chaitanya shree
chaitanya shree सिंघासन (पार्ट-१ )
राष्ट्र बड़ा हो या छोटा , एक वंशी हो या विविध धर्मी , समुद्र के किनारे हो या पहाड़ो की गोद में ,दुनिया के सभी राष्ट्रों की प्रगति और वहा बसे नागरीको का भविष्य केवल एक बात पर निर्भर करता है, वह बात है वहा का सिंघासन । क्या सिघासन पर बैठने वाले व्यक्ती पर आपका अंकुश है? क्या सिंघासन में सीढिया है ?क्या उच्पद पर नियुक्ति अथवा चुनाव हेतु छमता अथवा पात्रता जाचने के भी निष्कर्ष होते है ?क्या एक विशेष परिवार ही शासन कर सकता है ? क्या लोकप्रियता के आधार पर कोई मंत्री बन सकता है?क्या उसके लिये निर्धादित योग्यता आप में होना आवश्यक नहीं है?
सत्ता कई बार सामजिक और आर्थिक विकास के सूत्रों को नियंत्रित करने का प्रयास करती है . इसलिये हमारे यहाँ सिंघासन को अनावश्यक महत्व दिया जाता है. इसी के परिणाम स्वरुप राजनेताओ में कर्तव्य भावना बिसरने की प्रवृति बढती है , स्वयं के नैतिक कर्त्तव्य को भी वे समाज पर उपकार समझने लगते है . उनमे समाज के एक विशिष्ट वर्ग के लिये ही काम करने की प्रवृति का निर्माण होता है .भ्रस्टाचार बढ़ता है. उसकी आंच समाज के दुसरे घटकों तक पहुचकर सम्पूर्ण व्यवस्था को चरमरा देती है . जनता की समस्याए हल नहीं होती है . इन दुश्परिनामो से दुनिया भर के देश बहुत पहले ही परिचित हो चुके है
.यूरोपीय देशो में जनता ने अपने नेताओ को छोटा बनाये रखा है ,जो देश बड़ा वहाँ का नेता छोटा ,जहा नेता बड़ा वहाँ का समाज छोटा .यही समीकरण सारी दुनिया में देखने को मिलता है.
(अगले भाग में सिंघाशन पर और चर्चा लिखूंगा )
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