Friday, 24 July 2015

जातिवाद और राजनीति (भाग २ )

chaitanya shree जातिवाद  और राजनीति (भाग २ )
 कौन कहता है कि हमारे धर्म में जातिवाद है ?
कौन कहता है कि हमारे धर्म में छुआछूत है ?
कौन  कहता है कि हमारा धर्म जन्मजात कुलीनता का पक्षधर है ?
जो ऐसा कहता है , जो राजनीतज्ञ जातीय आधार पर राजनीती करते है वो अपने अज्ञान और नासमझी को ही उजागर करते है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी इस सामाजिक विकृति को मिलकर उखाड़ फेकने के लिए कृतसंकल्प है।
वेदो में आया है की सम्पूर्ण समाज का लक्ष्य ब्राह्मणत्व की प्राप्ति है जैसा की मैंने पहले अंक में भी  लिखा है। शास्त्रो में भी  लिखा है -:
     जन्मना जायते शूद्र संस्कार दिव्यजोच्च्ते।
     वेदाभ्यासी  भवेदिव्यप्र  ब्रह्म जानाति ब्रह्मणः। ।
 अर्थात जन्म से सभी शूद्र ही पैदा होते है ,अनगढ़ ,अशिक्षित ,विद्या- संस्कार हींन। संस्कार से द्विज कहा जाता है। वेदभ्यासी यानी सुसंस्कारों के साथ  -साथ सत्य बोध के लिए प्रयत्न रत हो जाने वाले को विप्र कहा जाता है। जो वेदो की पराकाष्ठा ब्रह्म का साक्षात्कार कर लिया हो ,उसे ब्राह्मण कहते है।
अगर इस कसौटी पर लोगो को कसा  जाये तो इक्के -दुक्के ब्राह्मण होंगे। आज हमारा  सारा  हिन्दू समाज  शूद्र बन रहा है ,एक समय था जब हमारा देश सनातन धर्म  में ब्राह्मणत्व प्राप्ति की ओर अग्रसर था। आज हमारा समाज, राजनीतज्ञो द्वारा लोगो को दिग्भ्रमित कर स्वार्थान्ध ,कुसंस्कारी ,पेट -प्रजनन तक ही सीमित रखना चाहता है।  ,भौतिक लिप्सा को ही जीवन का उद्देश्य बना कर शूद्रत्व को प्राप्त हो रहा है। हिन्दू समाज बट रहा है ,राजनितिक फायदा कुछ लोगो के लिए होगा लेकिन समाज बट जाने से उसके दूरगामी दुष्परिणाम होंगे।
                                                                                             आपका
                                                                                            चैतन्य श्री

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