की रखवाली की और निर्माण किया ११ अक्टूबर १९५१ को नेहरू मंत्री मंडल से त्याग पत्र दे दिया था। डॉ ाबमेडकर ने त्याग पत्र देते वक़्त अपने वक्तव्य में कहा था " उनके कठिन प्रयासों के बावजूद भी वंचित वर्ग पीड़ित हो रहा है और इसके विपरीत मुसलमानो की देखभाल पर जरूरत से ज्यादा ही ध्यान दिया जा रहा है , और प्रधान मंत्री (पंडित नेहरू )अपना सारा समय और ध्यान मुसलमानो की सुरक्षा में ही व्यतीत करते है। उपरोक्त परिस्थिति में उनके मंत्रिमंडल में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। "
मित्रो मजे की बात तो यह है की नेहरू ,इंदिरा , के बाद भारत में जितने सेक्युलर दल हुए सभी ने अपना विधवा विलाप शुरू कर दिया सिर्फ- सिर्फ तुष्टि करन के लिए। कांग्रेस ने तो मुस्लिम वोट के खातिर भारतीय संविधान की मूल स्वतंत्रता तथा समानता की भावना से विश्वासघात तो किया ही वही आंबेडकर के नाम से वोट बटोरने वाले तथा लोहिया का गीत गाने वाले पार्टिया भी स्वार्थवश अपने पथ से विचलित हो गई। वे भी आंबेडकर व् लोहिया मार्ग से भटक गए।
इस वक्त इस की चर्चा इसलिए हो रही क्योकि माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने १२ अक्टूबर , २०१५ को पुनः सामान नागरिक संहिता पर जोर दिया है उसने केंद्र सरकार से पूछा की वह इस दिशा में क्या कर रही है ? सर्वोच्च न्यायलय ने ने यह टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई करते हुए के है , जिसमे ईसाई समुदाय के दम्पत्तियो को आपसी सहमति से तलाक के लिए अन्य समुदाय के मुकाबले एक वर्ष अधिक प्रतीक्षा करने वाले प्रावधान को चुनौती दी गयी थी। भारत के कानून मंत्री ने अदालत को सामान नागरिक संहिता के प्रति सहमति जताते हुए इसके लिए उचित माहोल बनने के लिए समय माँगा है।
इस विषय पर मुस्लिम समाज दो भागो में बता हुआ है , एक रूढ़िवादी समाज तथा आधुनिक पढ़ा लिखा समाज।
पहले मुस्लिम रूढ़ी वादी समाज की चर्चा करते है जिसका नेतृत्व मौलवी अब्दुल हमीद नोमानी का नाम आता है जिन्होंने कहा है यह सामान नागरिक संहिता अव्यवहारिक है तथा समस्त मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध है. मौलाना अब्दुल रहीम मुजादि ने कहा है की "मुसलमानो को अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करनी है तो उन्हें अपने मामलो को देश की अदालतों में नहीं ले जाना चाहिए। जयपुर के मौलाना मजदी अदालतों के बहिष्कार की रट लगते फिर रहे है। दारुल उलूम ,देवबंद के मुफ्तियों के अनुस्वार महिलाओं की कमाई शरीयत की नज़र में हराम है ,और महिलाओं को पुरषो के साथ काम करना हराम है , दोस्तों मेरा मानना है की अगर यह समुदाय इस तरह की सोच रखेगा तो उन्हें शरीयत के उन कानूनों को भी मन्ना चाहिए जिसमे चोरी ,डकैती ,क़त्ल , रेप इत्यादि का दण्ड मौत है या शरीर के आंगो को काट देना है। मित्रो हिन्दुस्तान का कानून सहिष्णु है जिसे मुस्लिम महिलाओं को ताकत मिलेगी और वो बढ़ चढ़ कर देश की तरक्की में भाग लेंगी इस पर देश को विचार करना होगा।
दूसरी तरफ अनेक मुस्लिम चिंतक व् विचारक न्याधीश ,अध्यापक तथा दूसरे विद्वान है, इनमे उल्लेखनीय है न्यायमूर्ति मुहम्मद करीम छागला ,न्यायमूर्ति म उ बेग ,ये लोग संविधान के अनुच्छेद ४४ को अतिशीघ्र लागू करना चाहते है। आरिफ मोह्हमद खान जैसे राष्ट्रवादी नेता जो राजीव गांधी के काल से ही शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायलय के फैसले को सही ठहरा है तो इसे प्रोफ ताहिर महमूद ने सही मन है अल्पसंख्यक मामलो की मंत्री नज़्म हेपतुल्लाह ने "सबका साथ सबका हाथ "कहते हुए मुस्लमान महिलाओं की इज़्ज़त तथा सम्मान की बात कही है पत्रकार शेखर गुप्ता ने इसके विरोध को निर्रथक कहा है।
मित्रो अगर मैं निष्पक्ष रूप से इसे देख्ता हूँ तो ऐसा लगता है की संविधान का प्रमुख अनुच्छेद ४४ आखिर कब तक मरणासन्न इस्थिति में पड़ा रहेगा, जिसका जवाब हम सब को मिलकर ढूंढना होगा।
आपका चैतन्य श्री
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