chaitanya shree सिंघासन (भाग ३ )
दुनिया के सुखी देशो और दरिद्र देशो के बीच जो मुख्य अंतर होता है उसका जिम्मेदार वहाँ का सिंघासन होता है . यह सिंघासन लोकतंत्र में जनता का होता है अथवा राजशाही में तनशाह का . उसपर विराजमान व्यक्ती अथवा सत्ता के हाथ में सारे सत्तासुत्र होते है . और वाही उस छेत्र का भविष्य निर्माता होता है . मगर उस पर नियंत्रण रखकर उसके मध्याम से अपना भला करवाना यह निश्चित ही उसके आस-पास की जनता और उसकी छमता पर निर्भर होता है .
विकास की तीव्र इक्षा रखनेवाले देश के लोग स्वतः स्फरूत होकर राजनेताओ पर अंकुश रख सकते है , क्योकि उनकी मानसिकता प्रगल्भ हो जाती है , सरकारी अधिकारियो से सवाल पूछने का साहस भी उनमे अपने आप आता है . मगर जब हमारी संवेदनाये निर्जीव हो जाती है , राजनेताओ की बेलगाम सत्ता के समक्ष हम नतमस्तक हो जाते है ,तो हमारी संस्कृति भी पेज थ्री में रस लेन लगती है . सिने अभिनेताओ और उद्योगपतियो के फैशन और चोचलो पर ही सबका ध्यान केन्द्रित हो जाता है . देश के लाखो गरीबो , अपंगो और बीमारों के लिये सहानुभूति का भाव ख़त्म हो जाता है . ऐसे वातावरण में हम सर्वांगीन विकास कर ही नहीं सकते . ऐसे देशो पर फिर छोटे -मोटे देश भी आतंकवादी हमले करने से नहीं घबराते . अंडरवर्ल्ड का आतंक बढ़ जाता है .
जब - जब शासक मदमस्त होते है , सामान्यजनो का शोषण करते है , स्वयं दावते खाते है और जनता को भूखा रखते है . स्वार्थी धनिकों और ढोंगी मुल्लाओ -धर्मगुरूओ से गटबंधन करते है . तब ऐसे शासको को एक दिन अपने कर्म की सजा भुगतनी ही पड़ती है ंअगर कभी - कभी उनके साथ सारा देश भी गर्त में चला जाता है . यह इतिहास हमे बताता है .

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