chaitanya shree रोहित वेमुला की आत्म हत्या प्रयाश्चित और पुनर्विचार का विषय है( मेरे विचार )
रोहित की आत्महत्या एक राष्ट्रीय व्यथा है जिसकी जिम्मेवारी सारे हिन्दू समाज की है। इसके बहाने राजनितिक शोर मचाने की आवश्यकता नहीं है। जातिवाद की राजनीती हमारे हिन्दू सभ्यता को तोड़ती है। राजनितिक पार्टियो से हमारा निवेदन है की आप का निर्माण इसी समाज से हुआ है जिसे आपको जोड़ना है न की तोडना है, कुछ चंद राष्ट्रीय पार्टियो के नेता व् क्षेत्रीय पार्टियो के नेता अपने निजी राजनितिक लाभ को साधने के लिए राष्ट्र की सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था को छिन्न - भिन्न करने कोशिश कर रहे है। भारतीय हिन्दू समाज में जातियाँ है , मै इससे इंकार नहीं करता हूँ ,जाती गत भेदभाव एवं उत्पीड़न एवं अन्याय का दंश हिन्दू समाज झेला है , लेकिन मित्रो जातिगत भेद भाव नष्ट भी हो रहा है , इसके जड़ एवं उसके निवारण पर हमें चर्चा करना चाहिए , जिससे हम लोग इसे सदा के लिए मिटा सके। मित्रो मै आपलोगो को कुछ ऐतिहासिक तथ्य बताना चाहूँगा जो आपके लिए बहुत ही अनिवार्य है।
भक्ति काल का समय जब तथाकथित पिछड़ी ,अस्पृस्य , दलित जातियों के लोग बड़ी संख्या में संत के रूप में हिन्दू धर्म व् समाज की रक्षा के लिए सामने आए , संत रवि दास, कबीर , धन्ना भगत , महात्मा फुले , नरसी भगत , सतनामी संप्रदाय के संस्थापक जीवन दास , वाल्मीकि कुंबन, इन सभी संतो ने हिन्दू समाज में सुधार के आंदोलन चलाये , हिन्दू धर्म के गलत परम्परो पर भी चोट की किन्तु वे इस्लाम व् ईसाइयत से रक्षा की। ये काम आंबेडकर भी चाहते थे की सभी हिंदू एक हो। सम्पूर्ण हिंदू समाज ने बिना किसी भेद भाव के सभी संतो को आदर - सम्मान ही नहीं दिया उनका शिष्यतत्व भी स्वीकार किया। इन्ही संतो ने हिन्दू धर्म के जीवन मूल्यों की रक्षा भी की और हिन्दुओ में हीन भावना कभी नहीं पनपने दी। ये संत शत्रु शक्तियों के सामने अग्रिममोर्चे पर सिपाही बन कर खड़े रहे ,जान लगायी व् क्रूर शक्तियों से हिन्दू धर्म व् समाज को बचाया तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज यदि हिंदू समाज हजार साल के संघर्ष के बाद भी अडिग खड़ा है तो यह महान संतो के बलिदान व् कृपा की देन है। मै उन राजनितिक नेताओ से आवाहन करता हूँ की अगर आप हिंदू समाज को तोड़ने की कोशिश करेंगे तो आपका अस्तित्व भी छिन्न -भिन्न हो जायेगा , आप को समाज को जोड़ना है न है न की तोडना है, समाज को विष पिलाने की कोशिश न कीजिये अगर आप में विष पीने की क्षमता न हो।
रोहित की आत्महत्या एक राष्ट्रीय व्यथा है जिसकी जिम्मेवारी सारे हिन्दू समाज की है। इसके बहाने राजनितिक शोर मचाने की आवश्यकता नहीं है। जातिवाद की राजनीती हमारे हिन्दू सभ्यता को तोड़ती है। राजनितिक पार्टियो से हमारा निवेदन है की आप का निर्माण इसी समाज से हुआ है जिसे आपको जोड़ना है न की तोडना है, कुछ चंद राष्ट्रीय पार्टियो के नेता व् क्षेत्रीय पार्टियो के नेता अपने निजी राजनितिक लाभ को साधने के लिए राष्ट्र की सामाजिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्था को छिन्न - भिन्न करने कोशिश कर रहे है। भारतीय हिन्दू समाज में जातियाँ है , मै इससे इंकार नहीं करता हूँ ,जाती गत भेदभाव एवं उत्पीड़न एवं अन्याय का दंश हिन्दू समाज झेला है , लेकिन मित्रो जातिगत भेद भाव नष्ट भी हो रहा है , इसके जड़ एवं उसके निवारण पर हमें चर्चा करना चाहिए , जिससे हम लोग इसे सदा के लिए मिटा सके। मित्रो मै आपलोगो को कुछ ऐतिहासिक तथ्य बताना चाहूँगा जो आपके लिए बहुत ही अनिवार्य है।
भक्ति काल का समय जब तथाकथित पिछड़ी ,अस्पृस्य , दलित जातियों के लोग बड़ी संख्या में संत के रूप में हिन्दू धर्म व् समाज की रक्षा के लिए सामने आए , संत रवि दास, कबीर , धन्ना भगत , महात्मा फुले , नरसी भगत , सतनामी संप्रदाय के संस्थापक जीवन दास , वाल्मीकि कुंबन, इन सभी संतो ने हिन्दू समाज में सुधार के आंदोलन चलाये , हिन्दू धर्म के गलत परम्परो पर भी चोट की किन्तु वे इस्लाम व् ईसाइयत से रक्षा की। ये काम आंबेडकर भी चाहते थे की सभी हिंदू एक हो। सम्पूर्ण हिंदू समाज ने बिना किसी भेद भाव के सभी संतो को आदर - सम्मान ही नहीं दिया उनका शिष्यतत्व भी स्वीकार किया। इन्ही संतो ने हिन्दू धर्म के जीवन मूल्यों की रक्षा भी की और हिन्दुओ में हीन भावना कभी नहीं पनपने दी। ये संत शत्रु शक्तियों के सामने अग्रिममोर्चे पर सिपाही बन कर खड़े रहे ,जान लगायी व् क्रूर शक्तियों से हिन्दू धर्म व् समाज को बचाया तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। आज यदि हिंदू समाज हजार साल के संघर्ष के बाद भी अडिग खड़ा है तो यह महान संतो के बलिदान व् कृपा की देन है। मै उन राजनितिक नेताओ से आवाहन करता हूँ की अगर आप हिंदू समाज को तोड़ने की कोशिश करेंगे तो आपका अस्तित्व भी छिन्न -भिन्न हो जायेगा , आप को समाज को जोड़ना है न है न की तोडना है, समाज को विष पिलाने की कोशिश न कीजिये अगर आप में विष पीने की क्षमता न हो।
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